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अगस्त, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विंटर ब्रेक

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सर्दी अकेली नहीं आती। अपने साथ विंटर ब्रेक, कोहरा, गलन भी लाती है। पहाड़ों पर बर्फ और मैदान पर शीतलहर का राज चलता है। एक चीज और लाती है सर्दी अपने साथ। न्यू ईयर। नये साल के जोश में चूर हम ठंड को ओढ़ते और बिछाते हैं। होटल, रेस्टोरेंट और सड़क पर जश्न मनाते हुए सर्दी का स्वागत करते हैं। सड़क पर ही बहुत से लोगों को कड़कड़ाती सर्दी सीमित कपड़ों और खुले आसमान में गुजारनी होती है।  चाय, काॅफी पीते और तापते हुए बोलते हैं ऐसी नहीं पड़ी पहले कभी। सर्दी का यह तकियाकलाम अखबारों में रोज रिकाॅर्ड बनाती और तोड़ती हेडलाइन को देखकर दम भरता है। मुझे विंटर ब्रेक का इंतजार औरों की तरह नहीं रहता। मैं पहाड़ों की जगह अपनी रजाई में घूम लेता हूं। मनाली, नैनीताल और मसूरी में गाड़ियों की कतार मुझे अपनी ओर नहीं खींच पाती। क्योंकि पत्नी और बेटे की छुट्टी रहती है और बाहर हम कम ही जाते हैं इसलिए मेरे ड्यूटी कुछ सख्त हो जाती है। रूटीन बेपटरी होने की शुरुआत अलार्म नहीं बजने से होती है। देर से सोना और सुबह जब मन करे उठना यह एैब इंसान को बर्बाद कर सकता है। दुनिया से काट देता है।  सर्दी बच्चों को बेकाबू होने की छूट देती है। नहान

मेट्रो के यात्रीगण कृपया ध्यान दें

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मेट्रो में सफर करने वाले यात्रीगण कृपया ध्यान दें। पांच महीने से बंद उनकी यात्रा फिर से शुरू होने जा रही है। इस बीच कोरोना से लोगों की जिंदगी काफी हद तक बदल चुकी है। यात्रा भी पहले जैसी नहीं रहेगी। सावधानियों के संग सफर करना होगा। सुरक्षा के सारे हथकंडे अपनाने की तैयारी कर लीजिये। यहां पर थूकना मना है कि तर्ज पर गाइडलाइन की अनदेखी करना भारी पड़ सकता है।  लगभग 50 लाख यात्रियों को इधर से उधर करने वाली मेट्रो 169 दिन के बाद पटरी पर लौट रही है। वो भी एकदम विपरीत हालात में। जब बंद हुई थी, इतने बुरे हालात तब नहीं थे। कुछ लोगों का मानना है कि मेट्रो का संचालन अभी नहीं करना चाहिये। इससे संक्रमण बढ़ सकता है। दूसरी और दिल्ली में केस कम होने के बाद फिर से बढ़ने लगे हैं। दिल्ली सरकार मेट्रो चलाने की मांग कर रही थी। यह राहत रंग लाई तो दिल्ली की लाइफलाइन फिर से जी उठेगी। एंट्री से एग्जिट तक मेट्रो में सफर के दौरान एंट्री से एग्जिट तक यात्रियों की रेलमपेल रहती है। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन चुनौतीपूर्ण होगा। हालांकि लोग अभ्यस्त हो चुके हैं। टोकन काउंटर पर भीड़ नहीं होगी। कार्डधारी ही सफर कर सकेंगे। सीट को

गरमा गरम पकौड़े बुला रहे हैं

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विधि का विधान है कि बारिश में पकौड़े तले जाएं। एक-दूसरे को तलने से तो अच्छा है, जब-जब बारिश हो तो पकोड़े तलें जायें। मानसून के सीजन में चूल्हे पर कढ़ाई की चढ़ाई होती रहती है। मानो इंद्रदेव कह रहे हों, हे वत्स आलू और प्याज को बेसन में सान लो। जैसे मैं जलधारा बरसा रहा हूं, वैसे ही तुम तेल को कढ़ाई रूपी हवन कुंड में चढ़ा दो। छुन-छुन की आवाज से पड़ोसी को जलाओ और अपने पेट की ज्वाला का शांत कर लो। इससे तुम्हे पृथ्वी लोक पर स्वर्ग की अनुभूति होगी। बेसन का असली मजा मानसून मेहरबान चल रहा है तो रसोई में चिकनाई की खपत अचानक बढ़ गई है। कोलेस्ट्रॉल वाले भी इन दिनों पकौड़े का लुत्फ लूटने में मग्न हैं। रसोई की रंगत बदली-बदली सी है। बेसन का असली मजा लेने के जो दिन हैं। पकौड़े प्रतिस्पर्धा फील कर रहे हैं। छोटों को बड़ों से जलन हो रही है, क्योंकि सबकी नजर पहले उन पर ही होती है। प्याज के चाहने वाले भी कम नहीं हैं। प्लेट में पहले ही ताड़ लेते हैं कि किस आकृति में वह गुम है। गोभी और पालक विविधता को बढ़ावा देते हैं। इनके भी तलबगार हैं। मिर्च को मलाल रहता है कि उसका नंबर सबसे बाद में क्यों आता है। चटनी के बिना स्वाद अधूर

परीक्षा की डगर पर डगमगाना नहीं

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  जिंदगी हर पल इम्तिहान लेती है। बिना सिलेबस और डेडलाइन दिए रोज हमारे सामने आकर खड़ी हो जाती है। कहती है मुझको हल करो नहीं तो हलकान कर दूंगी। दरअसल, हम इतने मोर्चोें पर परीक्षा देते हैं कि लगता है एक जीवन कम है। मरते-मरते भी कोशिश रहती है कि काश! यह परीक्षा और पास कर लूं। पर हर परीक्षा पास करने के लिए थोड़े ही होती है। कुछ सिखाती तो कुछ सबक देती हैं। देश में हर साल करीब 30 से 40 लाख युवा तरह-तरह की प्रतियोगी परीक्षा देते हैं। कुछ कामयाब होते हैं तो कुछ फिर अगली परीक्षा की तैयारी में जुट जाते हैं। यह बात तो हुई सालाना परीक्षा की। दूसरी तरफ देश में रोजाना 130 करोड़ लोग परीक्षा दे रहे होते हैं। रोजी से रोटी तक की जद्दोजहद में जिंदगी जुटी रहती है। परीक्षा खुद बनी सवाल कोरोना ने परीक्षा करानी वाली संस्थाओं के सामने ऐसा सवाल खड़ा कर दिया है कि उन्हें भी उत्तर का विकल्प नहीं मिल रहा। कई-कई बार परीक्षा की तिथि बदलनी पड़ गई। एनटीए ने सितंबर में नीट, जेईई, यूजीसी नेट के अलावा छह प्रतियोगी परीक्षा कराने का निर्णय लिया है। बढ़ते संक्रमण के बीच परीक्षा फिर टालने की मांग की जा रही है। स्टूडेंट्स से लेकर प

एक हेलिकाॅप्टर शाॅट चाहिये जिंदगी के लिए

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  मंडे पॉजिटिव  एमएस धोनी। नाम तो सुना ही होगा। भारतीय क्रिकेट के सफलत्तम कप्तानों में से एक। जिन्होंने ट्विटर पर रिटायरमेंट की घोषणा की। धोनी के दो शाॅट बड़े मशहूर हैं। पहला हेलिकाॅप्टर शाॅट, जिसने उनकी बैटिंग को पंख लगाए और दूसरा वर्ल्ड कप फाइनल में छक्का। जो क्रिकेट प्रेमियों के दिल पर हमेशा के लिए छप गया। लेख हेलिकाॅप्टर शाॅट पर केंद्रित है। जिस तरह एक सनम चाहिये आशिकी के लिए वैसे ही एक हेलिकाॅप्टर शाॅट की जरूरत आजकल जिंदगी में महसूस की जा रही है। हेलिकाॅप्टर शाॅट से धोनी ने बाॅलर की बाॅलिंग और कप्तान की प्लानिंग न जाने कितने बार बिगाड़ी है। कई गेम बदले। मुद्दा यह है कि जिंदगी में बाजी पलटने के लिए ऐेसा ही हेलिकाॅप्टर शाॅट आपके पास भी होना चाहिये।  हेलिकाॅप्टर शाॅट सीखने के लिए धोनी ने अकूत पसीना और मेहनत बहाई है। इसको मारते-मारते उनकी कलाइयां इतनी मजबूत हो र्गइं कि गेंद को उड़ाने के लिए उन्हें बस इशारा भर चाहिये। हेलिकाॅप्टर शाॅट क्रिकेट के सिलेबस का हिस्सा न होते हुए भी हमेशा के लिए क्रिकेट की किताब में दर्ज हो चुका है। क्या है हेलिकाॅप्टर शाॅट? इसकी व्याख्या की जाए तो सरल भाषा में

जीवों की बदली जिंदगी, घाटों पर घड़ियाल

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हस्तिनापुर सेंक्चुरी में छोड़े गए घड़ियालों की फाइल फोटो।  मानव के हस्तक्षेप से वन्य जीवों के हैबिटेट उजड़े और कम हुए हैं। इंसान जबरन जानवरों के घर में घुस गया। अतिक्रमण कर उनके आशियाने उजाड़ दिए। प्रदूषण ने जलीय जीवों को नुकसान पहुंचाया। कोरोना काल में मनुष्य ही नहीं वन्य जीवों की जिंदगी पर भी असर पड़ा है। इंसानी दखल और प्रदूषण से कुछ समय के लिए ही सही, मुक्ति मिली। एकांत बढ़ते ही वन्य जीवों ने अपने विचरण का दायरा बढ़ा दिया। गंगा के घाटों पर घड़ियाल दिखाई दिए। डाॅल्फिन के फुदकने की जगह बढ़ गई। दिल्ली के पास हस्तिनापुर सेंक्चुरी में  वन्य जीवों ने राहत की सांस ली। सोशल मीडिया पर कई जगहों से फोटो और वीडियो वायरल हुए, जिनमें शहरों में हिरण, सांभर, तेंदुओं को घूमते देखा गया।  हस्तिनापुर सेंक्चुरी क्यों है खास? गंगा में फुदकती डॉल्फिन।  दिल्ली से करीब ११७  किमी दूर है हस्तिनापुर वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी। यह 1986 में घोषित हुई थी। मेरठ, मुजपफरनगर, गाजियाबाद, बिजनौर और अमरोहा जिले के करीब 2073 वर्ग किमी में फैली है। हस्तिनापुर सेंक्चुरी की खास बात जान लीजिए कि यह देश की पहली ऐसी सेंक्चुरी है, जहां पर घड

आउटिंग के लिए मुर्दों का बहाना

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फोटो इंटरनेट से ली गई है। लाॅकडाउन के बाद अनलाॅक शुरू होने से थमी जिंदगी फिर से दौड़ने लगी है। वैसी तो नहीं, जैसी पहले थी। पर महीनों घर में लुटलुटी करने के बाद गड्डी पुनः छलांगा मारने लगी है। घूमने-फिरने वाले अपनी रौ में लौट रहे हैं। चाहे इसके लिए उन्हें जो बहाना बनाना पड़े। सड़कों पर दौड़ती गाड़ियां और जाम से जिंदगी हलकान होनी शुरू हो गई है। दिल्ली-एनसीआर वाले अब उत्तराखंड की मस्तियां को मिस नहीं कर रहे। एसयूवी दनादन दौड़ रही है। वीकएंड की रवानगी लौट आई है। इसके लिए लोग मुर्दों का भी बहाना बना रहे हैं। लौट आया हैवी ट्रैफिक  24 मार्च को देश में लाॅकडाउन लगा था। करीब तीन सप्ताह टोल टैक्स बंद रहे। टोल वाहनों की आवाजाही का रिकाॅर्ड बताने के लिए एक पुख्ता माध्यम हैं। एनसीआर वाले घूमने के लिए उत्तराखंड का रूख करते हैं। आसपास में यह उनका पसंदीदा डेस्टिनेशन है। पहाड़, हरियाली, पानी, जंगल और एकांत की खोज यहां पूरी होती है। लाॅकडाउन में चक्का जाम हो गया था। उत्तराखंड के रास्ते पर मेरठ में बने पश्चिमी यूपी टोल से रोजाना गुजरने वाले भारी वाहनों की संख्या करीब 25 से 30 हजार रहती है। लाॅकडाउन के समय यह घट

सफर के लिए ये सबक जरूरी है

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आपके साथ कभी ऐसा हुआ है। कार से जा रहे हो। अकेले या परिवार साथ में है। मंद संगीत और खुशनुमा पल। अचानक से कोई ओवरटेक करके अपनी गाड़ी आपकी कार के सामने लगा दे। बहस करने लगे। मरने-मारने पर उतारू। गालियों की बौछार। दादागिरी का रौब। बदतमीजी की हद पार करते हुए एक सभ्य नागरिक का परिचय देने वाला मिला है कोई। यह सवाल बेतुका नहीं है। बहुत से लोग हैं, जिन्होंने ऐसे कटु अनुभव फील किए हैं। ट्रैफिक और सिविक सेंस का तो हाल आपको पता ही है। ऐसी घटनाएं बताती हैं कि हमारा समाज और मनोदशा किस दिशा में जा रही है।  दोस्त के साथ हाल में हुई एक घटना ने ये जिक्र करने को मजबूर कर दिया। फिक्र करने की बात इसलिए है, ऐसे किस्से और अनुभव हर किसी के पास होंगे। जिनके पास नहीं हैं, वह खुद को खुशनसीब समझे। पहले कट इन शाॅट किस्सा सुनिये। दोस्त की गाड़ी को एक ऑटो वाले ने लहराते हुए ओवरटेक किया। भाई ठीक से चला ले कहना, उसको भारी पड़ गया। कुछ दूर जाकर ऑटो वाले जनाब ने फिल्मी स्टाइल में कार के आगे ऑटो लगाकर भिड़ने की पुरजोर कोशिश की। कहने के लिए इलाका उसका था। इसलिये लोग भी उसके साथ आ गए, बिना यह जाने की गलती किसकी है। खैर, दोस्त

सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स की बदली प्रोग्रामिंग

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दूसरों के प्रोग्राम सैट करने वालों ने कभी सोचा न था कि एक दिन उनकी जिंदगी की प्रोग्रामिंग भी इस तरह बदल जाएगी। सॉफ्टवेयर इंजीनियर बड़ी-बड़ी कंपनियों के लिए सॉफ्टवेयर बनाते हैं। कोरोना ने इनकी लाइफ का डिजाइन बदल दिया है। वर्क फ्राम एनीवेयर इनके बलबूते ही संभव हुआ है। सरकार ने इनको दिसंबर तक घर से काम करने की आजादी दी है, लेकिन इंजीनियर अब इस आजादी से आजिज आ चुके हैं। जिंदगी का संतुलन गड़बड़ा रहा है। इनकी वजह से कई शहरों की आर्थिक श्रृंखला टूट रही है। इससे दूसरों का भी जीवन प्रभावित हो रहा है। फरवरी से नहीं मनाया बर्थ डे ग्रेटर नोएडा निवासी सिद्धार्थ सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। वह बताते हैं कि लाॅकडाउन के दौरान एक महीने घर से काम किया, लेकिन मैनेज नहीं हुआ। अब ऑफिस से काम कर रहा हूं। लेकिन पहले जैसा बात नहीं है। पार्टी और मस्ती को बहुत मिस कर रहा हूं। ऑफिस में आखिरी बार फरवरी में एक कुलीग का बर्थडे मनाया गया था। वर्क प्लेस के अपने फायदे हैं। काम करने के माहौल के अलावा कुलीग के साथ शेयरिंग और कुछ मौजमस्ती भी हो जाती थी। वह अब बंद है।  बिगड़ गया संतुलन सॉफ्टवेयर इंजीनियर रविंद्र कादियान का मानना है

खुद को खुरचकर देखिये जरा

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मंडे पाॅजिटिव कभी खुद को खुरेचकर देखा है? खून, हाड़, मांस ही नहीं अंदर एक शख्सियत भी छिपी बैठी है। क्या आप उसे जानते हैं? नहीं जानते तो खुरचकर देखिये। खुद की खोज करने के लिए इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता। मोटीवेशन की शुरूआत बाहर से नहीं अंदर से होती है। खुरचेना का मुतलब चाकू-वाकू, छुरियां-वुरियां चलाने से नहीं है। उस ब्लेड से भी नहीं जो बाली उम्र में नसों पर चल जाया करता है। विचारों का हथियार अपने शरीर पर आजमाइये। दिमाग पर धार आ जाएगी। शरीर दमकने लगेगा। आंखें वो देखने लगेंगी, जो पहले नजर नहीं आ रहा था। भविष्य की पिक्चर क्लियर होने लगेगी। अंडर एस्टिमेट सिंड्रोम  अंडर एस्टिमेट नामक सिंड्रोम प्रतिभाओं को निगल रहा है। जिस तरह बीमारी लक्षण दिखाती है, वैसे ही प्रतिभा और काबिलियत भी दिखती है। इन लक्षणों को नजरअंदाज करने की फितरित को अंडर एस्टिमेट सिंड्रोम कहते हैं। निम्न और मध्यम वर्ग में यह खासतौर से पाया जाता है। ऐसा लगता है कि कुछ लोग तो इसलिए अवतरित हुए हैं कि वो अंडर एस्टिमेट सिंड्रोम का शिकार बन सकें। वह अपनी प्रतिभा को खुद ही स्वीकार नहीं करते तो भला दूसरा कैसे करेगा। कुछ को उनकी प्रतिभ

खुलेंगे स्कूल, बन रही गाइडलाइन

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कोरोना ने सबसे ज्यादा और लंबा किसी पर असर डाला है तो वे हैं बच्चे। करीब साढ़े चार महीने से स्कूल और काॅलेज बंद हैं। कब खुलेंगे पता नहीं। करीब 33 करोड़ छात्र-छात्राओं की पढ़ाई को कोरोना ने प्रभावित किया है। इस वक्त सरकारों के सामने स्कूल खोलना सबसे बड़ा चैलेंज है। डब्ल्यूएचओ की चीफ साइंटिस्ट सौम्या स्वामीनाथन ने कहा है कि राज्य सरकारों को बंद स्कूल खोलने की रणनीति बनानी चाहिये। बच्चों के सीखने की क्षमता प्रभावित हो रही है। वह दूसरी दुश्वारियां का शिकार बन रहे हैं। उनकी जिंदगी प्रभावित हो रही है। शैक्षिक संस्थाएं स्कूल खोलने की गाइडलाइन पर काम कर रही हैं। जल्द ही इस पर कुछ ऐलान हो सकता है।  पहले सीन को समझिये देश में करीब 20 करोड़ विद्यार्थी स्कूल एजूकेशन में हैं। मतलब वह सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में नर्सरी से 12वीं तक की पढ़ाई कर रहे हैं। मार्च के आखिर में स्कूल बंद हो गए थे। उच्च शिक्षा लेने वाले विद्यार्थियों का आंकड़ा करीब 13 करोड़ है। ये संस्थान भी बंद हैं। पढ़ाई, दाखिला और पेपर कुछ भी नहीं हुआ है। फाइनल ईयर के परीक्षा कराने की कोशिश की जा रही है। दिल्ली यूनिवर्सिटी ने ऑनलाइन फाइनल ईयर की

एक वीरांगना जो चलाती थी बंदूक

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दुर्गा भाभी का फाइल फोटो । देश की आजादी में महिलाओं का योगदान कम नहीं है। रानी लक्ष्मीबाई से लेकर सरोजनी नायडू और बेगम हजरत महल तक अग्रिम पंक्ति में कई नाम हैं। वीरता की इस श्रंखला में एक नाम है दुर्गा भाभी। ऐसी वीरांगना जिससे अंग्रेज भी थर-थर कांपते थे। क्रांतिकारियों के लिए भाभी और अंग्रेजों के लिए शामत थीं दुर्गा। वह क्रांतिकारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलीं। गोली चलाने में भी पीछे नहीं हटी। पति खोया, जेल गईं पर कदम नहीं डिगे। क्रांति की मशाल के साथ शिक्षा की अलख भी जगाई। देश की आन, बान और शान के लिए दुर्गा देवी उर्फ दुर्गा भाभी ने अपना सर्वस्व कुर्बान कर दिया। उनकी वीरता के किस्सों के बिना आजादी की महान गाथा पूरी नहीं हो सकती। वे महिलाओं के लिए प्रेरणा बनीं।  दुर्गा से ऐसे बनीं भाभी दुर्गा भाभी का जन्म आठ अक्तूबर 1902 को कौशांबी जिले के शहजादपुर गांव में हुआ था। पिता इलाहाबाद  कलेक्ट्रट में नाजिर थे। दुर्गा भाभी का विवाह 10 साल की उम्र में लाहौर निवासी भगवत चरण वोहरा के साथ हो गया था। ससुर शिवचरण रेलवे में अधिकारी थे। उन्हें राय साहब कहा जाता था। 1920 में पिता के देहांत के बाद

क्या आप फोन की तरह स्मार्ट हैं?

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हर किसी के हाथ में स्मार्टफोन है। पर सवाल यह है कि क्या हम भी फोन की तरह स्मार्ट हैं? कर्नाटक में हुए दंगे को देखकर तो ऐसा नहीं लगता। फेसबुक पर डाली गई एक पोस्ट से पता चल गया कि हम कितने स्मार्ट और अनसोशल हैं। तीन लोगों की जान चली गई और 150 घायल हैं। आगजनी में सालों से कायम सौहार्द भी जल गया। अब एकता और भाईचारे की कितनी भी पोस्ट डाल लो, नुकसान और जान लौटने वाली नहीं हैं। सौहार्द का पता नहीं कब तक लौटेगा। ये अंजाम है एक आपत्तिजनक पोस्ट का।  यह है मामला कर्नाटक की राजधानी बंगलूरू में कांग्रेस विधायक अखंड श्रीनिवास मूर्ति के भतीजे नवीन ने फेसबुक पर एक आपत्तिजनक पोस्ट डाल दी थी। इसके बाद हिंसा भड़क गई। उपद्रवियों ने विधायक के घर और डीजे हल्ली पुलिस स्टेशन पर हमला कर आग लगा दी। 300 से ज्यादा गाड़ियां फूंक दी। पुलिस को गोली चलानी पड़ी। तीन लोगों की मौत हो गई। 60 पुलिस वाले भी घायल हुए हैं। पुलिस ने 150 लोगों को गिरफ्तार किया है। आरोपी को पकड़ लिया है। उसने अपना फेसबुक अकाउंट हैक होने की बात कही है। तारीफ की बात यह है कि इस दौरान मुस्लिम भाईयों ने घेरा बनाकर उपद्रवियों से एक मंदिर की रक्षा की। कब

लौटकर पाॅलिटिशियन घर को आए

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रूठना भी एक कला है। जो इसमें माहिर हैं, वो इसे कैश करना जानते हैं। रूठने और मनाने के किस्से प्रेमियों के बारे में सुने जाते हैं, लेकिन पाॅलिटिशियन भी इस विधा में निपुण हैं। चुनाव के आसपास उनके रूठने का सीजन रहता है। टिकट और पद के लिए वह कभी भी रूठ सकते हैं। रूठों को मनाने में रिश्ते बड़े काम आते हैं। राजनीति भी इसका अपवाद नहीं है। दो डिप्टी सीएम के मामलों में यह साबित हुआ है। राजस्थान सरकार संकट टला  कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और डिप्टी सीएम सचिन पायलट के रूठने से राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस की नींद हराम हो गई थी। राहत की बात यह है कि वह अब मान गए हैं। और घर लौट आए हैं। वैसे वो पार्टी से कहीं गए नहीं थे, उनका प्लेन सेफ लैंडिंग के लिए जमीन तलाश रहा था। पायलट को मनाने में पारिवारिक और करीबी रिश्तों का अहम रोल रहा।  फैमिली फैक्टर आया काम सचिन पायलट का फाइल फोटो ।  नाराजगी दूर करने में अपने बड़े काम आते हैं। सचिन पायलट के केस में टूटे तार जोड़ने में रिश्तों की डोर काम आई। सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे हैं। उनके परिवार का पार्टी के साथ पुराना और गह

शायरी के जुगनू का चले जाना

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शेर-ओ-शायरी के शौकीनों के लिए राहत इंदौरी का चले जाना एक गहरा सदमा है। कवि सम्मेलन और मुशायरों में राहत इंदौरी की मौजूदगी जुगनू की तरह थी। हर आंख उनको तलाशती। उन्हें देख लेने पर ही दिल को राहत मिलती। राहत साहब कब आएंगे, यह कानाफूसी होती रहती। महफिल लूटने में राहत साहब बड़े माहिर थे। उनके हाथ में माइक आते ही थकान भाग जाती। न जाने कितनी महफिलों को उन्होंने रोशन किया। अफसोस जिंदगी की महफिल छोड़कर ये जुगनू दूसरी दुनिया को रोशन करने चला गया। साहित्य का जब स भी मालूम नहीं था, तब से राहत इंदौरी का नाम सुनते आ रहा हूं। कई कवि सम्मेलन और मुशायरों में उनको सुनने का मौका मिला। इंटरव्यू भी किया। सांवली सूरत और सरल स्वभाव का धनी व्यक्तित्व हर किसी के दिल में उतर जाता था। धीरे से नब्ज पकड़ना उन्हें बखूभी आता था। शायरी में आशिकी को उन्होंने उस मकाम तक पहुंचाया, जहां से उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। मोहब्बत के सिवा भी वह कम मारक नहीं थे। उनके शब्द खंजर बनकर जहन को लहूलुहान कर देते थे और कमाल की बात यह है कि आह की जगह वाह-वाह निकलती। ऐसे थे राहत। उनका अंदाज कातिल था। वह शब्द फेंकते और लोग उनमें लिपटकर उनकी

महानगरों में योग पर चोट

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  दुनिया में भारत योग के लिए जाना जाता है। करीब पांच हजार साल पुरानी इस पद्धति को आज विश्व आत्मसात कर रहा है। दिनोंदिन योग का भोग बढ़ता जा रहा है। इस बीच कोरोना महामारी ने योग के टीचर्स पर गहरी चोट की है। एक झटके में हजारों योगियों को आत्मनिर्भर से बेरोजगार कर दिया। उनको पलायन को मजबूर होना पड़ा। दिल्ली, नोएडा, गुड़गांव, फरीदाबाद और गाजियाबाद जैसे महानगरों में अचानक योगा ट्रेनर खाली हो गए हैं। कुछ ऑनलाइन क्लास दे रहे हैं, लेकिन इनकी संख्या सीमित है। दिल्ली और नोएडा में अभी योगा सेंटर बंद हैं।  पर्सनल ट्रेनिंग में शर्त महानगरों में योग की खासी मांग है। आधुनिक लाइफस्टाइल अपने साथ कई बीमारी भी लेकर आई। बीपी, डायबिटीज, हाइपरटेंशन, तनाव जैसी बीमारियों ने योगा की मांग बढ़ा दी। दिल्ली और नोएडा में योग के ट्रेनर उमेश का कहना है कि एनसीआर में अचानक हजारों योग के टीचर बेरोजगार हो गए हैं। ये वो लोग हैं जो योगा सेंटर, पार्क और कोठियों में योग सिखा रहे थे। कोरोना ने इनका रोजगार छीन लिया। मजबूरन इनको अपने घर लौटना पड़ा। सरकार ने अनलाॅक तीन में जिम खोलने की मंजूरी दे दी है, लेकिन दिल्ली और नोएडा में अभी य

एक जैवलिन थ्रोअर, गांव से एशियन गेम्स तक

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अन्नू रानी। देश की नंबर वन महिला जैवलिन थ्रोअर किसी परिचय की  मोहताज नहीं हैं। वह मेरठ के छोटे से गांव बहादुरपुर से निकलकर एशियन गेम्स और एशियन चैंपियनशिप में तिरंगा लहरा चुकी हैं। सात बार नेशनल रिकॉर्ड बनाने वाली अन्नू की निगाह अब टोकियो ओलंपिक पर टिकी है। खेत में बांस फेंकने से लेकर इंटरनेशनल स्टेडियम में भाला फेंकने तक की दूरी तय करना गांव की इस सीधी साधी लड़की के लिए आसान नहीं था। कदम-कदम पर बाधाएं थीं। पर वह रूकी नहीं। अन्नू की कहानी किसी को भी प्रेरित कर सकती है।   दीवार कर दी थी छलनी अन्नू के संघर्ष का कुछ हद तक मैं भी साक्षी रहा हूं। इसलिए आंखों देखी बताता हूं। बात करीब 10 साल पुरानी है। मैं मेरठ में पत्रकारिता कर रहा था। अन्नू के संघर्ष और हुनर के बारे में सुना तो तय किया एक दिन उसके गांव जाकर लाइव रिपोर्टिंग करूंगा। मैं और मेरे सीनियर फोटोग्राफर साथी सुनील कैथवास अन्नू के गांव पहुंच गए। गर्मी के दिन थे। सुबह के करीब साढ़े पांच बजे होंगे। अन्नू के पिता अमरपाल सिंह को फोन लगाया। वह बोले गांव के बाहर प्राइमरी स्कूल में प्रैक्टिस कर रहे हैं। हम दोनों वहां पहुंचे। स्कूल के बाहर एक प

एजूकेशन का सबसे बड़ा ट्रायल आज!

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शिक्षा की गाड़ी को पटरी पर लाने के लिए देश में आज एक बड़ा ट्रायल होने जा रहा है! यूपी की बीएड प्रवेश परीक्षा 2020 में 73 जिलों में 431904 स्टूडेंट्स परीक्षा देने जुटेंगे। परीक्षा से एकेडमिक गतिविधियों का भविष्य तय होगा। कोरोना के दौर में ऑफलाइन होने वाली यह सबसे बड़ी एकेडमिक गतिविधि है। इसके लिए व्यापक इंतजाम किए गए हैं। मास्क, सैनिटाइजर, सोशल डिस्टेंसिंग, थर्मल स्केनिंग का शब्दश: पालन होगा।  नकल से ज्यादा कोरोना पर फोकस  प्रवेश परीक्षा कई मायने में अहम है। यह कोरोना काल में होने वाली पहली परीक्षा के रूप में इतिहास में दर्ज होगी। नकल रोकने से ज्यादा कोरोना पर फोकस है । ऐसा नहीं है कि नकल की कोई छूट है। सेंटर बनाने से लेकर परीक्षा के संचालक तक में कोविड केयर को तवज्जो दी गई है। मास्क लगाना अनिवार्य है। सेंटर पर भीड़ जमा नहीं होने दी जाएगी। यातायात व्यवस्था की भी परीक्षा एजूकेशन सिस्टम के अलावा परिवहन व्यवस्था की भी परीक्षा होगी। अभ्यर्थी के अलावा उनको परीक्षा दिलाने के लिए साथ में परिजन भी आते हैं। इस तरह आंकड़ा चार लाख से कहीं अधिक हो जाएगा। बस अड्डे और रेलवे स्टेशन पर भीड़ न हो यह सुनिश्चित

राधा कैसे न जले...

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वैसे रोमांटिक होने का माहौल कतई नहीं है। सावन का महीना भी चला गया और पवन ने भी वैसा शोर नहीं किया, जिसके लिए वह कुख्यात है। रासलीला के राजा और प्रेम के पुजारी बांके बिहारी श्रीकृष्ण का जन्म उत्सव आने वाला है। 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई जाएगी। राधा-कृष्ण के किस्से याद किए जाएंगे। पीले वस्त्र पहनकर खूब प्यार की बांसुरी बजेगी। लेकिन आज की राधाएं इन दिनों अंदर से काफी जल-भुन रही हैं। बांसुरी तो छोड़ो पीपनी भी नहीं बज पा रही। राधा अविवाहित हो या शादीशुदा दोनों के सामने धर्म संकट है।  माॅल का नहीं माहौल आधुनिक प्यार कहीं परवान चढ़ता है तो वह जगह है माॅल। यह प्यार का वो हेरिटेज है जो अभी तक यूनेस्को की नजर से बच हुआ है। मल्टीप्लेक्स और ब्रांडेड आउटलेट के काॅरिडोर प्यार की अनगिनत गाथाओं के साक्षी हैं। जिसे फुटफाॅल कहते हैं, वह इन्हीं से जेनरेट होता है। माॅल खुलते ही उसे गुलजार करने वालों में इनका अहम योगदान रहता है। माॅल खुल चुके हैं, लेकिन फुटफाॅल का अभी टोटा है। शाॅपिंग का बजट नहीं है। मास्क के चलन में आ जाने से लिपिस्टक अंडरग्राउंड हो गई है। सिनेमा बंद है। ऐसे में बेकार में खतरे क्यों मोल ले

वक्त ही तो है गुजर जाएगा

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  वक्त जैसा भी हो गुजर जाता है। इसकी फितरत में फरेब है। यह एक जगह टिकता ही नहीं। कभी अच्छा तो कभी बुरा। चलता ही रहता है। आज खुशी दे रहा है तो कल गम दे सकता है। वैसे भी मुसीबत बताकर थोड़ी आती है। माना कि अच्छे दिन आना बाकी है, पर एवरी क्लाउड हैज ए सिल्वर लाइन। रात कितनी भी अंधियारी क्यों न हो सवेरा जरूर होता है। अगर ऐसी सोच हम अपनी रखेंगे तो यह वक्त भी गुजर जाएगा। एक कहानी है। एक हाथी था। वह खूंटे से बंधा हुआ था। एक व्यक्ति वहां से गुजरा तो यह देखकर हैरान रह गया। सोचा भला इतना विशाल हाथी खूंटे से कैसे बंधा रह सकता है। चाहे तो वह उसे एक झटके में तोड़ सकता है। व्यक्ति ने हाथी के मालिक से इसका राज पूछा। मालिक ने बताया कि उसने हाथी को बचपन से पाला है। जब वह छोटा था तो तब से उसे वह रस्सी से इस तरह बांधता था। बचपन में उसने हजारों बार रस्सी तोड़ने की कोशिश की, लेकिन तोड़ नहीं पाया। यह बात उसके मन में घर कर गई कि रस्सी उससे टूटने वाली नहीं है। इसलिए वह अब रस्सी तोड़ने की कोशिश ही नहीं करता। इसलिए मन का मजबूत होना बहुत जरूरी है। प्रैक्टिकल अप्रोच अनाएं माना कि इस वक्त सबके सामने अनेक समस्याएं हैं। बच

विश्वव्यापी श्रीराम

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श्रीराम सिर्फ एक नाम नहीं है। वह एक संस्कृति है, एक पूरा युग है। अध्यात्मक दृष्टि से राम लाखों करोड़ों लोगों के जीवन में रचे-बसे हैं। अयोध्या में तो रामलला अब विराजमान होंगे, किंतु लोगों के मन में तो वह हजारों साल से विद्यमान हैं। घर-घर में उनका ठिकाना है। कण-कण में उनकी मूरत है। बिना राम के तो यहां रहीम भी नहीं है। जहां राम को रहीम और रहीम को राम के साथ रखा जाता हो, ऐसी संस्कृति किसी और देश में नहीं मिलेगी। मर्यादा पुरषोत्तम को भारत ही नहीं पूरे विश्व में पूजा जाता है। हिंदू ही नहीं मुस्लिम राष्ट्रों में भी राम का अस्तित्व है।  इंडोनेशिया में राम श्रीराम सिर्फ भारत में पूज्य नहीं हैं। दुनिया में उनकी अराधना का डंका बजता है। इंडोनेशिया में करीब 90 प्रतिशत मुस्लिम हैं। फिर भी उनकी संस्कृति पर राम की गहरी छाप है। फादर कामिल बुल्के 1982 में लिखते हैं 35 साल पहले मेरे एक मित्र ने जावा के किसी गांव में एक मुस्लिम शिक्षक को रामायण पढ़ते देखा तो  पूछा कि आप रामायण क्यों पढ़ते हैं। उत्तर मिला कि मैं और अच्छा मनुष्य बनने के लिए रामायण पढ़ता हूं। रामकथा पर आधारित जावा की प्राचीनतम कृति रामायण काकावी

खुल जा जिम-जिम, कब लौटेंगे पुराने दिन?

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गाजियाबाद में जिम खुलने से पहले सफाई करते कर्मचारी। चार महीने से बंद जिम आज खुलेंगे। सिक्स पैक पर इतराने वाले इन दिनों पेट छिपाकर चल रहे हैं। किसी का एक इंच तो किसी का दो इंच बाहर आ चुका है। जिम खोलने की गाइडलाइन आते ही संचालकों ने सैनिटाइजर की बारिश कराकर वर्कआउट एरिया पवित्र कर दिया है। नई गाइडलाइन ने काफी कुछ बदल दिया है। अब जिम पहले जैसे नहीं रहेंगे। आइये बदलाव और तैयारी की तस्वीर से आपको रूबरू कराते हैं। बीफोर और आफ्टर  जिम के नोटिस बोर्ड पर लगी बीफोर और आफ्टर की तस्वीर को हर कोई देखता है। संचालक के लिए यह ब्रांडिंग का विषय है तो क्लाइंट इसमें अपना कल खोजता है। ये सीन अब बदल चुका है। चार महीने में किसी का 4 किलो तो कोई 14 किलो अधिक वजन का स्वामी हो गया है। जिम के मिरर में बार-बार खुद को निहारकर डौले और छाती फुलाने वाले पेट फूलने से आहत हैं। बीफोर और आफ्टर का कांसेप्ट हिल चुका है। अब यह नए सिरे से परिभाषित होगा। जिम वाले हुए मोटे, हालत पतली कोरोना ने जिम संचालकों को खासी चोट पहुंचाई है। वह किसी तरह जिम का किराया भर या मैनेज कर रहे हैं। हालत पतली हो गई और दूसरो को स्लिम करने की टिप्

सैलून आया घर, राहत में कारीगर

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सैलून की होम सर्विस ने हजारों कारीगरों को दिया रोजगार ऑनलाइन बुकिंग सर्विस से चला रहे घर, बड़े शहरों में डिमांड कोरोना के दौर में नौकरी और व्यवसाय दोनों पर खतरे की तलवार लटकी है। लाखों नौकरियां जा चुकी हैं। बिजनेस बर्बादी की कगार पर हैं। मांग और सप्लाई का चक्र टूटने से देश का आर्थिक पहिया आगे की जगह पीछे की ओर घूम रहा है। इस वक्त सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाली इंडस्ट्रीज में से एक है सैलून इंडस्ट्री। अनलाॅक दो से सैलून खुल रहे हैं, लेकिन ग्राहक नहीं हैं। इस बीच सैलून की होम सर्विस में काफी इजाफा हुआ है। नोएडा, गाजियाबाद, गुड़गांव, फरीदाबाद और मुंबई जैस बड़े शहरों में होम सर्विस के लिए वेटिंग बढ़ रही है।  ओला-उबर की तर्ज पर काम इस संकट की घड़ी में लोगों ने काम करने और जीने के तौर तरीके बदले हैं। इसलिए भी होम सर्विस की मांग बढ़ी है। हेयर ड्रेसर को ओला और उबर टैक्सी सर्विस की तर्ज पर कमीशन देकर ऑनलाइन काम मिल रहा है। हालांकि कई कंपनी और बड़े सैलून पहले से होम सर्विस दे रहे थे। इस बीच उनके बिजनेस में बड़ा उछाल आया है। बुकिंग करके वह कारीगर को क्लाइंट का पता दे देते हैं। घर पर काम होने से ग्राहक भी