पीक
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समय और घटनाओं के साथ कुछ शब्द हमारे जुबान पर चढ़ जाते हैं। उनका प्रयोग हम बढ़-चढ़कर करने लगते हैं। ऐसे ही एक शब्द पीक से हमारा पाला पड़ा। उसने बहुतों की जिंदगी बदल दी। देश और दुनिया ने जब से कोरोना की पीक देखी है, बहुत कुछ बदल गया। कुछ देशों में यह कई-कई बार आ चुकी है। इस शब्द का असर हमें कई क्षेत्रों में देखने को मिल रहा है। पीक की छाप दिमाग पर छप गई है। यह सोचने और समझने का तरीका बन चुकी है।
लोगों का स्वास्थ्य खराब करने के अलावा कोरोना की पीक ने अर्थव्यवस्था की सेहत भी बिगाड़ी है। अघोषित मंदी की तुलना पीक से की जा रही है। मंदी की पीक तो गुजर गई, लेकिन हालात अभी सुधरे नहीं हैं। बाजार ठंडा है। पता नहीं खरीदारी की पीक कब आएगी? ऐसी बातें दुकान, शोरूम और बाजार में हो रही हैं। बात सिर्फ बाजार तक सीमित नहीं है। पूरे वायुमंडल में फैल चुकी है। प्रदूषण की कहर को भी पीक से नापा और तोला जा रहा है। दिल्ली में प्रदूषण की वजह नवंबर में पंजाब में जलने वाली पराली की पीक को माना जा रहा है, क्योंकि अक्तूबर-नवंबर में धान कटाई बाद पराली को ठिकाने लगाया जाता है, इसलिए प्रदूषण की पीक नवंबर और दिसंबर में देखने को मिलती है। ऐसा कुछ बुद्धिजीवी मानते हैं। वाहनों से निकलने वाले धुआं के कोई पीक नहीं है। वह तो बारह मास एकसमान गति से निकलता है तो यहां पीक का सवाल ही खड़ा नहीं होता।
हर जगह पीक
जब पीक बाहर इतना ध्यान खींच रही है तो घर में भी असर करेगी। छोटी-छोटी बातों पर होने वाली कहासुनी का शगल बदल रहा है। वह चेतावनी का रूप लेती जा रही हैं। श्रीमति जी का यह कहना कि ये तो अभी शुरूआत है पीक आना बाकी है, सुनकर दिल दहल जाता है। टाइम से घर आ जाना नही तो, मुझे शाॅपिंग करानी थी भूल गए, घूमने कब चल रहे हो आदि एकतरफा किए गए वादों की याद दिलाकर पीक की आहट का अल्टीमेटम मिलता रहता है। अपनी मां को समझा देना नहीं तो पीक आ जाएगी। यह चेतावनी सप्ताह में एक-दो बार मिल जाती है। ऐसी चेतावनियों ने ऑफिस में भी पीछा नहीं छोड़ा है। नौकरी पर तो मानो हर वक्त तलवार लटकी रहती है। मंदी की पीक का हवाला देकर कंपनी हलाल करने को तैयार हैं। बहुतों को कर भी चुकी हैं। नौकरी जाने की पीक आना अभी बाकी है, बाॅस यह फुसफुसाकर दबाव बनाए हुए हैं। नौकरीशुदा और शादीशुदा के आसपास इतनी पीक मंडरा रही हैं की पता नहीं वो कब किस पीक की भेंट चढ़ जाएं।
चलते-चलते
कुछ पीक अच्छी भी होती हैं। इन दिनों शादियों की पीक चल रही है। दावत के दौर का लुत्फ उठाएं। लोगों से घुले-मिले, लेकिन सावधानी से। सर्दी की पीक अभी आना बाकी है। उसका भी मजा लें।
- विपिन धनकड़
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