विंटर ब्रेक

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सर्दी अकेली नहीं आती। अपने साथ विंटर ब्रेक, कोहरा, गलन भी लाती है। पहाड़ों पर बर्फ और मैदान पर शीतलहर का राज चलता है। एक चीज और लाती है सर्दी अपने साथ। न्यू ईयर। नये साल के जोश में चूर हम ठंड को ओढ़ते और बिछाते हैं। होटल, रेस्टोरेंट और सड़क पर जश्न मनाते हुए सर्दी का स्वागत करते हैं। सड़क पर ही बहुत से लोगों को कड़कड़ाती सर्दी सीमित कपड़ों और खुले आसमान में गुजारनी होती है।  चाय, काॅफी पीते और तापते हुए बोलते हैं ऐसी नहीं पड़ी पहले कभी। सर्दी का यह तकियाकलाम अखबारों में रोज रिकाॅर्ड बनाती और तोड़ती हेडलाइन को देखकर दम भरता है। मुझे विंटर ब्रेक का इंतजार औरों की तरह नहीं रहता। मैं पहाड़ों की जगह अपनी रजाई में घूम लेता हूं। मनाली, नैनीताल और मसूरी में गाड़ियों की कतार मुझे अपनी ओर नहीं खींच पाती। क्योंकि पत्नी और बेटे की छुट्टी रहती है और बाहर हम कम ही जाते हैं इसलिए मेरे ड्यूटी कुछ सख्त हो जाती है। रूटीन बेपटरी होने की शुरुआत अलार्म नहीं बजने से होती है। देर से सोना और सुबह जब मन करे उठना यह एैब इंसान को बर्बाद कर सकता है। दुनिया से काट देता है।  सर्दी बच्चों को बेकाबू होने की छूट देती है। नहान

भाषाओं के बढ़े भाव, संस्कृत निकलेगी श्लोकों से बाहर



मातृभाषा में पढ़ाई को लेकर गेंद रहेगी राज्यों के पाले में


नई शिक्षा नीति के बहाने भाषाएं चर्चा में हैं. मातृभाषा में पढ़ाई को लेकर बहस छिड़ चुकी है. संभव है कि आने वाले समय में आस्तीन चढ़ाकर इस पर विचार विमर्श का दृश्य देखने को मिले. साबित तौर पर कह सकते हैं कि हम भाषाओं को सीरियसली नहीं लेते. न अच्छे से हिंदी आती है और अंग्रेजी की तो पूछिए मत. देश में करीब 800 भाषाएं बोली जाती हैं. भाषा के धुरंधर होनहार ही होंगे इसकी कोई गारंटी नहीं दे सकता. भाषा भेदभाव की चीज नहीं है. यह तो लोगों को जोड़ती है. हमने ही हिंदी और अंग्रेजी वाली दीवारें खींची हैं. अहम है कि भाषा को लेकर हमारा भाव कैसा है. अगर वह अच्छा और सम्मान भरा है तो दिक्कत की कोई बात नहीं है. खैर, यह समय भाषाओं और उनकी व्यवहारिकता पर नजर डालने का है.

पांचवीं पास होंगे भाषा में तेज


वैज्ञानिक तथ्य है कि 85 प्रतिशत दिमाग का विकास छह साल की उम्र तक हो जाता है. इसलिए बच्चों की सीखने की क्षमता तेज होती है. नीति में बताया गया है कि दो साल से लेकर आठ साल तक की उम्र में बच्चे भाषा तेजी से सीखते हैं. ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस उम्र में अक्सर बच्चों पर हम ध्यान नहीं देते. अभी बच्चे ही तो हैं कहकर नजरअंदाज कर देते हैं. अंग्रेजी मीडियम में पढ़ रहे बच्चे अगर अंग्रेजी नहीं बोल पाते तो उसका ठीकरा घर पर फोड़ दिया जाता है. कहते हैं घर में भी अंग्रेजी का माहौल दो. अब पहले मां-बाप अंग्रेजी सीखें. यह सही है कि बच्चे घर में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा में वह आसानी से और जल्दी सीखते हैं. यह भाषा हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, बंगाली या कोई क्षेत्रीय भाषा हो सकती है. 

बिन अंग्रेजी सब सून


मातृभाषा में पढ़ाई को लेकर अलग-अलग मत हैं. जिस अंग्रेजी का दुनिया में बोलबाला है, वह कई राज्यों की मातृभाषा भी नहीं है. बिना अंग्रेजी के प्राइवेट सेक्टर की नौकरी मुमकिन नहीं है. है भी तो अंग्रेजी परेशान करती रहती है. अंग्रेजी में हाथ तंग होने का खामियाजा हजारों लाखों भुगत रहे हैं. नीति में तर्क दिया गया है कि एक भाषा को अच्छे से सिखाने और सीखने के लिए इसे शिक्षा का माध्यम होने की आवश्यकता नहीं है. यह बात भी गलत नहीं है. कई देश अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं, लेकिन किसी भी भाषा को सीखने के लिए उसको अपनाना और जीना पड़ता है. जब कोई चीज आवश्यक है या बना दी गई है तो उसे सीखना जरूरी हो जाता है. अब हम सीखते कैसे हैं यह हमारी क्षमता, प्रतिभा, समर्पण, प्रैक्टिस और मैथेड पर निर्भर करता है. 

अवसरों में आए समानता


अवसर भाषा के भेदभाव को कम कर सकते हैं. कम से कम अपने देश के मामले में तो हम यह कर ही सकते हैं. अगर हिंदी को अंग्रेजी के समान अवसर मिलेंगे तो निश्चित रूप से मातृभाषा को लाभ होगा. हंगरी जैसा छोटा देश अपने यहां मेडिकल की पढ़ाई हंगेरियन भाषा में कराता है. जापान और चीन को देख लीजिए. अंग्रेजी ग्लोबल भाषा है तो इसके महत्व को भी स्वीकारना होगा. ज्ञान, संस्कृति, व्यापार, नौकरी और समाज की जब कोई सीमा नहीं रही तो हम भाषाओं को सीमा में कैसे बांध सकते हैं.
 

नीति बुरी नहीं, बात नीयत की है


संविधान के जनक बाबा साहेब डाॅ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि किसी भी देश का संविधान अच्छा या बुरा नहीं होता, बुरे और अच्छे होते हैं उसे लागू करने वाले. इसलिए नीतियां भी बुरी नहीं होती. उसे बनाने में टाॅप ब्रेन और विचारक लगते हैं. देशहित और समाज हित को ध्यान में रखा जाता है. असल बात है अमल में लाने की. मातृभाषा में पढ़ाई को ही लें तो बहुत से अभिभावक नहीं चाहेंगे कि उनके बच्चे अंगे्रजी माध्यम न पढ़े. नीति थोपी नहीं जा सकती. नीति को लागू करना राज्यों के क्षेत्रधिकार में आता है तो उनकी भी जिम्मेदारी बढ़ जाती है. निश्चित रूप से इस पर राजनीति भी होगी.

संस्कृत पर जोर, बनेगी व्यवहारिक


नीति में संस्कृत को तवज्जो दी गई है. इसको श्लोक और स्लोगन से बाहर निकालने की व्यवस्था की गई है. व्यवहारिक बनाकर लोगों को इससे जोड़ने के कदम उठाए जाएंगे. नीति में स्पष्ट किया है कि संस्कृत संविधान की आठवी अनुसूची में वर्णित एक महत्वपूर्ण आधुनिक भाषा है. लैटिन और ग्रीक साहित्य को मिलाकर भी तुलना की जाए तो वह इसके बराबर नहीं हंै. संस्कृत को त्रि-भाषा के मुख्यधारा के विकल्प के साथ स्कूल और उच्चतर शिक्षा के सभी स्तरों पर छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण और समृ़द्ध विकल्प के रूप में पेश किया जाएगा. फाउंडेशन और माध्यमिक स्तर पर संस्कृत को संस्कृत में पढ़ाने के लिए पाठ्यपुस्तकों को बदला जाएगा. सरल और आनंदमयी तरीकों को अपनाया जाएगा. इसके अलावा तमिल, कन्नड़, ओडिशा, फारसी, तेलगु और प्राकृत आदि भाषा भी विकल्प के रूप में होंगी.

संस्कृत और अन्य भाषाओं के लिए ये कदम उठाए जाएंगे


- भाषाओं के प्रसार के संस्थान और अकेडमी खोली जाएंगी.

- विश्वविद्यालयों में पाली, फारसी और प्राकृत भाषा के लिए राष्टीय स्तर के संस्थान खोले जाएंगे.

- संस्कृत और अन्य भाषाओं के विभागों को मजबूत किया जाएगा. जहां शास्त्रीय और साहित्य भाषाएं पढ़ाई जा रही हैं, उनका विस्तार किया जाएगा.

- शिक्षा और संस्कृत में चार साल की बहु-विषयक बीएड डिग्री द्वारा व्यवसायिक शिक्षा दी जाएगी.

- संस्कृत को गणित, खगोलशास्त्र, दर्शनशास्त्र, नाट्य विधा और योग से जोड़ा जाएगा.



- विपिन धनकड़



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