चल ये धुआं तेरे नाम करूं
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जिस तरह कागज कलम और दवात के दम पर आशिक दिल एक-दूसरे के नाम कर देते हैं, कुछ-कुछ वैसे ही आजकल राजनीतिक दल धुएं पर एक-दूसरे राज्यों का नाम लिखने को अमादा हैं। इस बीच दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता बिगड़ चुकी है। पराली जलाने के पुरजोर विरोध के बावजूद यह जल रही है। पंजाब, हरियाणा के अलावा दिल्ली और यूपी में भी यह मुकम्मल तौर पर नहीं रूकी है। पर राजनीतिक बयानबाजी धुएंदार हो रही है। इसलिए उसका प्रदूषण अलग है। अगले दो-तीन महीने प्रदूषण-प्रदूषण खेला जाएगा।
अब बस जिंदगी धुआं-धुआं होने वाली है। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की चादर मोटी होने लगी है। एयर क्वालिटी इंडेक्स 300 पहुंच गया है। फिलहाल रोकथाम के लिए दमदार कोशिशें हो रही हैं। अलबत्ता जो सालभर होनी चाहिये। वो तेरा धुआं, ये मेरा धुआं के आरोपों ने रफ्तार पकड़ ली है। दावों के मुताबिक हरियाणा और पंजाब में जली पराली दिल्ली के आसमान पर धुंध बनकर पसर गई है। जल्दी यह हटने वाली भी नहीं है। प्रदूषण पर राजनीति जारी है। चिंता की बात यह है कि प्रदूषण बढ़ेगा तो वह हमारी सेहत और जिंदगी को प्रभावित करेगा।
कण कण में धूल
सर्दी के गरम अहसास के साथ सांस फुलाने वाला प्रदूषण भी आता है। वातावरण में नमी होने से धूल के कण नीचे ही ठहर जाते हैं। इन कण-कण में विद्यमान धूल हमारे फेफडों में जाकर कपालभाति करने लगती है। जानकारों का पूर्वानुमान है कि सर्दी में प्रदूषण समस्या और बढ़ा सकता है। वैसे कोरोना को लेकर पूर्वानुमान को सिद्ध करने वाला सिद्ध पुरष खोजे नहीं मिल रहे हैं। वो वही बताते हैं, जो उनका लगता है। और जो उनका लगता है, ठीक वैसा होता नहीं है। यह सही है कि कोरोना श्वसन तंत्र पर हमला करता है। प्रदूषण भी मुंह और नाक से शरीर में दाखिल होता है। समझने और मानने वाली बात यह है कि हमें सतर्कता का लेवल और बढ़ाना होगा। एहतियात कायम रखने होंगे। त्योहार की उमंग और सर्दी के स्वागत में हरगिज लापरवाह नहीं होना है।
मुसीबत के इंतजाम अब आएंगे काम
सर्दी में कोरोना की पीक फिर आ सकती है। केस की संख्या तेजी से बढ़ सकती है। इन आशंका के मद्देनजर सरकार चेता रही हैं। अच्छी बात यह है कि लोग बचाव के लिए एक्शन मोड में पहले से हैं। मास्क लगाने, हाथ धुलने, सोशल डिस्टेंसिंग की आदत पड़ चुकी है। लापरवाही भी देखने को मिल रही है। बाजार की भीड़ बता रही है कि कोरोना का डर लोगों के अंदर से छूमंतर हो गया है। बहुत से लोग घर से ही काम कर रहे हैं। सड़कों पर वाहन भी कुछ कम हैं। नौकरीशुदा में आईटी कंपनियों के कर्मचारियों को दिसंबर तक घर से काम करने की इजाजत है। वह तब तक घर बैठे राहत की सांस ले सकते हैं। स्कूल भी अभी नहीं खुले हैं। खुलेंगे भी तो छोटे बच्चे अभी स्कूल जाने वाले नहीं हैं। पैरेंट्स भेजने को राजी नहीं हैं। काफी लोग अभी घर पर ही हैं। बेवजह बाहर निकलना सही नहीं है।
सरकार के कदम
राज्य सरकारें प्रदूषण को लेकर फिलहाल गंभीरता दिखा रही हैं। दिल्ली सरकार ने अभियान शुरू कर दिया है। डस्ट के स्पाॅट चिन्हित कर उन्हें सही किया जा रहा है। निर्माण कार्यो की निगरानी की जा रही है। अधिकारी और नेता निरीक्षण कर रहे हैं। दिल्ली और आसपास के राज्यों में संयुक्त प्रयास को लेकर बैठकें हो चुकी हैं। बावजूद इसके अभी काफी काम किया जाना बाकी है। यूपी सरकार एनसीआर में गाजियाबाद, नोएडा और मेरठ में प्रदूषण को लेकर कार्रवाई कर रही है।
राजनीतिक विकल्प
दिल्ली और एनसीआर में सर्दी के सीजन में प्रदूषण बढ़ने की मुख्य वजह पराली को माना जाता है। इस दौरान पंजाब, हरियाणा, यूपी और दिल्ली में धान की फसल उठती है। फसल अवशेष को किसान जला देते हैं। जिसका धुआं वायुमंडल में भर जाता है। सबसे ज्यादा प्रदूषित दिल्ली होती है। सत्ताधारी दल इसके लिए पराली को जिम्मेदार ठहराते हैं। जबकि कारण और भी हैं। बेहतर तो यह हो कि प्रदूषण के मुद्दे पर सरकार बनें। दल दावों से अधिक प्रदूषण को लेकर गंभीर हो। सभी जगह एक ही दल की सरकार बने या आपस में बैठकर इसका स्थायी समाधान करें। ये सब इतना सरल और सुलभ नहीं है। समाधान निकालने के लिए कोशिशें और उम्मीद तो करनी हो होगी।
दिल्ली में एक्यूआई
मानक मौजूदा
50 300
इन बातों पर दें ध्यान
- मास्क बिना लगाए घर से बाहर न जाएं।
- सांस के रोगी अपने डाॅक्टर से परामर्श कर लें। इनहेलर हमेशा अपने पास रखें।
- बच्चों में निमोनिया की शिकायत रहती है। अतिरिक्त सावधानी बरतें। बच्चों को एक्सपोजर बचाएं।
- दो गज की दूरी को जरूरी बनाए रखें। भीड़भाड़ में जाने से बचें। इंडोर में जहां भीड़ हो, वह सबसे खतरनाक स्थिति हो सकती है।
- टहलने और शाॅपिंग के वक्त में बदलाव कर सकते हैं।
- गरम पानी, इम्यूनिटी बढ़ाने वाले पदार्थों का सेवन जारी रखें।
- मौसम के मुताबिक डाइट को और हेल्दी बना सकते हैं।
चलते-चलते
सर्दी में प्रदूषण समस्या बनता है। कोरोना के दौर में हमें अतिरिक्त सावधानी बरतनी है। मास्क, दो गज की दूरी, सोशल डिस्टेंसिंग को नहीं भूलना है। त्योहार की खुशी में नियमों को न तोड़े। बुजुर्ग और बच्चों का खास ख्याल रखें।
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टिप्पणियाँ
एक फ़िल्मी गीत है कि
जवाब देंहटाएंइतना तो याद है मुझे कि उनसे मुलाक़ात हुई,
बाद में जाने क्या हुआ, ना जाने क्या बात हुई।
इसी तरह हर साल पराली और प्रदूषण से मुलाक़ात तो होती है....पर बाद में जाने क्या हो जाता है।
आपने अच्छा विश्लेषण किया।
मेरे विचार में पहले ज़िन्दगी राम भरोसे होती थी,
अब आम* भरोसे ही रह गयी है...
*आम आदमी
सादर
शुक्रिया सर। अपने भी अच्छी थाह ली है।
हटाएंपराली जलाना या जबरदस्ती जलवाई जाए ये सोचनीय विषय है धान की फसल तो सदियों से होती आई है पहले तो ऐसा नही होता था लेकिन पिछले कुछ वर्षों मैं पराली मैं भी राजनीति घोल दी गई है अब ये धुंआ भी अलग अलग पार्टी के ध्वज वाहक बन चुका है अगर राज्य और केंद्र मैं समान पार्टी की सरकार होती तो आपको ये धुंआ नज़र नही आता वाह रे हिंदुस्तान आह ये मुई राजनीति अब तो आम जनता को शुद्ध हवा लेने दो रे ।
जवाब देंहटाएंSahi kha Aapne sir,yahi haal h,,,shudh hawa me saans lena bhi muskil h iss mausam me,,,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
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