फास्टैग, टोल और जाम
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घर से निकलते ही जाम से सामना न हो इतने खुशनसीब हम नहीं हैं। हालांकि इसके जिम्मेदार भी हम ही हैं। इस बीच नेशनल हाईवे के चौड़ीकरण का काम और नए एक्सप्रेसवे के निर्माण राहत देने वाले हैं। नए एक्सप्रेसवे हो या हाईवे दोनों पर अभी इंतजाम नाकाफी हैं। शुल्क के बदले सुविधाएं नहीं मिल रही। मेरा एक हालिया अनुभव।
सफरनामा
मंगलवार को मुझे हापुड़ एक शादी में जाना था। टैक्सी बुक कराई। तय वक्त पर टैक्सी वैशाली स्थित आवास पर आ गई। दिल्ली से हापुड़ तक हाईवे टकाटक होने की वजह से मन में ख्याल आया कि आराम से एक या डेढ़ घंटे में पहुंच जाएंगे। साढ़े छह बजे हम रवाना हुए। यूपी गेट पर किसानों का धरना चल रहा है, इसलिए ड्राईवर ने गाड़ी इंदिरापुरम की ओर घुमा दी। इंदिरापुरम से निकलने में 20 मिनट लग गए। एनएच-24 पर चढ़ते ही वाहनों का दबाव इतना अधिक था, गाड़ी में बैठे-बैठे सांस फूल गई। यहां हाईवे पर कई साल से काम चल रहा है, लेकिन अभी भी कहीं सड़क का काम अधूरा है तो कहीं संकरी है। कई कट पर जाम झेलना पड़ता है। छिजारसी टोल तक पहुंचने में एक घंटा लग गया। टोल पर वाहन इस तरह बेतरतीब खड़े थे, जैसे यहां भी किसानों का धरना चल रहा हो। 15 फरवरी से फास्टैग की अनिवार्यता का असर साफ दिख रहा था। लाइन लांघने की गाड़ियों में होड़ मची थी। कई की तो कहासुनी हो गई। हमारी लाइन की साइड में एक ट्रक ड्राइवर ने एक कार में साइड मार दी। कार सवार लोग ड्राइवर पर हमला बोलने के लिए दौड़ पड़े। उनकी पोशाक से पता लग रहा था कि वह शादी में शरीक होने जा रहे हैं। एक व्यक्ति हाथ में डंडा लेकर पीछे के ट्रैफिक को गाइड कर रहा था, ताकि ड्राइवर की ढंग से खबर ली जा सके। सबके सब हमलावर मूड में थे। ड्राइवर ने गेट नहीं खोला। लेकिन एक युवक ने चढ़कर जबरन गेट खोल दिया। ड्राइवर को कई घूसे और तमाचे जड़ दिए। उसे बाहर खीचने लगे। बेचारा ड्राइवर हाथ जोड़ रहा था, लेकिन बन ठनकर जा रहे लोगों में से किसी का भी दिल नहीं पसीजा। वह कानून मुट्ठी में बंद कर अपनी मर्जी से इंसाफ करने पर अमादा थे। यह दृश्य देखकर मन विचलित हो गया। मेरी कतार आगे बढ़ चुकी थी। टोल वाले इस अभद्रता पर चुप थे। उनका पूरा फोकस वसूली पर था। उनकी सिक्योरिटी सिर्फ उनके लिए है। पुलिस दूसरी तरफ इस घटना से अंजान थी। सफर के दौरान यह किसी के भी साथ हो सकता है। ऐसी घटनाएं आम हो गई हैं। रोड रेज का बढ़ता ग्राफ हमारे सहनशीलता और शालीनता का परिचय दे रहा है। सिविक सेंस में हम फिसड्डी हैं। पहले तो लोग नियमों का पालन नहीं करते और फिर लड़ने के लिए भी तैयार रहते हैं। कुछ तो इतने उत्पाती हैं कि गाड़ी से तुरंत डंडा या राॅड निकाल लाते हैं। जैसे वह इनके प्रयोग करने के लिए ही घर से निकले थे। डंडा साथ लेकर चलने का मतलब समझा जा सकता है। कोई डर की वजह से लेकर चल रहा है तो कोई डराने के लिए। टोल पर अभद्रता की घटनाएं आम बात हैं। अक्सर लड़ाई टोल देने को लेकर होती है। कभी टोल वालों को पीट दिया जाता है तो कभी टोल वाले पीट देते हैं। फास्टैग की अनिवार्यता से टोल पर जाम बढ़ रहा है। इससे निपटने के लिए मौजूदा इंतजाम नाकाफी हैं। तकनीक तैयार को और मजबूत करना होगा। फास्टैग लगवाकर भी अगर टोल पर आधा घंटा और एक घंटा लग जाए तो यात्रियों के लिए यह किसी यातना से कम नहीं है। सुधार नहीं हुआ तो जल्दी के चक्कर में टोल पर होने वाले विवाद बढ़ेंगे। यात्रियों को बुरे अनुभव से गुजरना पड़ेगा। मेरी तरह।
चलते-चलते
टोल पर हो या हाईवे पर। नियमों का पालन कीजिए। इससे हम परेशानी से बचेंगे। सफर को सुगम बनाने के लिए निगरानी को और अधिक चुस्त बनाना होगा। शिकायत पर कार्रवाई करनी होगी। अथाॅरिटी अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती। हाईवे पर होने वाले क्राइम पर एक्शन सख्त और तुरंत होना चाहिये।
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