विंटर ब्रेक
![चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgom4rVCBrnHj57ADIUzd9heX91xiU3IJDH-EzT8Pt6lYGkAxhEVedOJcO-hlcZ7i2B-sEtVt4VGSueqNoe0Y9CC9bcfZQceIdbhUb5thUHz6y_KSZuMtVsudYkGLD8ZMYfwXutSbmNcZa-BfnLSbM1nGj619ZwP-Z9UAv6d0PFCy82tvUnP6ixoa2rySEt/s320/Fire%202.jpg)
अन्नू रानी। देश की नंबर वन महिला जैवलिन थ्रोअर किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। वह मेरठ के छोटे से गांव बहादुरपुर से निकलकर एशियन गेम्स और एशियन चैंपियनशिप में तिरंगा लहरा चुकी हैं। सात बार नेशनल रिकॉर्ड बनाने वाली अन्नू की निगाह अब टोकियो ओलंपिक पर टिकी है। खेत में बांस फेंकने से लेकर इंटरनेशनल स्टेडियम में भाला फेंकने तक की दूरी तय करना गांव की इस सीधी साधी लड़की के लिए आसान नहीं था। कदम-कदम पर बाधाएं थीं। पर वह रूकी नहीं। अन्नू की कहानी किसी को भी प्रेरित कर सकती है।
अन्नू के संघर्ष का कुछ हद तक मैं भी साक्षी रहा हूं। इसलिए आंखों देखी बताता हूं। बात करीब 10 साल पुरानी है। मैं मेरठ में पत्रकारिता कर रहा था। अन्नू के संघर्ष और हुनर के बारे में सुना तो तय किया एक दिन उसके गांव जाकर लाइव रिपोर्टिंग करूंगा। मैं और मेरे सीनियर फोटोग्राफर साथी सुनील कैथवास अन्नू के गांव पहुंच गए। गर्मी के दिन थे। सुबह के करीब साढ़े पांच बजे होंगे। अन्नू के पिता अमरपाल सिंह को फोन लगाया। वह बोले गांव के बाहर प्राइमरी स्कूल में प्रैक्टिस कर रहे हैं। हम दोनों वहां पहुंचे। स्कूल के बाहर एक पुराना स्कूटर खड़ा था। अंदर दाखिल हुए तो अन्नू वार्मअप कर रही थीं। अन्नू को पहली बार देखते ही उसके जुनून का अंदाजा हो गया था। कुछ देर बाद नजर स्कूल की चारदीवारी पड़ी। दीवार का प्लास्टर जगह-जगह से छलनी था। दरअसल वे निशान अन्नू के भालों के थे, जो बता रहे थे कि इस होनहार खिलाड़ी को अब कोई चारदीवारी रोक नहीं सकती। अन्नू रोजाना अपने गांव के स्कूल में प्रैक्टिस किया करती थीं। स्कूल के बाहर खेत थे। कई बार ऐसा भी होता था कि भाला चारदीवारी को फांदता हुआ ईंख के खेत में चला जाता था। उसके पिता भाला खोजकर लाते।
अन्नू के संघर्ष और हुनर जब अखबार की सुर्खी बना तो धीरे-धीरे मदद का माहौल तैयार हुआ। उस वक्त अन्नू के पास प्रैक्टिस के लिए अच्छा भाला नहीं था। मेरा लिए यह संतोष की बात है कि इस होनहार खिलाड़ी की मदद में मैं भी थोड़ा योगदान कर पाया। तब अन्नू चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय की बीए की छात्रा थीं। पूर्व आईपीएस विक्रम चंद्र गोयल विश्वविद्यालय के कुलपति थे। खबरों से विवि और उनकी अथॉरिटी का ध्यान अन्नू की प्रतिभा की ओर दिलाया। आखिरकार स्पोर्ट्स कॉउन्सिल ने अन्नू को जैवलिन देने की मांग पर मोहर लगा दी।
अन्नू को परिवार का शुरू से ही सहयोग मिला। पांच भाई बहनों में अन्नू सबसे छोटी हैं। पिता अमरपाल सिंह हर कदम पर साथ खड़े रहे। गांव में जब भी अन्नू ने प्रैक्टिस की, एक भी दिन ऐसा नहीं गया जब वो उसके साथ नहीं थे। अमरपाल सिंह हर उस चौखट पर गए, जहां से अन्नू का रास्ता होकर गुजरता था। वो तमाम काम किए जो अन्नू के लिए जरूरी थे। अन्नू के पिता उसके संघर्ष और परिश्रम के सबसे बड़े साथी और साक्षी हैं।
खिलाड़ी बनने की कहानी कॉलेज में शुरू हुई। जैवलिन हाथ में कैसे आया इस पर अन्नू बताती हैं कि वह जब इंटर कॉलेज में पढ़ी रही थीं तो खेलों में बढ़-चढ़कर भाग लेती थीं। इंटर कॉलेजिएट चैंपियनशिप जीतने के लिए तीन खेलों में भाग लेना अनिवार्य था। शॉटपुट और डिस्कस थ्रो पसंदीदा खेल थे। जैवलिन को इसलिए चुना कि वह देखने में हल्का था। सोचा इसे तो मैं आराम से फेंक दूंगी। इस तरह जैवलिन थ्रो की शुरूआत हुई।
अन्नू का कहना है कि ग्रामीण और गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले सभी खिलाड़ियों को संघर्ष करना ही पड़ता है। शुरू में पैसे की तंगी रहती थी। पिता किसान हैं। कई बार खेलने जाने के लिए टिकट के भी पैसे नहीं होते थे। पिता किसी तरह मैनेज करते थे। वह दिन भूली नहीं हूं। खिलाड़ियों से कहना चाहती हूं कि खुद पर भरोसा रखें। अनुशासन में लगातार मेहनत करते रहें। ट्रेनिंग और कड़ी मेहनत से निखार आएगा। अपने टारगेट से भटके नहीं।
- विपिन धनकड़
#JavelinThrow#AsianGames#AnnuRani#MondayPositive
अनु की उन्नति का विकास क्रम आपने बहुत करीब से देखा और आगे बढ़ाने में मदद भी की है यह है अन्नू की हू ब हु जिंदगी का शब्द चित्र......
जवाब देंहटाएंaapka bhi yogdaan hai. thanx.
हटाएंअन्नू काफी मेहनती हैं । उन पर गर्व करते हैं हम सब। हमारे देश की शान हैं अन्नू
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
हटाएंअन्नू जैसे प्रतिभावान हीरे बहुत है यही तो हिंदुस्तान की शान है ऐसे अनमोल रत्नों को सदर नमन
जवाब देंहटाएंसर आपकी कलम का तोड़ नहीं है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
हटाएंबहुत अच्छा लिखा है।आशा करता हूं,आप ऐसे ही प्रतिभाओ की सतत मदद करये रहेगे।
हटाएंजी जरूर।
हटाएंउत्तम विपिन जी--राधा कैसे ना जले व खुल जा जिम जिम दोनो की सामग्री बहुत ही खूब रही। सटीक बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
हटाएंसंघर्ष से भरी यह कहानी सबके लिए प्रेरणा बने।
जवाब देंहटाएंआपने इसे पहचान देने में योगदान दिया...इसके लिए आप भी बधाई के पात्र हैं...
अन्नू जी को भावी प्रतियोगिताओं के लिए शुभकामनाएं...
पढ़कर अच्छा लगा...मेहनत कभी ज़ाया नहीं जाती....
साधुवाद।
जब आपने अन्नू पर पहली स्टोरी लिखी थी उसके संपादन और साज-सज्जा का सौभाग्य मुझे भी मिला था, कैथवास जी ने फ़ोटो भी शानदार उपलब्ध कराए थे।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सर। आपने उसे मांझकर चमकदार बनाया था।
जवाब देंहटाएं