विंटर ब्रेक

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सर्दी अकेली नहीं आती। अपने साथ विंटर ब्रेक, कोहरा, गलन भी लाती है। पहाड़ों पर बर्फ और मैदान पर शीतलहर का राज चलता है। एक चीज और लाती है सर्दी अपने साथ। न्यू ईयर। नये साल के जोश में चूर हम ठंड को ओढ़ते और बिछाते हैं। होटल, रेस्टोरेंट और सड़क पर जश्न मनाते हुए सर्दी का स्वागत करते हैं। सड़क पर ही बहुत से लोगों को कड़कड़ाती सर्दी सीमित कपड़ों और खुले आसमान में गुजारनी होती है।  चाय, काॅफी पीते और तापते हुए बोलते हैं ऐसी नहीं पड़ी पहले कभी। सर्दी का यह तकियाकलाम अखबारों में रोज रिकाॅर्ड बनाती और तोड़ती हेडलाइन को देखकर दम भरता है। मुझे विंटर ब्रेक का इंतजार औरों की तरह नहीं रहता। मैं पहाड़ों की जगह अपनी रजाई में घूम लेता हूं। मनाली, नैनीताल और मसूरी में गाड़ियों की कतार मुझे अपनी ओर नहीं खींच पाती। क्योंकि पत्नी और बेटे की छुट्टी रहती है और बाहर हम कम ही जाते हैं इसलिए मेरे ड्यूटी कुछ सख्त हो जाती है। रूटीन बेपटरी होने की शुरुआत अलार्म नहीं बजने से होती है। देर से सोना और सुबह जब मन करे उठना यह एैब इंसान को बर्बाद कर सकता है। दुनिया से काट देता है।  सर्दी बच्चों को बेकाबू होने की छूट देती है। नहान

सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स की बदली प्रोग्रामिंग


दूसरों के प्रोग्राम सैट करने वालों ने कभी सोचा न था कि एक दिन उनकी जिंदगी की प्रोग्रामिंग भी इस तरह बदल जाएगी। सॉफ्टवेयर इंजीनियर बड़ी-बड़ी कंपनियों के लिए सॉफ्टवेयर बनाते हैं। कोरोना ने इनकी लाइफ का डिजाइन बदल दिया है। वर्क फ्राम एनीवेयर इनके बलबूते ही संभव हुआ है। सरकार ने इनको दिसंबर तक घर से काम करने की आजादी दी है, लेकिन इंजीनियर अब इस आजादी से आजिज आ चुके हैं। जिंदगी का संतुलन गड़बड़ा रहा है। इनकी वजह से कई शहरों की आर्थिक श्रृंखला टूट रही है। इससे दूसरों का भी जीवन प्रभावित हो रहा है।

फरवरी से नहीं मनाया बर्थ डे

ग्रेटर नोएडा निवासी सिद्धार्थ सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। वह बताते हैं कि लाॅकडाउन के दौरान एक महीने घर से काम किया, लेकिन मैनेज नहीं हुआ। अब ऑफिस से काम कर रहा हूं। लेकिन पहले जैसा बात नहीं है। पार्टी और मस्ती को बहुत मिस कर रहा हूं। ऑफिस में आखिरी बार फरवरी में एक कुलीग का बर्थडे मनाया गया था। वर्क प्लेस के अपने फायदे हैं। काम करने के माहौल के अलावा कुलीग के साथ शेयरिंग और कुछ मौजमस्ती भी हो जाती थी। वह अब बंद है। 

बिगड़ गया संतुलन

सॉफ्टवेयर इंजीनियर रविंद्र कादियान का मानना है कि आफिस घर आने से जिंदगी का संतुलन बिगड़ चुका है। पहले ऑफिस से शाम को छह-सात बजे घर आ जाता था। घर पर लैपटाॅप ऑन नहीं होता था। अब हर वक्त लैपटाॅप ऑन मोड पर रहता है। कभी भी काॅल आ सकती है। काम के 8-10 घंटे से बढ़कर 12-14 तक पहुंच गए हैं। कंपनियों को वर्क फ्राम होम से फायदा हुआ है। वन टाइम सैटअप देकर कर्मचारियों से काम लिया जा रहा है। बदलते दौर की यह जरूरत हो गई है। इससे कंपनी अपने खर्च कम कर रही हैं। कुछ कंपनियां काम और घर के बीच बिगड़ते संतुलन को लेकर चिंतित हैं। वह जल्द ही कर्मचारियों को ऑफिस बुलाने या बीच-बीच में बुलाने पर विचार कर रही हैं। 

यूरोपियन टाइमिंग की समस्या

सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स की वर्क लाइफ में एक बदलाव यह भी है कि मीटिंग कभी भी हो सकती है। पहले यह ऑफिस टाइम में ही होती थी। सॉफ्टवेयर इंजीनियर शैवाल सिंह का कहना है ज्यादातर मल्टीनेशनल कंपनियों के मुख्यालय बाहर हैं। अब काम ऑनलाइन हो रहा है तो कर्मचारी हर वक्त कंपनी की रडार पर रहते हैं। यूरोप  में ऑफिस बैठे बाॅस लोग जब मीटिंग काॅल करते हैं तो वह समय यहां सोने का हो रहा होता है। रात में 9-10 बजे भी मीटिंग बुलाई जा सकती है। महिला कर्मचारियों की परेशानी और अधिक है। उन्हें घर भी संभालना होता है। कभी बच्चे तो कभी डोरवेल परेशान करती है। 

सोसायटीज होने लगीं सुनसान

नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गुड़गांव, पूना, बंगलूरू जैसे महानगरों में सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की भरमार है। बहुत सारी हाउसिंग सोसायटी इन्हीं की वजह से गुलजार हैं। वर्क फ्राम होम होने से बहुत से लोग अपने घरों को लौट गए हैं। वहीं से काम कर रहे हैं। या आ जा रहे हैं। सोसायटीज सुनसान सी लगने लगी हैं। इस वजह से सब्जी वाले, काम वाली, प्रेस वाला, किराना, दूध आदि कई काम और व्यवसाय से जुड़े लोगों को आर्थिक नुकसान हुआ है। काम-धंधा पर असर पड़ा है।


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- विपिन धनकड़ 


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