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फ़रवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विंटर ब्रेक

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सर्दी अकेली नहीं आती। अपने साथ विंटर ब्रेक, कोहरा, गलन भी लाती है। पहाड़ों पर बर्फ और मैदान पर शीतलहर का राज चलता है। एक चीज और लाती है सर्दी अपने साथ। न्यू ईयर। नये साल के जोश में चूर हम ठंड को ओढ़ते और बिछाते हैं। होटल, रेस्टोरेंट और सड़क पर जश्न मनाते हुए सर्दी का स्वागत करते हैं। सड़क पर ही बहुत से लोगों को कड़कड़ाती सर्दी सीमित कपड़ों और खुले आसमान में गुजारनी होती है।  चाय, काॅफी पीते और तापते हुए बोलते हैं ऐसी नहीं पड़ी पहले कभी। सर्दी का यह तकियाकलाम अखबारों में रोज रिकाॅर्ड बनाती और तोड़ती हेडलाइन को देखकर दम भरता है। मुझे विंटर ब्रेक का इंतजार औरों की तरह नहीं रहता। मैं पहाड़ों की जगह अपनी रजाई में घूम लेता हूं। मनाली, नैनीताल और मसूरी में गाड़ियों की कतार मुझे अपनी ओर नहीं खींच पाती। क्योंकि पत्नी और बेटे की छुट्टी रहती है और बाहर हम कम ही जाते हैं इसलिए मेरे ड्यूटी कुछ सख्त हो जाती है। रूटीन बेपटरी होने की शुरुआत अलार्म नहीं बजने से होती है। देर से सोना और सुबह जब मन करे उठना यह एैब इंसान को बर्बाद कर सकता है। दुनिया से काट देता है।  सर्दी बच्चों को बेकाबू होने की छूट देती है। नहान

जान पर खेलकर वीडियो जर्नलिज्म

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स्क्रीन पर कौन दिखना नहीं चाहता। दिखेगा तभी तो बिकेगा। यही फार्मूला ऑनलाइन और टीवी मीडिया की रीड है। आकर्षण है। कंटेंट पर अब वीडियो भारी है। खबर, लेख, कविता और तथ्य कभी आपने वायरल होते देखे हैं। इनको साझा करने वाले गिने चुने होंगे। पढ़ने से ज्यादा हमारे पास देखने का वक्त है। बाजार इसको बखूबी समझता है। इसलिए वीडियो जर्नलिज्म लोगों का ध्यान खींच रही है। यह प्लेटफार्म और सीमा की मोहताज नहीं है। तभी तो पाकिस्तान में कुछ लड़कियों की पार्टी होती है और उसी अंदाज में जश्न आभासी मीडिया पर दुनिया के अलग-अलग कोने में मनाया जाता है। वीडियो जर्नलिज्म का यह नमूना जगह-जगह काॅपी हो रहा है। जान पर खेलकर हाल में बनाए गए दो वीडियो ने भी करोड़ों लोगों का ध्यान खींचा है। वीडियो जर्नलिज्म की वजह से ये घटनाएं खबरों की दुनिया में छाई रही।  बड़ौत में ग्राहक को लेकर हुई मारपीट का फाइल फोटो।  मारपीट हुई मशहूर यूपी के बागपत जिले के बड़ौत कस्बा का मारपीट का वीडियो राष्ट्रीय खबर बन गया। एक चाट विक्रेता ने दूसरे विक्रेता के ग्राहकों को आकर्षित करने की नापाक कोशिश करने पर मामला शुरू हुआ। वीडियो में लाठियों की बौछार किसी क

फास्टैग, टोल और जाम

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  घर से निकलते ही जाम से सामना न हो इतने खुशनसीब हम नहीं हैं। हालांकि इसके जिम्मेदार भी हम ही हैं। इस बीच नेशनल हाईवे के चौड़ीकरण का काम और नए एक्सप्रेसवे के निर्माण राहत देने वाले हैं। नए एक्सप्रेसवे हो या हाईवे दोनों पर अभी इंतजाम नाकाफी हैं। शुल्क के बदले सुविधाएं नहीं मिल रही। मेरा एक हालिया अनुभव।  सफरनामा   मंगलवार को मुझे हापुड़ एक शादी में जाना था। टैक्सी बुक कराई। तय वक्त पर टैक्सी वैशाली स्थित आवास पर आ गई। दिल्ली से हापुड़ तक हाईवे टकाटक होने की वजह से मन में ख्याल आया कि आराम से एक या डेढ़ घंटे में पहुंच जाएंगे। साढ़े छह बजे हम रवाना हुए। यूपी गेट पर किसानों का धरना चल रहा है, इसलिए ड्राईवर ने गाड़ी इंदिरापुरम की ओर घुमा दी। इंदिरापुरम से निकलने में 20 मिनट लग गए। एनएच-24 पर चढ़ते ही वाहनों का दबाव इतना अधिक था, गाड़ी में बैठे-बैठे सांस फूल गई। यहां हाईवे पर कई साल से काम चल रहा है, लेकिन अभी भी कहीं सड़क का काम अधूरा है तो कहीं संकरी है। कई कट पर जाम झेलना पड़ता है। छिजारसी टोल तक पहुंचने में एक घंटा लग गया। टोल पर वाहन इस तरह बेतरतीब खड़े थे, जैसे यहां भी किसानों का धरना चल रहा हो।

प्यार के तलबगार ये जरूर पढ़ें

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  प्यार अंधा होता है। यह तो सुना होगा। लेकिन इससे आगे की बात यह है कि प्यार बहरा भी होता है। फिर भी कमबख्त ये पहली नजर में होता है। इस कशिश को आज तक कोई भी रोक नहीं पाया है। तमाम पाबंदी और किलेबंदी के बावजूद। प्यार ने कभी खिलाफत की तो कभी बगावत। बस इतना समझ लीजिए ये इसके स्वभाव में है। आग का दरिया, सात समंदर, आन, बान और शान की अड़चन यह पार करता गया। इसका एहसास के तूफान में तमाम बाधाओं के दरख्त उखड़ते गए। दिलचस्प बात यह है कि प्यार का गुब्बार गुजर जाने के बाद करने वाले सोचते हैं कि मैंने क्यों किया? और न करने वाले सोचते हैं काश कर लिया होता? प्यार के किस्से सुनकर कई पीढ़ी बढ़ी हो चुकी हैं। नफा-नुकसान देख चुकी हैं। कभी ये पहली बार होता है तो कभी बार-बार। घर-बार चले या न चले लेकिन बाजार इस पर जरूर चल रहा है। या यूं कहिये सरपट दौड़ रहा है। बाजार प्यार की बुनियाद पर खड़ा है। यह सिर्फ दिलों के लेनदेन तक सीमित नहीं है। देश की तरक्की में भी योगदान दे रहा है। सकल घरेलू उत्पाद जिसे हम जीडीपी कहते हैं, वह प्यार के कच्चे धागों से मजबूत होती है। 'मोहब्बत अब तिजारत बन गई है' गीत को बाजार ने भुना ल

गधा नहीं मुर्गा बनने का अभ्यास करो!

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बचपन में कभी आप मुर्गा बने हैं? जो पहाड़े याद करने में कच्चे थे वो तो जरूर बने होंगे। मुर्गा बनने का अवसर नहीं मिला तो दोनों हाथ ऊपर किए होंगे। हिंदी भाषी स्कूलों में ये अघोषित सजा दी जाती रही हैं। दरअसल, मुर्गा एक ऐसा जानवर है, इसकी मुद्रा धारण करने के लिए इंसान को विवश किया जाता है। मुर्गासन स्कूल से लेकर काॅलेज तक पीछा नहीं छोड़ता। इंसान को मुर्गा बनने की खोज प्राइमरी स्कूलों में हुई है। अब इस परंपरा को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी मेडिकल और इंजीनियरिंग काॅलेजों के सीनियर्स के कंधों पर है। कायदे और कानून की भाषा में जिसको रैगिंग कहते हैं। कैंपस में यह निषेध है। इसके बिना आप डाॅक्टर तो बन सकते हैं, लेकिन सीनियर हरगिज नहीं। मुर्गा बनने वालों का चिकन की तरफ रूझान देखा गया है। ये नफरत है या बदले की भावना यह तो पता नहीं पर दोनों काम बदस्तूर जारी हैं।  हाल में यूपी के एक मेडिकल काॅलेज में छात्रों को मुर्गा बनाने की खबर फड़फड़ाती हुई आई। रैगिंग की जांच पड़ताल की जा रही है। मेडिकल में दाखिले के लिए नौजवान दिन रात एक कर देते हैं। वह गधे की तरह पढ़ाई को ढोते हैं और परिजन उनके पीछे तिक-तिक करते रहते हैं।