जीवों की बदली जिंदगी, घाटों पर घड़ियाल
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हस्तिनापुर सेंक्चुरी में छोड़े गए घड़ियालों की फाइल फोटो। |
मानव के हस्तक्षेप से वन्य जीवों के हैबिटेट उजड़े और कम हुए हैं। इंसान जबरन जानवरों के घर में घुस गया। अतिक्रमण कर उनके आशियाने उजाड़ दिए। प्रदूषण ने जलीय जीवों को नुकसान पहुंचाया। कोरोना काल में मनुष्य ही नहीं वन्य जीवों की जिंदगी पर भी असर पड़ा है। इंसानी दखल और प्रदूषण से कुछ समय के लिए ही सही, मुक्ति मिली। एकांत बढ़ते ही वन्य जीवों ने अपने विचरण का दायरा बढ़ा दिया। गंगा के घाटों पर घड़ियाल दिखाई दिए। डाॅल्फिन के फुदकने की जगह बढ़ गई। दिल्ली के पास हस्तिनापुर सेंक्चुरी में वन्य जीवों ने राहत की सांस ली। सोशल मीडिया पर कई जगहों से फोटो और वीडियो वायरल हुए, जिनमें शहरों में हिरण, सांभर, तेंदुओं को घूमते देखा गया।
हस्तिनापुर सेंक्चुरी क्यों है खास?
गंगा में फुदकती डॉल्फिन। |
दिल्ली से करीब ११७ किमी दूर है हस्तिनापुर वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी। यह 1986 में घोषित हुई थी। मेरठ, मुजपफरनगर, गाजियाबाद, बिजनौर और अमरोहा जिले के करीब 2073 वर्ग किमी में फैली है। हस्तिनापुर सेंक्चुरी की खास बात जान लीजिए कि यह देश की पहली ऐसी सेंक्चुरी है, जहां पर घडियालों के पुर्नवास का काम चल रहा है। उत्तर प्रदेश का राज्य पक्षी सारस और स्टेट एनिमल बारहसिंघा दोनों यहां पाए जाते हैं। गंगा का दोआबा क्षेत्र वन्य जीवों के लिए स्वर्ग से कम नहीं है। घड़ियालों के पुर्नवास का अभियान 2009 में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के साइंटिस्ट संजीव यादव की देखरेख में शुरू हुआ। अब तक गंगा में 788 घड़ियाल छोड़े जा चुके हैं। घड़ियालों की निगरानी के लिए उनमें ट्रैकर लगाए गए हैं। गंगा की गर्भ में पलकर घड़ियाल काफी मोटे और लंबी हो चुके हैं। माशा आल्लाह तीन मीटर से अधिक लंबे हो गए हैं। बीच-बीच में इनकी नापतौल होती रहती है।
घाट से ही रही साइटिंग
बिजनौर से लेकर बुलंदशहर के नरौरा तक गंगा किनारे करीब 10 घाट हैं। इनमें बिजनौर, मकदूमपुर, तिगरी, गढ़, पूठ, अवंतिका देवी मंदिर, अनूपशहर, कर्णवास और राजघाट शामिल हैं। हर घाट पर आपको वाटर बोट दिख जाएंगी। घाट के आसपास घड़ियालों का हैबिटेट यानी घर हैं, लेकिन इंसानी दखल की वजह से आमतौर पर वहां नजर नहीं आते थे। संजीव यादव के मुताबिक लाॅकडाउन और अनलाॅक के दौरान घाट पर घड़ियालों की खूब साइटिंग हुई। इस बीच गंगा में प्रदूषण कम रहा। फैक्टियां बंद थीं। इसका असर दिखा। हालांकि सीवरेज बंद नहीं हुआ। घाट के आसपास के टापुओं पर घड़ियाल कभी-कभी नजर आते थे। एकांत मिलने की वजह से कह सकते हैं घाट के आसपास अपने घरों को घड़ियाल लौटे। आमतौर पर नरौरा के आसपास डाॅल्फिन की साइटिंग होती है। साइंटिस्ट शहनवाज खान के मुताबिक डाॅल्फिन का मूवमेंट जगह-जगह नजर आया। उन्होंने भी अपना दायरा बढ़ाया है। अब आसानी से साइटिंग हो रही है।
कोझिकोड में शहर में घुसे बिलाव का फाइल फोटो। |
शहर में आए, सोशल मीडिया में छाए
पिछले दिनों सोशल मीडिया पर शहर में वन्य जीवों के आने की फोटो और वीडियो वायरल हुई। चंडीगढ़ में एक सांभर घुस आया। उसके जेब्रा क्रासिंग पार करते हुए फोटो क्लिक हुई। यह वीडियो खूब वायरल हुई। कोझीकोड में एक जंगली बिल्ली बीच शहर में आ गई और हड़कंप मच गया। यह फोटो भी मीडिया में छाई रही। दिल्ली से सटे गाजियाबाद की वैशाली काॅलोनी में तेंदुआ आ गया। सीसीटीवी में वह कैद हो गया। देश ही नहीं दुनिया के कई इलाकों से शहरों में वन्य जीवों ने दस्तक दी। शेर से लेकर चीता तक सड़कों पर लुटलुटी करते नजर आए।
चलते-चलते : कोरोना की वजह से इंसानों पर ही नहीं जानवरों की जिंदगी पर भी असर पड़ा है। वन्य जीवों पर इसका सकारात्मक असर रहा। जो बताता है कि हमें इनकी जिंदगी में दखल नहीं देनी चाहिये।
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टिप्पणियाँ
Weldone 👍
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
हटाएंसर wild life पर आपकी शानदार वापिसी।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया।
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