विंटर ब्रेक

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सर्दी अकेली नहीं आती। अपने साथ विंटर ब्रेक, कोहरा, गलन भी लाती है। पहाड़ों पर बर्फ और मैदान पर शीतलहर का राज चलता है। एक चीज और लाती है सर्दी अपने साथ। न्यू ईयर। नये साल के जोश में चूर हम ठंड को ओढ़ते और बिछाते हैं। होटल, रेस्टोरेंट और सड़क पर जश्न मनाते हुए सर्दी का स्वागत करते हैं। सड़क पर ही बहुत से लोगों को कड़कड़ाती सर्दी सीमित कपड़ों और खुले आसमान में गुजारनी होती है।  चाय, काॅफी पीते और तापते हुए बोलते हैं ऐसी नहीं पड़ी पहले कभी। सर्दी का यह तकियाकलाम अखबारों में रोज रिकाॅर्ड बनाती और तोड़ती हेडलाइन को देखकर दम भरता है। मुझे विंटर ब्रेक का इंतजार औरों की तरह नहीं रहता। मैं पहाड़ों की जगह अपनी रजाई में घूम लेता हूं। मनाली, नैनीताल और मसूरी में गाड़ियों की कतार मुझे अपनी ओर नहीं खींच पाती। क्योंकि पत्नी और बेटे की छुट्टी रहती है और बाहर हम कम ही जाते हैं इसलिए मेरे ड्यूटी कुछ सख्त हो जाती है। रूटीन बेपटरी होने की शुरुआत अलार्म नहीं बजने से होती है। देर से सोना और सुबह जब मन करे उठना यह एैब इंसान को बर्बाद कर सकता है। दुनिया से काट देता है।  सर्दी बच्चों को बेकाबू होने की छूट देती है। नहान

एक जैवलिन थ्रोअर, गांव से एशियन गेम्स तक

अन्नू रानी। देश की नंबर वन महिला जैवलिन थ्रोअर किसी परिचय की  मोहताज नहीं हैं। वह मेरठ के छोटे से गांव बहादुरपुर से निकलकर एशियन गेम्स और एशियन चैंपियनशिप में तिरंगा लहरा चुकी हैं। सात बार नेशनल रिकॉर्ड बनाने वाली अन्नू की निगाह अब टोकियो ओलंपिक पर टिकी है। खेत में बांस फेंकने से लेकर इंटरनेशनल स्टेडियम में भाला फेंकने तक की दूरी तय करना गांव की इस सीधी साधी लड़की के लिए आसान नहीं था। कदम-कदम पर बाधाएं थीं। पर वह रूकी नहीं। अन्नू की कहानी किसी को भी प्रेरित कर सकती है। 

दीवार कर दी थी छलनी

अन्नू के संघर्ष का कुछ हद तक मैं भी साक्षी रहा हूं। इसलिए आंखों देखी बताता हूं। बात करीब 10 साल पुरानी है। मैं मेरठ में पत्रकारिता कर रहा था। अन्नू के संघर्ष और हुनर के बारे में सुना तो तय किया एक दिन उसके गांव जाकर लाइव रिपोर्टिंग करूंगा। मैं और मेरे सीनियर फोटोग्राफर साथी सुनील कैथवास अन्नू के गांव पहुंच गए। गर्मी के दिन थे। सुबह के करीब साढ़े पांच बजे होंगे। अन्नू के पिता अमरपाल सिंह को फोन लगाया। वह बोले गांव के बाहर प्राइमरी स्कूल में प्रैक्टिस कर रहे हैं। हम दोनों वहां पहुंचे। स्कूल के बाहर एक पुराना स्कूटर खड़ा था। अंदर दाखिल हुए तो अन्नू वार्मअप कर रही थीं। अन्नू को पहली बार देखते ही उसके जुनून का अंदाजा हो गया था। कुछ देर बाद  नजर स्कूल की चारदीवारी पड़ी। दीवार का प्लास्टर जगह-जगह से छलनी था। दरअसल वे निशान अन्नू के भालों के थे, जो बता रहे थे कि इस होनहार खिलाड़ी को अब कोई चारदीवारी रोक नहीं सकती। अन्नू रोजाना अपने गांव के स्कूल में प्रैक्टिस किया करती थीं। स्कूल के बाहर खेत थे। कई बार ऐसा भी होता था कि भाला चारदीवारी को फांदता हुआ ईंख के खेत में चला जाता था। उसके पिता भाला खोजकर लाते।

मेहनत रंग लायी

अन्नू के संघर्ष और हुनर जब अखबार की सुर्खी बना तो धीरे-धीरे मदद का माहौल तैयार हुआ। उस वक्त अन्नू के पास प्रैक्टिस के लिए अच्छा भाला नहीं था। मेरा लिए यह संतोष की बात है कि इस होनहार खिलाड़ी की मदद में मैं भी थोड़ा योगदान कर पाया। तब अन्नू चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय की बीए की छात्रा थीं। पूर्व आईपीएस विक्रम चंद्र गोयल विश्वविद्यालय के कुलपति थे। खबरों से विवि और उनकी अथॉरिटी का ध्यान अन्नू की प्रतिभा की ओर दिलाया। आखिरकार स्पोर्ट्स कॉउन्सिल ने अन्नू को जैवलिन देने की मांग पर मोहर लगा दी।

पिता बने सारथी

अन्नू को परिवार का शुरू से ही सहयोग मिला। पांच भाई बहनों में अन्नू सबसे छोटी हैं। पिता अमरपाल सिंह हर कदम पर साथ खड़े रहे। गांव में जब भी अन्नू ने प्रैक्टिस की, एक भी दिन ऐसा नहीं गया जब वो उसके साथ नहीं थे। अमरपाल सिंह हर उस चौखट पर गए, जहां से अन्नू का रास्ता होकर गुजरता था। वो तमाम काम किए जो अन्नू के लिए जरूरी थे। अन्नू के पिता उसके संघर्ष और परिश्रम के सबसे बड़े साथी और साक्षी हैं। 

इस तरह थाम लिया भाला

खिलाड़ी बनने की कहानी कॉलेज में शुरू हुई। जैवलिन हाथ में कैसे आया इस पर अन्नू बताती हैं कि वह जब इंटर कॉलेज में पढ़ी रही थीं तो खेलों में बढ़-चढ़कर भाग लेती थीं। इंटर कॉलेजिएट चैंपियनशिप जीतने के लिए तीन खेलों में भाग लेना अनिवार्य था। शॉटपुट और डिस्कस थ्रो पसंदीदा खेल थे।  जैवलिन को इसलिए चुना कि वह देखने में हल्का था। सोचा इसे तो मैं आराम से फेंक दूंगी। इस तरह जैवलिन थ्रो की शुरूआत हुई।

खुद पर भरोसा रखें, मेहनत करें

अन्नू का कहना है कि ग्रामीण और गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले सभी खिलाड़ियों को संघर्ष करना ही पड़ता है। शुरू में पैसे की तंगी रहती थी। पिता किसान हैं। कई बार खेलने जाने के लिए टिकट के भी पैसे नहीं होते थे। पिता किसी तरह मैनेज करते थे। वह दिन भूली नहीं हूं। खिलाड़ियों से कहना चाहती हूं कि खुद पर भरोसा रखें। अनुशासन में लगातार मेहनत करते रहें। ट्रेनिंग और कड़ी मेहनत से निखार आएगा। अपने टारगेट से भटके नहीं।

अब अन्नू : अन्नू रानी इस वक्त पटियाला में साई (स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) में इंडिया कैंप कर रही हैं। वह टोकियो ओलंपिक का टिकट पाने के लिए तैयारी में जुटी हैं। वर्तमान में अन्नू रेलवे में अधिकारी हैं। 


अन्नू का प्रोफाइल

  • देश की पहली महिला जैवलिन थ्रोअर जिसने 60 मीटर से अधिक भाला फेंका
  • सात बार नेशनल रिकॉर्ड बनाया। बेस्ट थ्रो 62.43 मीटर
  • 2014 में इंचोन में एशियन गेम्स में ब्रांज मेडल जीता
  • दो एशियन चैंपियनशिप में सिल्वर और ब्रांज मेडल जीता
  • पहली भारतीय महिला जो वर्ल्ड चैंपियनशिप में पहुंची, आठवीं रैंक
  • आईएएएफ वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में ब्रांज मेडल जीता


- विपिन धनकड़ 


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टिप्पणियाँ

  1. अनु की उन्नति का विकास क्रम आपने बहुत करीब से देखा और आगे बढ़ाने में मदद भी की है यह है अन्नू की हू ब हु जिंदगी का शब्द चित्र......

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  2. अन्नू काफी मेहनती हैं । उन पर गर्व करते हैं हम सब। हमारे देश की शान हैं अन्नू

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  3. अन्नू जैसे प्रतिभावान हीरे बहुत है यही तो हिंदुस्तान की शान है ऐसे अनमोल रत्नों को सदर नमन

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  4. सर आपकी कलम का तोड़ नहीं है।

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  5. उत्तम विपिन जी--राधा कैसे ना जले व खुल जा जिम जिम दोनो की सामग्री बहुत ही खूब रही। सटीक बधाई आपको।

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  6. संघर्ष से भरी यह कहानी सबके लिए प्रेरणा बने।
    आपने इसे पहचान देने में योगदान दिया...इसके लिए आप भी बधाई के पात्र हैं...
    अन्नू जी को भावी प्रतियोगिताओं के लिए शुभकामनाएं...
    पढ़कर अच्छा लगा...मेहनत कभी ज़ाया नहीं जाती....
    साधुवाद।

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  7. जब आपने अन्नू पर पहली स्टोरी लिखी थी उसके संपादन और साज-सज्जा का सौभाग्य मुझे भी मिला था, कैथवास जी ने फ़ोटो भी शानदार उपलब्ध कराए थे।

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  8. बिल्कुल सर। आपने उसे मांझकर चमकदार बनाया था।

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