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अक्तूबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विंटर ब्रेक

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सर्दी अकेली नहीं आती। अपने साथ विंटर ब्रेक, कोहरा, गलन भी लाती है। पहाड़ों पर बर्फ और मैदान पर शीतलहर का राज चलता है। एक चीज और लाती है सर्दी अपने साथ। न्यू ईयर। नये साल के जोश में चूर हम ठंड को ओढ़ते और बिछाते हैं। होटल, रेस्टोरेंट और सड़क पर जश्न मनाते हुए सर्दी का स्वागत करते हैं। सड़क पर ही बहुत से लोगों को कड़कड़ाती सर्दी सीमित कपड़ों और खुले आसमान में गुजारनी होती है।  चाय, काॅफी पीते और तापते हुए बोलते हैं ऐसी नहीं पड़ी पहले कभी। सर्दी का यह तकियाकलाम अखबारों में रोज रिकाॅर्ड बनाती और तोड़ती हेडलाइन को देखकर दम भरता है। मुझे विंटर ब्रेक का इंतजार औरों की तरह नहीं रहता। मैं पहाड़ों की जगह अपनी रजाई में घूम लेता हूं। मनाली, नैनीताल और मसूरी में गाड़ियों की कतार मुझे अपनी ओर नहीं खींच पाती। क्योंकि पत्नी और बेटे की छुट्टी रहती है और बाहर हम कम ही जाते हैं इसलिए मेरे ड्यूटी कुछ सख्त हो जाती है। रूटीन बेपटरी होने की शुरुआत अलार्म नहीं बजने से होती है। देर से सोना और सुबह जब मन करे उठना यह एैब इंसान को बर्बाद कर सकता है। दुनिया से काट देता है।  सर्दी बच्चों को बेकाबू होने की छूट देती है। नहान

मोस्ट वांटेड त्योहार

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महिलाओं का मोस्ट वांटेड त्योहार करवाचौथ आने वाला है। तैयारी जोरों पर है। सजने और संवरने की उमंग कुलाचे मारने लगी है। बुटीक से पार्लर तक में ऑफर की भरमार है। फेशियल से लेकर भौहें पनाने तक पर छूट दी जा रही है। एडवांस बुकिंग चालू है। ब्यूटी पार्लर को करवाचौथ से अपने पुराने दिन लौटने की पूरी उम्मीद है। करवाचौथ की तैयारी माॅर्निंग वाॅक का हाॅट टाॅपिक है। कुछ ने तो मम्मी की कसम खाई है कि लाॅकडाउन और अनलाॅक की कसर इस करवाचौथ पर पूरी कर लेनी है। महिलाओं की करवाचौथ  पतिदेव की लंबी उम्र के लिए महिलाएं करवाचौथ का व्रत रखती हैं। वैसे उम्र लंबी करने का इसका अलावा कोई और त्योहार भी नहीं है। जब वजह इतनी साॅलिड है तो पत्नियों की मनमानी तो बनती है। पतियों की सलामती इसी में है कि वह बस हां में हां मिलाते जाएं। बर्तन मांज-मांजकर चमकाने वाली श्रीमति जी अब खुद को चमकाने की तैयारी में हैं। ब्यूटी पार्लर से फेशियल के मैसेज आ रहे हैं। ये उत्साह को और बढ़ा रहे हैं। आधा साल से शाॅपिंग नहीं की है। घूमना-फिरना हुआ नहीं। शादियां कैंसिल हो गईं। सजने और एंज्वाॅय करना का मौका ही नहीं मिला। अब सारी कमी करवाचौथ पर पूरी

ज़िन्दगी बदलती सोशल मीडिया

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अगर आप किसी की जिंदगी में थोड़ा सा भी बदलाव या फर्क ला सकें तो इससे बेहतर मदद नहीं हो सकती। बदलाव तरक्की का वो पायदान है, जिस पर चढ़कर हम अपने सपने पूरे कर सकते हैं। एक नई राह पर चल सकते हैं। आजकल ऐसे ही कुछ बदलाव की गवाह बन रही है सोशल मीडिया। देखकर और सुनकर अच्छा लगता है जब ऑनलाइन मीडिया की मदद से लोगों की गुजर-बसर आसान हो जाती है। बड़े-बड़े अभियानों के बीच छोटे-छोटे प्रयास से सड़क किनारे बदलती लोगों की जिंदगी सोशल मीडिया के सामाजिक होने का सबूत पेश कर रही है। बाबा के ढाबे पर जमा लोग। बाबा का ढाबा आज बाबा के ढाबे के बारे में पूरा देश जान चुका है। दिल्ली के मालवीय नगर स्थित ढाबे का वीडियो वायरल होने के बाद संचालक बुजुर्ग दंपति की जिंदगी बदल गई है। ढाबे को 80 साल के कांति प्रसाद अपनी पत्नि की मदद से चलाते हैं। वह 1988 से दाल, चावल और सब्जी बेचकर गुजारा कर रहे हैं। कोरोना के दौरान इनकी रोजी पर संकट आ गया था। ढाबे पर लागत भी नहीं निकल रही थी। इस बीच स्वाद ऑफिसियल नाम से यूट्यूब चैनल चलाने वाले गौरव वासन ने अपनी एक वीडियो में ढाबे की स्थिति बयां की। वह ऑनलाइन प्लेटफार्म के जरिये दंपति की मदद क

हमे तो लूट लिया मास्क वालों ने

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  मास्क अब जिंदगी बन चुका है। इसके बिना कब सांसें उखड़ने का इंतजाम हो जाए, कह नहीं सकते। आजकल इंसान दो चीजों के बिना घर से नहीं निकलता। एक है मोबाइल और दूसरा मास्क। कान पर लटका हो, गले में अटका हो या जेब में पड़ा हो। मास्क तो मास्क है। जिंदगी की गाड़ी को आगे बढ़ाने के लिए एक तरह से यह लर्निंग लाइसेंस है। जब इतना जरूरी है तो इसके नाम पर लूट तो मचेगी ही। कोरोना जब से अतिथि बनकर देश में पधारा है, मास्क एकमात्र दवा हो गई है। शुरू में मास्क वालों ने जमकर लूटा। एक लेयर, दो लेयर और तीन लेयर का मास्क बेच-बेचकर नोटों की कई लेयर लगा ली।  जब तक आम आदमी ने मास्क बनाने की कमान अपने हाथों में नहीं ली, तब तक यह खास बना रहा। गमछा और रूमाल ने कुछ हद तक हलाल होने से बचाया। इस बीच मास्क के कई रूप देखने को मिले। सर्जिकल से लेकर एन-95 मास्क पर कई तरह की भविष्यवाणी की गई। बार-बार वह बदलती रहीं। मास्क लगाना भी इसी दौर में सीखा। अब मास्क में आत्मनिर्भर बनने के बाद लोग कुछ राहत की सांस ले रहे हैं। पुलिस से नहीं कोरोना से डर लगता है आजकल लुटेरे मास्क की आड़ लेकर एक पंथ दो काज कर रहे हैं। उन्हें पुलिस से नहीं, कोरोना

उलझन से कर लो उल्फ़त

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उलझन, Confusion , डिलेमा। तीनों का मतलब है एक ही, पर अपनी-अपनी सुविधा से ये अलग-अलग होते हैं। उलझन सरल और सीधे लोगों को होती रहती है। Confusion टिपिकल लोगों का मामला है। डिलेमा वालों के पास विकल्प रहते हैं कि उनको क्या हो! इनका समझदारों से गहरा ताल्लुक है। पढ़ाई से शुरू हुई उलझन दुल्हन चुनने तक बरकरार रहती है। दिल, दिमाग और मन में यह सदैव विराजमान है। आध्यात्मिक वाले इसके न होने का दावा करते हैं। वो बात और है कि इसको दूर करने के लिए ही वह अध्यात्म की शरण लेते हैं। दरअसल, उलझन के न होने से इसका होना ज्यादा जरूरी है। किसी को यह हो गई तो समझो वह बधाई का पात्र है। पहली-पहली उलझन  इसकी शुरूआत बचपन में खिलौने की दुकान से हो होती है। मम्मी-पापा बजट को लेकर एकदम क्लियर रहते हैं। बस बच्चे का मन मचलता रहता है। आखिर में जीत जिद की ही होती है। खेल में भी उलझन रहती है। कौन सा खेला जाए। यहां हर बालक क्रिकेट का हुनर लेकर पैदा होता है। हम ही नहीं समझ पाते कि उसके हाथ-पैर हिलाने का मतलब एक इशारा है, पैड बांधकर बल्ला भांजने का। खेलने की बात आये तो सबको पहले बैटिंग चाहिये। नहीं मिली तो बाॅलिंग चाहिये। फील

महंगी हुई चाय, थोड़ी-थोड़ी पिया करो

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चाय पर चर्चा करने वाले जरा ध्यान दें। उनको अपनी इस लत और आदत के लिए अब ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी। चाय हमारी रंगों में खून की तरह दौड़ती है। कुछ लोग तो दिन में पानी से अधिक चाय चुसड़ जाते हैं। जनाब पी-पीकर नहीं थकते, मैडम प्याले धो-धोकर हलकान रहती हैं। सर्दी के साथ ही चाय की मांग और दाम बढ़ गए हैं। कीमत में वृद्धि ऐतिहासिक है। नए प्रिंट रेट पर 30 से 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज हो चुकी है। दुकानदार अपनी याददाश्त दुरुस्त करते हुए कहते हुए नहीं थक रहे कि चाय की पत्ती इतनी महंगी कभी नहीं हुई। इस मुई महंगाई के पीछे भी कोरोना है।  चाय का भूगोल चाय का भूगोल समझे तो देश के चार राज्य इसके मुख्य उत्पादक हैं। इनमें असम, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और तमिलनाडु शामिल हैं। असम में चाय का करीब 50 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में करीब 25 प्रतिशत उत्पादन होता है। दुनिया के लिहाज से सबसे बड़ा उत्पादक चीन और उसके बाद भारत का नंबर आता है। तीसरे नंबर पर केन्या और चौथे पर श्रीलंका है। निर्यात में भी यही क्रम है। भारत की दार्जिलिंग की चाय विश्व प्रसिद्ध है। असम में चाय के 803 बागान हैं। बागान का हाल लाॅकडाॅउन की गहरी चोट चाय क

डिस्काउंट का बुखार

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  फेस्टिव सीजन शुरू हो चुका है। ऑनलाइन और ऑफलाइन  हर जगह डिस्काउंट की बहार है। ग्राहकगण पर डिस्काउट का बुखार चढ़ चुका है। इस वजह से वे रातभर सो नहीं पा रहे। लिस्ट तैयार कर प्रिय उपभोक्ता दिन रात एड टू कार्ट करने में लगे हैं। फोन पर अंगुलियां कई किमी रोज चल रही हैं। सोते, उठते, बैठते, किचन में यहां तक की बाथरूम में भी नजर मोबाइल पर गड़ी हैं। मन से वंस मोर की आवाज बार-बार आ रही है। खरीदारी की ऑनलाइन सेल जब से शुरू हुई है, हाल कुछ ऐसा ही है।  सुनसान रात में शाॅपिंग का शोर कुछ लोग ऑनलाइन शाॅपिंग में सेल का इंतजार कुछ इस तरह कर रहे थे, जैसे कोरोना काल में संभावित दूल्हे अपनी शादी का कर रहे हैं। उनकी शहनाई सुनने की तिथि कई बार तब्दील हो चुकी है। ऑनलाइन शाॅपिंग में सेल की विंडो पर सुई की उल्टी चलती घड़ी खरीदारी को प्रेरित कर रही है। ऐसा लगता है जैसे यह मौका दोबारा नहीं मिलेगा। कुछ ने तो रात-रात जागकर एड टू कार्ट करके पूरी बाॅल्टी भर ली है। बाय नाउ करना बाकी है। शाॅपिंग लिस्ट में कई गैर जरूरी आइटम जुड़ने से किसी पर बीवी राजी है तो किसी को लेकर मियां का मूड नहीं है। जितनी दिल्लगी से मैडम ने उत्पाद

अतिथि पर टेढ़ी नजर

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अतिथि देवो भवः। कितना सुंदर स्लोगन है। मेहमान के प्रति हमारे आदर भाव को प्रकट करने के लिए इससे बेहतर ध्येय वाक्य नहीं हो सकता। पृथ्वीलोक पर इस अतिथि भाव को देखकर देवता भी खुश होते होंगे। पर कुछ लोग इस स्लोगन को पलीता लगा रहे हैं। इनकी वजह से आप अपने ही घर में मेहमान होते हुए भी अपमानित हो सकते हैं। सड़कों पर लगे साइन बोर्ड पर तो नजर जाती होगी। फलाने राज्य में आपका स्वागत है। यह पढ़ते हुए जैसे ही गाड़ी दूसरे राज्य की सीमा में दाखिल होती है, नंबर प्लेट के आधार पर आपका बंटवारा कर दिया जाता है। ललचाई नजर आप पर टिक जाती है। नंबर प्लेट पर अल्फाबेट का यह बदलाव निगरानी तंत्र का नजरिया बदल देता है। कैसी ये निगरानी इस मामले में सभी राज्यों की पुलिस का रवैया एक सा है। राज्य के बाॅर्डर पर गाड़ियों में सफर कर रहे राहगीर को ऐसे बांटा जाता है, जैसे वह किसी दूसरे देश से आ रहे हों। यह बंटवारा बहुत अखरता है। एक तरफ साइन बोर्ड पर स्वागत के स्लोगन और दूसरी ओर नंबर प्लेट देखते ही दोयम दर्जे का बर्ताव। चेकिंग और ट्रैफिक नियम का पालन होना चाहिये, लेकिन इसकी आड़ में वसूली को सही नहीं कहा जा सकता। कहीं ट्रैफिक पुलि

चल ये धुआं तेरे नाम करूं

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  जिस तरह कागज कलम और दवात के दम पर आशिक दिल एक-दूसरे के नाम कर देते हैं, कुछ-कुछ वैसे ही आजकल राजनीतिक दल धुएं पर एक-दूसरे राज्यों का नाम लिखने को अमादा हैं। इस बीच दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता बिगड़ चुकी है। पराली जलाने के पुरजोर विरोध के बावजूद यह जल रही है। पंजाब, हरियाणा के अलावा दिल्ली और यूपी में भी यह मुकम्मल तौर पर नहीं रूकी है। पर राजनीतिक बयानबाजी धुएंदार हो रही है। इसलिए उसका प्रदूषण अलग है। अगले दो-तीन महीने प्रदूषण-प्रदूषण खेला जाएगा।  अब बस जिंदगी धुआं-धुआं होने वाली है। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की चादर मोटी होने लगी है। एयर क्वालिटी इंडेक्स 300 पहुंच गया है। फिलहाल रोकथाम के लिए दमदार कोशिशें हो रही हैं। अलबत्ता जो सालभर होनी चाहिये। वो तेरा धुआं, ये मेरा धुआं के आरोपों ने रफ्तार पकड़ ली है। दावों के मुताबिक हरियाणा और पंजाब में जली पराली दिल्ली के आसमान पर धुंध बनकर पसर गई है। जल्दी यह हटने वाली भी नहीं है। प्रदूषण पर राजनीति जारी है। चिंता की बात यह है कि प्रदूषण बढ़ेगा तो वह हमारी सेहत और जिंदगी को प्रभावित करेगा।  कण कण में धूल  सर्दी के गरम अहसास के साथ सांस फुलाने

ब्लू बीच पर अब शान से फोटो खीच

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केरल का कापड़ बीच। 'नीले समंदर में नहाकर तुम बड़ी नमकीन हो गई हो।' ये गाना बजते ही तुरंत दिमाग बीच पर पहुंच जाता है। पानी जैसी लहरें मन में उठने लगती हैं। समंदर से दूर रहने वाले लोगों की ख्वाहिश एक बार बीच पर जाकर फोटो खीचने की जरूरत होती है। बीच के हसीन नजारे हमें फिल्मों ने दिखाये हैं। फिल्मों में टू पीस में न जाने कितनी हिरोइन बीच पर सबका ध्यान खीच चुकी हैं। सरल शब्दों में कहे तो हिरोइन के कपड़े उतरवाने के लिए स्क्रिप्ट में बीच को घुसा दिया जाता है। क्या करें सिनेमा ने बीच का यही सौंदर्यबोध हमें कराया है। इस बीच ताजा खुशखबरी यह है कि देश के आठ समुद्री तटों को ब्लू फ्लैग का दर्जा मिला है। अब ये समुद्री तट घोषित रूप से आकर्षण का केंद्र बन गए हैं।   गुजरात के शिवराजपुर का एक बीच । क्या है ब्लू फ्लैग ब्लू फ्लैग समुद्र तटों के स्वच्छता का सर्वोच्च मानक है। किसी भी बीच को ब्लू फ्लैग सर्टिफिकेशन के लिए 33 मानकों पर खरा उतरना पड़ता है। जिनमें पर्यावरणीय शिक्षा व जानकारी, पानी की गुणवत्ता, पर्यावरण का प्रबंधन व संरक्षण, सुरक्षा, कूड़ा निस्तारण, प्राथमिक चिकित्सा सुविधा, पालतू जानवरों पर प

आईपीएल में ये देख रहे हैं आप

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क्रिकेट का प्यार अपने यहां खुमार की तरह है। यह हर किसी के सिर चढ़कर बोलता है। यहाँ क्रिकेट के कीड़े ने लगभग सबको काट रखा है। मैच देखे या न देखे ध्यान वहीं रहता है। आईपीएल के रोमांचक मुकाबलों ने इन दिनों क्रिकेट प्रेमियों का दिल बहला रखा है। दुबई की दुधिया रोशनी को चीरती बाॅल जब हवा से बातें करती है तो दिल गार्डन-गार्डन हो जाता है। फटाफट क्रिकेट में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है, जिसे देखना बनता है। रोमांच और हसीन पल मिस नहीं करने चाहिये। क्रिकेट प्रेमियों को तो कम से कम नहीं। बलखाती बाॅलिंग 20-20 क्रिकेट बाॅलरों के लिए कब्रगाह से कम नहीं है। 20 ओवर में जब 200 रन बन जाते हों तो बाॅलर की दशा और दिशा बिगड़ना तय है। लय तो छोड़िए ओवर पूरा करने के लिए बाॅलर को नहीं सूझता की वह गेंद कहां डाले। ऐसे माहौल में कुछ बाॅलर्स की बलखाती बाॅल सचमुच दर्शनीय और तारीफ की हक़दार हैं। वह कभी टेस्ट क्रिकेट तो कभी ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका और इंग्लैंड की तेज पिचों की याद दिलाती हैं। चेन्नई सुपर किंग के ओपनर बाॅलर दीपक चाहर की तेज लहराती बाॅल बल्लेबाजों के दिल में दहशत कायम कर रही है। इनस्विंग और आउटस्विंग जिस फ्लो के सा

गंगा में फुदकती डाॅल्फिन

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पानी में फुदकती डाॅल्फिन को निहारने की ख्वाहिश किसे नहीं है। गौते लगाने की इसकी अदा मोहित कर लेती है। बच्चे और बड़ों के लिए यह कौतूहल का विषय है। स्क्रीन पर डाॅल्फिन को छलांग मारते हुए तो बहुतों ने देखा होगा, पर असल में यह नजारा देखने के लिए लोग पर्यटन करते हैं। राष्ट्रीय जलीय जीव की उपाधि से नवाजी जा चुकी डाॅल्फिन की जिंदगी किसी रहस्य से कम नहीं है। गहरे पानी में रहने वाली डाॅल्फिन को संरक्षित करने के लिए गंगा में अभियान चलाया जा रहा है। लोगों को जागरूक किया जा रहा है। डाॅल्फिन में इतनी खूबिया हैं कि यह प्यार की हकदार है। गंगा में तैरती डॉल्फिन। गंगा में लगा रही गौते भारत में डाॅल्फिन गंगा-ब्रहमपु़त्र और इनकी सहायक नदी में पाई जाती है। उत्तर  प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और राजस्थान के कुछ हिस्सों में यह उछल कूद करने के लिए ये स्वतंत्र हैं। गंगा में मिलने वाली डाॅल्फिन को गांगेय डाॅल्फिन कहा जाता है। यहां इसे सूंस या सूसू भी कहा जाता है। बिजनौर बैराज से लेकर नरौरा तक इनका हैबिटेट है। यहां पर डब्लूडब्लूएफ की मदद से डाॅल्फिन के संरक्षण का काम किया जा रहा है। संस्था की

बदले-बदले नजर आएंगे गुरूजी

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शिक्षण संस्थान खोलने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को सौंपी है। अब तक के 5 अनलाॅक में सबसे कठिन काम स्कूल और काॅलेज खोलने का है। इस बीच संस्थानों ने बदलाव की तैयारी तेज कर दी है। कैंपस ही नहीं गुरूजी भी बदले-बदले नजर आएंगे। शुरू में सिलेबस से अधिक कोरोना का पाठ पढ़ाया जाएगा। स्कूलों में टीम गठित की जा रही हैं। सैनिटाइजेशन, सोशल डिस्टेंसिंग, जागरूकता, हेल्थ चेकअप की जिम्मेदारी अध्यापकों को दी जा रही है। स्कूल और क्लासरूम में कोरोना जागरूकता के पोस्टर लगाए जा रहे हैं। स्टूडेंट्स को दूरी कायम करने के टिप्स दिए जाएंगे। पढ़ाई से ज्यादा सोशल डिस्टेंसिंग पर फोकस होगा। गुरूजी को इन सबका रिकाॅर्ड रखना होगा। स्टूडेंट्स स्कूल आएंगे या नहीं इस पर अभिभावकों की सहमति पूछी जा रही है। फिलहाल ज्यादातर अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने के मूड में नहीं हैं। नार्थ ईस्ट में खुल गए स्कूल उत्तर-पूर्व राज्यों में स्कूल खुलने लगे हैं। नागालैंड में जिन जिलों में कोरोना के एक्टिव केस नहीं हैं, वहां सरकारी स्कूल खुल गए हैं। उत्तर-पूर्व के राज्यों में कोरोना के केस कम हैं। सरकारी स्कूलों में नवो

थोड़े से धनिया की कीमत तुम क्या जानो

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इन दिनों सब्जी के भाव सुनकर मिर्ची लग रही है। आलू के दाम आसमान पर हैं। प्याज के भाव सुनकर आंखें डबडबा जाती हैं। टमाटर के रेट जानोगे तो लाल हो जाओगे। फोकट में धनिया की बंदरबाट बंद है। हाल यह है की सब्जियों के दाम के साथ-साथ खरीदार भी उछल रहे हैं। लोग कमाई के संकट में महंगाई का करंट झेलने को मजबूर हैं। दुकानदार और खरीदारों में तू-तू मैं-मैं बढ़ गई है।  महिला खरीदार खरीदारी एक कला है। महिलाओं को इसमें महारथ हासिल है। इस कला का विकास क्रम सब्जी खरीदने से शुरू होता है। वैसे भी सब्जी खरीदना महिलाओं के अधिकार क्षेत्र में है। कुछ इतनी अच्छी खरीदार होती हैं कि सब्जी वाले को पका देती हैं। 'टमाटर तो तुम्हारे ज्यादा लाल हैं। बैंगन बासी लग रहा है। आलू अंदर से काला तो नहीं निकलेगा? भैया लौकी तो तुम्हारी जल्दी से नहीं गलती। कुकर सीटी मार-मारकर थक जाता है। भिंडी कच्ची ही देना। भाव ज्यादा लगा रहे हो। सब्जी तुम्हारे यहीं से तो जाती है।' हर बार खरीदारी पर एक ही तरह की बातें सुनकर और एक तरह के जवाब देकर सब्जीवाला भैया घुटने टेक देता है। खरीदने से पहले हर सब्जी को जब तक टच नहीं कर लेतीं, तब तक मन को

मुट्ठीभर टाॅफी

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काश! जिंदगी भी टाॅफी की तरह होती। तरह-तरह की। नई-नई। बाहर से चमकदार, अंदर रस और मिठास से भरी। छोटे-बड़े सबकी अजीज। खाने वाला खुश, देने वाला संतुष्ट। पैकिंग ऐसी कि नजर न हटे। बचपन में टाॅफी तो चबाई होगी आपने। दांत की नीचे दबाने का लुत्फ ही कुछ और था। टाॅफी की यादें आज भी मुंह मीठा कर देती हैं। यादें बिल्कुल उसी की तरह मीठी-मीठी और चिपकी-चिपकी सी, छोड़ती ही नहीं। बचपन में कसकर मुट्ठी बंद करना टाॅफी ने ही तो सिखाया है। अब जब मुट्ठी तनती है तो उसमें मिठास नहीं गुस्सा होता है। नन्ही मुट्ठी कब मुक्का बन गई पता ही नहीं चला। टाॅफी तो छोटी ही रही बस हम बड़े हो गए। टाॅफीवाला टाॅफी से जुड़ा एक किस्सा याद आ रहा है। मेरठ थोड़ा अलग मिजाज का शहर है। यहां थोड़ी बहुत खटपट होती रहती है। जब भी कहीं झगड़ा होता या हालात बिगड़ते तो प्रोटोकाॅल के मुताबिक पुलिस के अलावा एलआईयू भी सक्रिय हो जाती। एलयूआई के एक अधिकारी थे। वे हमेशा अपनी जेब में टाॅफियां रखते थे। घटनास्थल पर पहुंचते ही पुलिस सबूत और गवाह खोजती थी, लेकिन उन्हें बच्चों की तलाश रहती। गली-मोहल्ले में मौजूद बच्चों के बीच वह सादे लिबास में चेहरे पर मुस्कान और

ये हाथ कब रूकेंगेे?

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हाथरस की बेटी के साथ दरिंदगी दहला देने वाली है। पहले भी देश दरिंदगी देखता आया है। कानों को चीत्कार सुनने की आदत सी हो गई है। कुछ दिन शोर मचने के बाद खामोशी की चादर तन जाती है। नई दरिंदगी सामने आने तक। जब पीड़ितों की सुनवाई ही नहीं होगी तो न्याय की उम्मीद करना बेकार है? दावों से हकीकत नहीं बदला करती। डॉटर्स डे मनाकर बेटियों पर हम नाज कर रहे हैं, क्या उनको हम कभी सभ्य समाज दे पाएंगे? लाडो की अस्मत पर उठने वाले हाथ आखिर कब रूकेंगे? कानून के लंबे हाथ इनको रोकने में छोटे पड़ रहे हैं। इन सवालों से क्या कोई फर्क पड़ता है? जिम्मेदारी किसी एक की नहीं है। बिना परिवर्तन के बदलाव की बात करना बेईमानी होगी।  परिवार  इसी से घर और संसार बनता है। जिस बेटी का बलात्कार हुआ और पुलिस ने जबरन फूंक दिया, वह एक गरीब की बेटी थी। गरीब होना गुनाह है। शोषण और न्याय के मामले में तो वाकई। जिन्होंने यह घिनौनी हरकत की, वह भी किसी के बेटे हैं। बच्चों को संस्कार और जिम्मेदार बनाने की सबसे पहली जिम्मेदारी परिवार की है। परिवार इस पर ध्यान देगा तो औलाद गलत दिशा में नहीं जाएगी। घर में बेटियों की इज्जत होगी और करनी सिखाई जाएगी