विंटर ब्रेक

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सर्दी अकेली नहीं आती। अपने साथ विंटर ब्रेक, कोहरा, गलन भी लाती है। पहाड़ों पर बर्फ और मैदान पर शीतलहर का राज चलता है। एक चीज और लाती है सर्दी अपने साथ। न्यू ईयर। नये साल के जोश में चूर हम ठंड को ओढ़ते और बिछाते हैं। होटल, रेस्टोरेंट और सड़क पर जश्न मनाते हुए सर्दी का स्वागत करते हैं। सड़क पर ही बहुत से लोगों को कड़कड़ाती सर्दी सीमित कपड़ों और खुले आसमान में गुजारनी होती है।  चाय, काॅफी पीते और तापते हुए बोलते हैं ऐसी नहीं पड़ी पहले कभी। सर्दी का यह तकियाकलाम अखबारों में रोज रिकाॅर्ड बनाती और तोड़ती हेडलाइन को देखकर दम भरता है। मुझे विंटर ब्रेक का इंतजार औरों की तरह नहीं रहता। मैं पहाड़ों की जगह अपनी रजाई में घूम लेता हूं। मनाली, नैनीताल और मसूरी में गाड़ियों की कतार मुझे अपनी ओर नहीं खींच पाती। क्योंकि पत्नी और बेटे की छुट्टी रहती है और बाहर हम कम ही जाते हैं इसलिए मेरे ड्यूटी कुछ सख्त हो जाती है। रूटीन बेपटरी होने की शुरुआत अलार्म नहीं बजने से होती है। देर से सोना और सुबह जब मन करे उठना यह एैब इंसान को बर्बाद कर सकता है। दुनिया से काट देता है।  सर्दी बच्चों को बेकाबू होने की छूट देती है। नहान

खुलेंगे स्कूल, बन रही गाइडलाइन

कोरोना ने सबसे ज्यादा और लंबा किसी पर असर डाला है तो वे हैं बच्चे। करीब साढ़े चार महीने से स्कूल और काॅलेज बंद हैं। कब खुलेंगे पता नहीं। करीब 33 करोड़ छात्र-छात्राओं की पढ़ाई को कोरोना ने प्रभावित किया है। इस वक्त सरकारों के सामने स्कूल खोलना सबसे बड़ा चैलेंज है। डब्ल्यूएचओ की चीफ साइंटिस्ट सौम्या स्वामीनाथन ने कहा है कि राज्य सरकारों को बंद स्कूल खोलने की रणनीति बनानी चाहिये। बच्चों के सीखने की क्षमता प्रभावित हो रही है। वह दूसरी दुश्वारियां का शिकार बन रहे हैं। उनकी जिंदगी प्रभावित हो रही है। शैक्षिक संस्थाएं स्कूल खोलने की गाइडलाइन पर काम कर रही हैं। जल्द ही इस पर कुछ ऐलान हो सकता है। 

पहले सीन को समझिये

देश में करीब 20 करोड़ विद्यार्थी स्कूल एजूकेशन में हैं। मतलब वह सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में नर्सरी से 12वीं तक की पढ़ाई कर रहे हैं। मार्च के आखिर में स्कूल बंद हो गए थे। उच्च शिक्षा लेने वाले विद्यार्थियों का आंकड़ा करीब 13 करोड़ है। ये संस्थान भी बंद हैं। पढ़ाई, दाखिला और पेपर कुछ भी नहीं हुआ है। फाइनल ईयर के परीक्षा कराने की कोशिश की जा रही है। दिल्ली यूनिवर्सिटी ने ऑनलाइन फाइनल ईयर की परीक्षा अभी शुरू की है।

स्कूल खोलने का फार्मूला

कोरोना के केस कम होने की जगह बढ़ रहे हैं। रणनीति की यह बड़ी चिंता है। फिर भी स्कूल कभी न कभी तो खोलने ही होंगे। देश में दो तरह के स्कूल हैं। सरकारी और प्राइवेट। जानकार मानते हैं स्कूल खोलने की शुरूआत सरकारी स्कूलों से हो सकती है। नार्थ ईस्ट और इसके अलावा कई ऐसे राज्य हैं, जहां पर केस की संख्या सीमित और नियंत्रित है। वहां पर विद्यार्थियों की संख्या भी कम है। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जा सकता है। सरकारी स्कूल में राज्य सरकार के स्कूल के अलावा 1235 केंद्रीय विद्यालय और करीब 650 नवोदय विद्यालय के स्कूल हैं। ये संगठन स्कूल खोलने की गाइडलाइन पर काम कर रहे हैं।

संस्थाएं कर रहीं तैयारी

इस सवाल का जवाब अभी किसी के पास नहीं है। लेकिन शैक्षिक संस्थाओं ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है। सूत्रों की माने तो सितंबर के आखिर या अक्तूबर में स्कूल खोलने की शुरूआत हो सकती है। इस बीच हायर एजूकेशन के संस्थान भी खोले जा सकते हैं। एक बार खुलने की शुरूआत हो गई तो बाकी भी उस दिशा में तेजी से आगे बढ़ेंगे। हायर एजूकेशन में प्राइवेट सेक्टर में मेडिकल काॅलेजों की ओर से पढ़ाई शुरू कराने की मांग की जा रही है। प्रतियोगी परीक्षा शुरू हो गई हैं। इस बीच एमएचआरडी ने पैरेंट्स से राय मांगी थी। अधिकांश ने अभी स्कूल न खोलने की सलाह दी है।

मंथन नहीं साॅल्यूशन चाहिये

महामारी का बच्चों की मनोदशा पर असर पड़ा है। वह मोबाइल पर ज्यादा समय बिता रहे हैं। फिजिकल और फेस टू फेस लर्निंग का चक्र टूट चुका है। कोरोना को लेकर मन में डर भी है। आउटडोर एक्टिविटी बंद है। दूसरी ओर गरीब बच्चे हैं, जिनके पास स्मार्टफोन नहीं है। उनकी पढ़ाई छूट चुकी है। मोबाइल है भी तो एक और पढ़ने वाले दो से तीन हैं। पढ़ाई कैसे हो। 

विदेशों से नहीं हो सकती तुलना

कोरोना प्रभावित ज्यादातर देशों में स्कूल अभी नहीं खुले हैं। विकसित देश जैसे अमेरिका और इंग्लैंड में अभी स्कूल नहीं खुले हैं। समझने वाली बात यह है कि ये देश ऑनलाइन मोड में हम से कहीं आगे हैं। संसाधन भी इनके पास अधिक हैं। इसलिए उनके लिए ऑनलाइन स्टडी विकल्प हो सकता है। हमारे नहीं। 

बच्चों का बढ़ रहा शोषण 

पढ़ाई छूटने के अलावा बच्चों के शोषण की खबरें भी आ रही हैं। यहां तक की माता-पिता का व्यवहार भी उनके प्रति पहले जैसा नहीं हैं। कभी खीज तो कभी गुस्सा आता है। बच्चों के प्रति हिंसा, बाल विवाह और दूसरी दुश्वारियां झेलनी पड़ रही हैं।

चलते-चलते : यह सच है इस वक्त दुनिया के सबसे ज्यादा संक्रमित केस रोज हमारे यहां आ रहे हैं। लेकिन हमें बच्चों के भविष्य और जिंदगी के बारे में भी सोचना है। प्रैक्टिकल और वैज्ञानिक अप्रोच से आगे बढ़ना होगा। जहां परिस्थितियां नियंत्रण में हैं, वहां से शुरूआत हो सकती है।


- विपिन धनकड़ 


#WHO#School#Guideline

टिप्पणियाँ

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  2. सुचिंतित आलेख
    दूरदर्शिता निरंतर बढ़ रही है आपकी....सादर।

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