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जुलाई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विंटर ब्रेक

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सर्दी अकेली नहीं आती। अपने साथ विंटर ब्रेक, कोहरा, गलन भी लाती है। पहाड़ों पर बर्फ और मैदान पर शीतलहर का राज चलता है। एक चीज और लाती है सर्दी अपने साथ। न्यू ईयर। नये साल के जोश में चूर हम ठंड को ओढ़ते और बिछाते हैं। होटल, रेस्टोरेंट और सड़क पर जश्न मनाते हुए सर्दी का स्वागत करते हैं। सड़क पर ही बहुत से लोगों को कड़कड़ाती सर्दी सीमित कपड़ों और खुले आसमान में गुजारनी होती है।  चाय, काॅफी पीते और तापते हुए बोलते हैं ऐसी नहीं पड़ी पहले कभी। सर्दी का यह तकियाकलाम अखबारों में रोज रिकाॅर्ड बनाती और तोड़ती हेडलाइन को देखकर दम भरता है। मुझे विंटर ब्रेक का इंतजार औरों की तरह नहीं रहता। मैं पहाड़ों की जगह अपनी रजाई में घूम लेता हूं। मनाली, नैनीताल और मसूरी में गाड़ियों की कतार मुझे अपनी ओर नहीं खींच पाती। क्योंकि पत्नी और बेटे की छुट्टी रहती है और बाहर हम कम ही जाते हैं इसलिए मेरे ड्यूटी कुछ सख्त हो जाती है। रूटीन बेपटरी होने की शुरुआत अलार्म नहीं बजने से होती है। देर से सोना और सुबह जब मन करे उठना यह एैब इंसान को बर्बाद कर सकता है। दुनिया से काट देता है।  सर्दी बच्चों को बेकाबू होने की छूट देती है। नहान

यूजीसी नेट को लेकर बदलाव नहीं! जल्द आ सकती है नई डेट

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करीब एक साल से चल रही इस चर्चा पर कि जुलाई, 2021 से यूजीसी नेट पास वाले असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकेंगे पर विराम लग गया है. नई शिक्षा नीति में यूजीसी नेट को लेकर कोई बदलाव नहीं किया गया है. अभी डिग्री काॅलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर पर नियुक्ति पाने के लिए नेट पास या यूजीसी रेग्युलेशन के मुताबिक पीएचडी का होना जरूरी है. नेट को लेकर यह चर्चा काफी तेज थी कि नियुक्ति में सिर्फ पीएचडी को ही मान्य माना जाएगा. नेट को पीएचडी के समान न मानकर उसके नंबर जोड़े जाएंगेे. मतलब सिर्फ नेट पास करके आप आवेदन नहीं कर सकेंगे. नेट पास और इसकी तैयारी में जुटे लाखों छात्र-छात्राओं के लिए यह राहत की खबर है कि नई शिक्षा नीति में नेट को लेकर कोई बदलाव अभी तक नहीं हुआ है.  नौकरी में आवेदन की योग्यता खत्म करने  की थी चर्चा नई एजूकेशन पाॅलिसी में नहीं जिक्र, राहत की सांस छात्रों की थी बड़ी चिंता नेट को पीएचडी के समान न मानने की चर्चा देश में यूं ही नहीं चल रही थी. इसको लेकर एक कमेटी ने विचार किया था. जुलाई, 2021 से नेट को पीएचडी के समान न मानकर योग्यता में अंक देने की बात की जा रही थी. अगर ऐस

बैंक एकाउंट की तरह अब छात्रों का होगा एकेडमिक एकाउंट

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1986 के बाद बदली शिक्षा नीति, MHRD नहीं अब शिक्षा मंत्रालय बीच में पढ़ाई छूटी तो समय और पैसा नहीं जाएगा बेकार, मिलेंगे क्रेडिट नई शिक्षा नीति पर कैबिनेट की मुहर लगते ही देश की शिक्षा प्रणाली में बड़े बदलाव का बिगुल बज गया है. हालांकि अभी इस पर लोकसभा, राज्यसभा और राष्टपति की मुहर लगना बाकी है. करीब 34 साल बाद शिक्षा नीति में बदलाव होने जा रहा है और वो भी आमूलचूल. बावजूद इसके बुधवार को नई शिक्षा नीति से अधिक चर्चा राॅफेल के स्वागत की रही. मीडिया इन दिनों राफेल के बहाने लड़ाकू प्रवृति पर ज्यादा फोकस कर रहा है. नई शिक्षा नीति के तहत जैसे बैंक में एकाउंट रहता है, वैसा ही छात्र-छात्राओं का एकेडमिक एकाउंट बनेगा. उनके क्रेडिट काउंट होंगे और उनकी निगरानी की जाएगी. नई नीति से ये आएगा बदलाव  - सरल शब्दों में समझे तो हायर एजूकेशन में अब एंट्री और एग्जिट आसान हो गया है. तीन या चार साल की डिग्री की पढ़ाई अगर बीच में छूट जाती है तो एक साल की पढ़ाई होने पर सर्टिफिकेट, दो साल पर डिप्लोमा और तीन-चार साल पर डिग्री मिलेगी. - ऐसा करने से एक तो विद्यार्थियों की पढ़ाई नहीं छूटेगी और दूसरा सरकार क

जीत जाएंगे जंग, अच्छी आदतों के संग

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जिंदगी जंग है इसे जारी रखिये. मौजूदा माहौल में यह बात और अधिक प्रासंगिक हो गई है. कोई भी जंग सिर्फ एक मोर्चे पर नहीं लड़ी जाती. इसके भी कई पहलू होते हैं. शारीरिक और मानसिक जंग के बारे में तो आपने सुना होगा, लेकिन कोरोना की वजह से जंग के कई और मोर्चों ने मुंह उठा लिया है. आर्थिक स्तर की जंग ने सबको हिला रखा है. इसका असर हमारे सामाजिक जीवन पर भी पड़ रहा है. चुनौती यह है कि इससे कैसे निबटें. कुछ बातें और काम की हैं जो आपको और मजबूत बना सकती हैं. इनको आदत बना लो तो हर्ज नहीं है. खुद से करिये सवाल जमाना बदल चुका है. बहुत लोगों का वर्क फ्राम होम चल रहा है. स्कूल होम में घर कर गया है. घूमना-फिरने की छुट्टी है. मस्ती मोबाइल तक सीमित है. अधिक समय सावधानी बरतने और सोशल साइट्स पर गुजर रहा है. यह सब जानते हैं कि जल्दी से सब ठीक होने वाला नहीं है. खुद से सवाल करना का समय है कि इस वैश्विक बदलाव में हम कुछ बदले भी हैं या नहीं. जब काम करने के तौर-तरीके बदल चुके हैं, तो फिर हम पुराने ढर्रे पर कैसे टिके रह सकते हैं. बात सिर्फ काम में बदलाव की नहीं है. जिस जीवन को जीने और बेहतर बनाने के लिए काम कर

नशे दी बोतलें बिकेंगी मॉल में

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सूबे में २७ अगस्त से मॉल में ब्रांडेड और इम्पोर्टेड शराब मिलेगी .  यह बात सुनकर शौकीनों के मुंह में एक पैग जितना तो पानी आ ही गया होगा. कल्पनाएं कुलांचे मारने लगी होंगी. यूपी सरकार ने माॅल्स में ब्रांडेड शराब की बिक्री को मंजूरी देकर यह सुअवसर प्रदान किया है. अब मॉल्स में घूमने,   शॉपिंग करने और खाने के अलावा पीने का भी जुगाड़ हो गया है. हालांकि अभी माॅल्स अपने फुटफाॅल स्तर की रिकॉर्ड गिरावट का सामना कर रहे हैं ,  कुछ बंद भी हैं. लेकिन इस फैसले से मॉल के अच्छे दिन आने की अटकलें लगाई जा रही हैं. यह कदम मॉल कल्चर में मील का पत्थर साबित हो सकता है. एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर Photo by www.gleniswillmott.eu अपने समाज में शराब को अच्छा नहीं माना जाता. पियक्कड़,   शराबी,   टल्ली और टुन्न शब्द के अस्तित्व से तो यही पता चलता है. समझदारों की बात पर हम नहीं जाते. वो बात अलग है कि शराब की बिक्री से मिलने वाले राजस्व से ही राज्य सरकारों को आत्मनिर्भर होने का सुखद अहसास होता है. खैर,   मुद्दे की बात पर आते हैं. शराब की बिक्री के लिए देश में ठेकों का संकट नहीं है. इनका पता पूछने के लिए

बातों ही बातों में हो न जाए कोरोना

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जानकारों का कहना शब्दों के बोलने में बरतें सावधानी कुछ शब्दों के चयन से कम कर सकते हैं ड्रॉपलेट्स कोरोना को लेकर जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं. जानकार जोर से बात न करने की सलाह दे रहे हैं. उनका तर्क है कि तेज बोलने से ड्रॉपलेट्स (छोटी बूंद) के जरिये लोग संक्रमित हो रहे हैं. ऐसे में कम बोलना और चुप रहना लाभदायक है. आपने कभी गौर किया है दिन में हम ऐसे बहुत से शब्द बोलते हैं,   जिनसे ड्रॉपलेट्स बाहर आते हैं. आखिर कौन से हैं वो शब्द? उनकी जगह हम कौन से शब्द इस्तेमाल कर सकते है? आइये आपके इन सवालों के जवाब देते हैं. धीरे-धीरे बोल कोई... जोर से बोेलना सभ्य नहीं माना जाता. धीरे-धीरे बोलने के अपने फायदे हैं. कोरोना का संक्रमण रोकने के लिए डॉक्टर और वैज्ञानिकों ने मुंह पर मास्क लगाने की सलाह दी. इसका लोग पालन भी कर रहे हैं. मुंह पर मास्क लगाने का लॉजिक यह है कि कोरोना वायरस ड्रॉपलेट्स के जरिये संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है. ऐसे में डॉक्टर लोगों को दूरी बनाने और धीरे बोलने की सलाह दे रहे हैं. जोर से बोलने की वजह ड्रॉपलेट्स आने का खतरा अधिक र

एक कप चाय और दो कप जिंदगी

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जिंदगी का चाय से अटूट रिश्ता है. सबके लिए इसके स्वाद अलग-अलग हैं. कुछ को चीनी कम चाहिए तो किसी को ज्यादा. किसी को कड़क चाय पसंद है तो कोई ग्रीन टी का शौक रखता है. खैर पसंद अपनी-अपनी. लेकिन एक बात जो कॉमन  है वो है इसके साथ जुगलबंदी. चाय पर चर्चा का जुमला यूं ही नहीं आया. ये सिर्फ तुकबंदी नहीं है. चाय एक संस्कृति है. सभ्यताओं में विशाल है. कहावत है ना कि ईस्ट इंडिया कंपनी चली गई, लेकिन मुई चाय छोड़ गई. अब हम चाय की चुस्कियां लेकर उसे कोस रहे हैं. दिन की शुरूआत चाय के बिना मुमकिन नहीं है. अब ये लत बन चुकी है. वैसे कुछ लत अच्छी होती हैं. चाय की अच्छाई यह है कि इससे किसी को ईर्ष्या नहीं है. हां कुछ को पीने से सीने में जलन होने लगती है और वह इससे दूरी बनाते हैं, लेकिन यह उनकी शारीरिक समस्या है इसमें चाय का कोई दोष नहीं है. एक कप चाय के साथ अगर दो कप जिंदगी भी जी ली जाए तो मजा आ जाए. दो कप जिंदगी से मतलब उन पीने वालों से है जो इसके खातिर जुड़ते हैं. इसके संग संचार का जो भाव उत्पन्न होता है वह अनमोल है. चाय पिलाना और बनाना फायदे का सौदा चाय पीना और बनाना दोनों फायदे के सौदे हैं. अगर आ

नहीं भूल सकता बारिश का वो दिन

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बारिश. कितना सुकून देता है ये शब्द. तन-मन को भिगोकर जिंदगी का अलग रंग दिखाती है बारिश. कभी आफत तो कभी राहत बनती है. पानी न बरसे तो सूखे से हाहाकार मच जाए. ज्यादा बरसे तो बाढ़ से लोग तबाह हो जाएं. बारिश का वजूद ही कुछ ऐसा है कि यह कभी खुशी है तो कभी गम. फिल्म जगत के लोग तो इसके मुरीद हैं. अभिनेत्रियों के बदन पर टपकती बारिश की बूंदों को गीत में पिरोकर कई कालजयी गाने फिल्म निर्माताओं ने गढ़े हैं. बारिश से जुड़े किस्से हर किसी के पास होंगे. मेरे पास भी है. आज ताबड़तोड़ बारिश को देखकर वह याद आ गया. नहीं कह पाया थैंक्यू बात करीब छह साल पुरानी है. बेटा दो महीना का था. पत्नी को डेंटिस्ट को दिखाने के लिए जाना था.  एकल परिवार का साइड इफेक्ट था कि बेटे को साथ लेकर जाना पड़ा. आसमान साफ था ] इसलिए छाता भी नहीं लिया. बाइक पर चल दिए. रास्ते में अचानक बादलों ने घेर लिया और ताबड़तोड़ बारिश शुरू हो गई. जिस जगह पर थे उसके एक किमी आगे और पीछे कुछ भी ऐसा नहीं था कि पनाह ली जा सके. बारिश इतनी तेज थी कि बाइक चला रहा था लेकिन आंखें नहीं खुल पा रही थी. बेटे को पत्नी सीने से लपेटे हुई थी. पानी से पूरी तरह लथपथ हो

ऑनलाइन स्टडी के जानों गुर, टेंशन होगी फुर्र

कोरोना की वजह से स्कूल बंद हैं तो  ऑनलाइन स्टडी पर जोर है. जब से बच्चों की  ऑनलाइन  क्लास शुरू हुई gS]   स्कूल एट होम होने की वजह से मम्मी-पापा का रूटीन और टाइट हो गया है। अगर दोनों  वर्किंग हैं तो और मुसीबत है। हालांकि बेहतर तालमेल से इसको मैनेज किया जा सकता है। बड़े बच्चों के लिए तो उतनी परेशानी नहीं है ] लेकिन छोटे बच्चे खासतौर पर कक्षा छह तक वालों के सामने यह चुनौती बड़ी है। इस चुनौती से कैसे पार पाएं। अब घरों में यह रोज की जंग हो गई है. यहां कुछ टिप्स दिए जा रहे हैं.   जिससे आप  ऑनलाइन  स्टडी को काफी हद तक मैनेज कर सकते हैं. छोटे बच्चों की ऑनलाइन  क्लास के लिए टिप्स ·        सबसे पहले घर में एक सेफ प्लेस या कोना तय करिये ] जहां पर बैठकर बच्चा  ऑनलाइन  क्लास अटैंड कर सके। प्लेस ऐसी होना चाहिये , जहां पर घरवालों की आवाजाही न हो। ·         ऑनलाइन  क्लास शुरू होने से पहले खुद से भी चेक कर लें कि रूटीन के हिसाब से सभी आवश्यक वस्तुएं बच्चे के पास हैं या नहीं। ·        मोबाइल रात में ही या सुबह जल्दी उठकर चार्ज कर लें। बेहतर हो कि  ऑनलाइन  पढ़ाई के दौरान बच्चा ईयर फो

दो गज दूरी ने बढ़ा दी सोशल नजदीकी

कोराना काल में इस ब्लाॅग का जन्म हो रहा है, इसलिए पहली पोस्ट कोराना से जुड़ी डाल रहा हूं। महामारी ने किस-किस तरह से जिंदगी को प्रभावित किया है और इससे निपटने के तौर-तरीकों पर अगली कुछ पोस्ट आपको पढ़ने को मिलेंगी. कोशिश होगी कि जिस विषय पर भी लिखूं आपको कुछ नया और काम का पढ़ने को दूं. पेशे से पत्रकार और पढ़ाई से रिसर्चर हूूं. पढ़ने, पसंद करने और सुझाव देने के लिए आपका शुक्रगुजार रहूंगा. - विपिन धनकड़ दो गज दूरी ने बढ़ा दी सोशल नजदीकी कोरोना से बचाव के लिए बनाए नियमों में दो गज की दूरी को जब से शामिल किया गया है, लोग हाथ धोकर इसके पीछे पड़ गए हैं. जहां कंधे से कंधा और कदम से कदम मिलाकर चलने की प्रेरणादायक बातें होती हों, वहां दो गज की दूरी कायम करना कितना कठिन है आप समझ सकते हैं. फिर भी काफी लोग इसे अपना रहे हैं. वे भी कोशिश कर रहे हैं, जिन्होंने दूरी सही जाए ना को सीरियसली ले रखा है. सोशल डिस्टेंसिंग का सामाजिक ताना-बाना पर गहरा असर पड़ा है. दो गज की दूरी ने सोशल मीडिया पर नजदीकी बढ़ा दी हैं.  पेलने के लिए हर किसी के पास ज्ञान है. मैं भी पेल रहा हूं. घर में बंद होने के बाद यह ज्ञान ग