विंटर ब्रेक

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सर्दी अकेली नहीं आती। अपने साथ विंटर ब्रेक, कोहरा, गलन भी लाती है। पहाड़ों पर बर्फ और मैदान पर शीतलहर का राज चलता है। एक चीज और लाती है सर्दी अपने साथ। न्यू ईयर। नये साल के जोश में चूर हम ठंड को ओढ़ते और बिछाते हैं। होटल, रेस्टोरेंट और सड़क पर जश्न मनाते हुए सर्दी का स्वागत करते हैं। सड़क पर ही बहुत से लोगों को कड़कड़ाती सर्दी सीमित कपड़ों और खुले आसमान में गुजारनी होती है।  चाय, काॅफी पीते और तापते हुए बोलते हैं ऐसी नहीं पड़ी पहले कभी। सर्दी का यह तकियाकलाम अखबारों में रोज रिकाॅर्ड बनाती और तोड़ती हेडलाइन को देखकर दम भरता है। मुझे विंटर ब्रेक का इंतजार औरों की तरह नहीं रहता। मैं पहाड़ों की जगह अपनी रजाई में घूम लेता हूं। मनाली, नैनीताल और मसूरी में गाड़ियों की कतार मुझे अपनी ओर नहीं खींच पाती। क्योंकि पत्नी और बेटे की छुट्टी रहती है और बाहर हम कम ही जाते हैं इसलिए मेरे ड्यूटी कुछ सख्त हो जाती है। रूटीन बेपटरी होने की शुरुआत अलार्म नहीं बजने से होती है। देर से सोना और सुबह जब मन करे उठना यह एैब इंसान को बर्बाद कर सकता है। दुनिया से काट देता है।  सर्दी बच्चों को बेकाबू होने की छूट देती है। नहान

बैंक एकाउंट की तरह अब छात्रों का होगा एकेडमिक एकाउंट



1986 के बाद बदली शिक्षा नीति, MHRD नहीं अब शिक्षा मंत्रालय

बीच में पढ़ाई छूटी तो समय और पैसा नहीं जाएगा बेकार, मिलेंगे क्रेडिट


नई शिक्षा नीति पर कैबिनेट की मुहर लगते ही देश की शिक्षा प्रणाली में बड़े बदलाव का बिगुल बज गया है. हालांकि अभी इस पर लोकसभा, राज्यसभा और राष्टपति की मुहर लगना बाकी है. करीब 34 साल बाद शिक्षा नीति में बदलाव होने जा रहा है और वो भी आमूलचूल. बावजूद इसके बुधवार को नई शिक्षा नीति से अधिक चर्चा राॅफेल के स्वागत की रही. मीडिया इन दिनों राफेल के बहाने लड़ाकू प्रवृति पर ज्यादा फोकस कर रहा है. नई शिक्षा नीति के तहत जैसे बैंक में एकाउंट रहता है, वैसा ही छात्र-छात्राओं का एकेडमिक एकाउंट बनेगा. उनके क्रेडिट काउंट होंगे और उनकी निगरानी की जाएगी.


नई नीति से ये आएगा बदलाव 

- सरल शब्दों में समझे तो हायर एजूकेशन में अब एंट्री और एग्जिट आसान हो गया है. तीन या चार साल की डिग्री की पढ़ाई अगर बीच में छूट जाती है तो एक साल की पढ़ाई होने पर सर्टिफिकेट, दो साल पर डिप्लोमा और तीन-चार साल पर डिग्री मिलेगी.

- ऐसा करने से एक तो विद्यार्थियों की पढ़ाई नहीं छूटेगी और दूसरा सरकार के पास ड्रॉपआउट का रीयल डेटा होगा.

- छात्रों का एकेडमिक एकाउंट मैंटेन किया जाएगा, जैसे बैंक करते हैं. पढ़ाई को क्रेडिट में सेव किया जाएगा. छात्रों के खाते में जितने क्रेडिट होंगे, उस हिसाब से आंका जाएगा. क्रेडिट एक बार ही यूज होंगे.

- स्ट्रीम की लड़ाई खत्म होगी. ग्रेजुएशन में अपने पसंदीदा विषय चुन सकेंगे.

- ग्रास एनरोलमेंट रेशियो 2035 तक 50 प्रतिशत  रखने का लक्ष्य है.

- बेसिक एजूकेशन में बड़ा बदलाव होगा. पहले तीन साल बेसिक फाउंडेशन कोर्स पढ़ाया जाएगा. यह बच्चों के बेसिक को ध्यान में रखते हुए खास रूप से तैयार होगा. फाउंडेशन पर काफी जोर दिया गया है.

- एजूकेशन 10+2+ 3 की जगह अब 5+3+ 3+ 4 तर्ज पर होगी.

- मूल्यांकन प्रणाली में बदलाव आएगा. छात्र खुद भी अपना मूल्यांकन कर सकेगें. उसके सहपाठी और शिक्षक भी मूल्यांकन करेंगे. इससे लाइफ स्किल बढ़ाने में मदद मिलेगी.

- छात्रों को छुट्टी में हर साल 10 दिन की इंटर्नशिप करनी होगी. यह बाजार में जाकर करनी होगी. ताकि छात्र को संबंधित क्षेत्र की रियलिटी का पता चल सके.


ऐसे तैयार हुई नीति

- 2.50 लाख ग्राम पंचायतों से सुझाव मांगे गए.
- 2.25 लाख सुझाव देशभर से आए.
- 6600 ब्लाॅक और 676 जिलों से सुझाव आए.
- 22 भाषाओं में नीति का ड्राफ्ट तैयार हुआ


ये होंगे प्रभावित

- 1000 से अधिक विश्वविद्यालय
- 1.9 करोड़ शिक्षक
- 15 लाख से अधिक स्कूल
- 45 हजार से अधिक डिग्री काॅलेज
- 31 करोड़ से अधिक छात्र-छात्राएं


संस्थाओं का नहीं रहेगा वजूद

मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर अब शिक्षा मंत्रालय हो जाएगा. अन्य संस्थाएं खत्म कर एक ही रेग्युलेटरी बाॅडी का नियंत्रण होगा. दो बड़ी संस्थाएं यूजीसी और एआईसीटीई का वजूद नहीं रह जाएगा. इनके कर्मचारियों का क्या होगा, यह तो आना वाला समय ही बताएगा, लेकिन इतना जरूर तय है कि नौकरियां जाएंगी. काफी दिनों से चर्चा थी कि यूजीसी का नाम बदला जा रहा या उसको खत्म किया जा रहा है. नई नीति से साफ कर दिया है कि अब एक ही रेग्युलेटरी बाॅडी रहेगी.


बुरे दौर में बदली नीति

नई शिक्षा नीति ऐसे दौर में आ रही जब कोराना ने सब बदल दिया है. सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला शिक्षा क्षेत्र ही है. मार्च से स्कूल, काॅलेज और विश्वविद्यालय बंद हैं. प्राइवेट संस्थान बंद हो रहे हैं या उसकी कगार पर पहुंच गए हैं. उनके स्टाफ को सैलरी नहीं मिल रही. पढ़ाई और छात्रों का भविष्य क्या होगा, स्पष्ट नहीं है. पेपर स्थगित कर दिए गए हैं. प्राइवेट संस्थान और उनका स्टाफ अपने दूसरे विकल्पों पर विचार कर रहा है. पाॅलिसी कितनी कारगर होगी, यह तो समय ही बताएगा.


अमल में लाना चुनौती

देश में ऐसे बहुत से नियम और कायदे हैं, जिनका पालन या वह व्यवहारिक रूप से लागू नहीं हो रहे हैं. शिक्षा जगत बड़े बदलाव की तरफ जा रहा है, क्या हम उसके लिए तैयार हैं. सरकारी संस्थान शिक्षकों की कमी से पहले ही जूझ रहे हैं. प्राइमरी से लेकर हायर लेवल तक शिक्षकों की कमी है. राज्य सरकारें इस तरफ ध्यान ही नहीं देती. यह कहना गलत नहीं होगा कि शिक्षा उनके एजेंडे में शामिल नहीं है. केंद्र सरकार ने इसकी सुध लेकर अच्छा काम किया है. नई नीति के पालन के लिए शिक्षकों को ट्रेनिंग की जरूरत होगी. तकनीक को अपनाना होगा. पुराने ढर्रे से काम नहीं चलेगा.



- विपिन धनकड़


#NewEducationPolicy#MHRD#UGC#School#College#University


टिप्पणियाँ

  1. अच्छा विश्लेषण।
    पुराने नियमो के अनुसार हर तीस साल में नई शिक्षा नीति का प्रावधान रहा है।
    आप एक विश्लेषण शिक्षा के स्तरों पर भी करें, माने प्राथमिक, माध्यमिक/उच्च माध्यमिक और उच्च शिक्षा।
    कोई भी नीति अच्छी बन जाती है अगर उसे लागू करने वाले लोगों की कोशिश और नियत साफ व स्पष्ट हो।

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  2. पढ़ने और सराहने के लिए सर धन्यवाद। आपके सुझाव को तवज्जो दी जाएगी।

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