गरमा गरम पकौड़े बुला रहे हैं
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विधि का विधान है कि बारिश में पकौड़े तले जाएं। एक-दूसरे को तलने से तो अच्छा है, जब-जब बारिश हो तो पकोड़े तलें जायें। मानसून के सीजन में चूल्हे पर कढ़ाई की चढ़ाई होती रहती है। मानो इंद्रदेव कह रहे हों, हे वत्स आलू और प्याज को बेसन में सान लो। जैसे मैं जलधारा बरसा रहा हूं, वैसे ही तुम तेल को कढ़ाई रूपी हवन कुंड में चढ़ा दो। छुन-छुन की आवाज से पड़ोसी को जलाओ और अपने पेट की ज्वाला का शांत कर लो। इससे तुम्हे पृथ्वी लोक पर स्वर्ग की अनुभूति होगी।
बेसन का असली मजा
मानसून मेहरबान चल रहा है तो रसोई में चिकनाई की खपत अचानक बढ़ गई है। कोलेस्ट्रॉल वाले भी इन दिनों पकौड़े का लुत्फ लूटने में मग्न हैं। रसोई की रंगत बदली-बदली सी है। बेसन का असली मजा लेने के जो दिन हैं। पकौड़े प्रतिस्पर्धा फील कर रहे हैं। छोटों को बड़ों से जलन हो रही है, क्योंकि सबकी नजर पहले उन पर ही होती है। प्याज के चाहने वाले भी कम नहीं हैं। प्लेट में पहले ही ताड़ लेते हैं कि किस आकृति में वह गुम है। गोभी और पालक विविधता को बढ़ावा देते हैं। इनके भी तलबगार हैं। मिर्च को मलाल रहता है कि उसका नंबर सबसे बाद में क्यों आता है। चटनी के बिना स्वाद अधूरा है। वह अलग जरूर रहती है, लेकिन उसके लिपटम-लिपटाई के बिना किसी को मजा नहीं आता। चटनी अपना सुराग छोड़ना नहीं भूलती।
तुम बनाती रही, हम खाते रहें
घर पर पकौड़े बनाना किसी त्योहार से कम नहीं है। चाहे जितने बना लो, कम ही पड़ने हैं। शुरुआत स्वाद से होती है और खत्म भी वहीं पर। आखिर में पेट भर जाता है, लेकिन स्वाद नहीं। दिल बेचारा कहता है तुम बनाती रहो, हम खाते रहें। बनाने वाली या वाला हमेशा घाटे में रहता है। उसे बचे-खुचे और ठंडे ही मिलते हैं। कई बार कम पड़ जाते हैं। पकौड़ों के स्वाद को चार चांद लगाती है चाय। बाहर बारिश और अंदर पकौड़ों की बरसात जिंदगी को तृप्त कर देती है।
समौसे भी कम नहीं
बारिश में पकौड़ों के साथ समौसों की भी डिमांड कम नहीं है। बूंदें गिरते ही समौसे की दुकान पर भीड़ लग जाती है। छाता लगाकर गरमा-गरम समौसे का इंतजार करते लोग इधर-उधर दिख जाएंगे। ऐसे में पैकिंग के ऑर्डर अधिक होते हैं। कढ़ाई का घान एडवांस बुकिंग के साथ तल रहा होता है। मन में नंबर आने की उत्सुकता हिलोरे मार रही होती है। ऑर्डर हाथ में आते ही अहसास स्विटजरलैंड का टिकट मिलने जैसे होता है। हो भी क्यों न म्हारे पकौड़े-समौसे क्या किसी से स्वाद में कम हैं।
चलते-चलते : पकौड़ों का स्वाद अच्छा लगे तो प्रतिक्रिया देकर जरूर बताएं।
- विपिन धनकड़
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टिप्पणियाँ
सही सर, मौके पर चौका।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंशुक्रिया।
हटाएंBahut khoob likha hai aapne.. Pakaude per dil aa gaya... Mausam bhi aur datoor bhi..bilkul muh main pani aa gaya..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी। पढ़ते रहिये।
हटाएंआपकी लेखनी का तो में हमेशा से क़ायल था
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
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