सोफे के बहाने
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सोफे घर की शोभा बढ़ाते हैं। चमकती दीवारों के बीच ड्राइंगरूम में पसरे सोफे घर के आकर्षण का केंद्र होते हैं। हमारा खासा वक्त इन पर गुजरता है। या यूं कह लीजिए कटता है। टीवी देखना हो या पार्टी करनी हो। बच्चों के साथ धमाचौकड़ी इन पर खूब होती है। घर में घुसते ही मेहमानों की सबसे पहले नजर सोफे पर जाती है। फिर वे उनमें धंसकर घर को जंगल की तरह निहारते हैं। कोने-कोने को स्कैन करने के बाद राहत की सांस वह इन्हीं सोफे पर लेते हैं। कुछ लोग सोफे को हैसियत से जोड़कर देखते हैैं। जितना आलीशान सोफा, उतनी बड़ी हैसियत। फिर चाहे सोफा लोन पर ही क्यों न हो। सौ बात की एक बात सोफा घर की शान है। कुछ दिनों से हमारा सोफा एक तरफ से बैठ गया था। सोचा नया खरीदने से बेहतर है उसकी मरम्मत करा ली जाए।
आमतौर पर देखा जाता है कि पुराने चीज ठीक कराने की जगह हम नई खरीदने की दौड़ पड़ते हैं। इससे फिजूलखर्ची बढ़ती है। जब पुरानी कुछ पैसों में ठीक हो सकती है फिर नई की जल्दबाजी क्यों? वैसे भी पुरानी चीज कौड़ी के भाव जाती है और नई के लिए खासी जेब ढीली करनी पड़ती है। इसलिए तय हुआ कि सोफा नया नहीं लेंगे। पुराने की मरम्मत कराएंगे। कारीगर को बुलाया गया। जावेद नाम का कारीगर फोन करते ही एक दिन बाद अपने साजो सामान लेकर बेटे के साथ हाजिर हो गया। सोफा उधेड़ते हुए उसने फरमाया कि आपका सोफा तो काफी मजबूत है। लकड़ी सागौन की है। आजकल नए सोफे इतने दिन कहां चलते हैं। तीन-चार साल में उनकी टैं बोल जाती है। अच्छा किया कि दीवाली से पहले बुला लिया। त्योहार पर किस्मत वालों को ही कारीगर नसीब होता है। पिछली दिवाली के ऑर्डर के काम अब तक कर रहा हूं। कारीगर की यह बखान झूठा नहीं था। इसका सबूत दो घंटे के दौरान उसके फोन पर धड़ाधड़ आ रहे काम के ऑर्डर थे। कई अंजान कॉल तो भाई ने उठाई भी नहीं। जावेद ने कील ठोकते हुए बताया कि पेट्रोल की महंगाई की मार सोफों पर भी पड़ी है। गद्दा बनाने में पेट्रोल का इस्तेमाल किया जाता है। अब तेल जितना महंगा होगा सोफा पर उछलना उतना ही खर्चीला होगा। फर्नीचर के काम में तेल और केमिकल का भरपूर इस्तेमाल होता है। यही वजह है फर्नीचर की गोदाम में लगी आग तेजी से फैलती है। लकड़ी, केमिकल और तेल का मिश्रण आग को और भड़काता है।
समय के साथ सोफों का बाजार आधुनिक और विशाल आकार ले चुका है। पहले फर्नीचर बेचने वालों के अपने कारीगर होते थे। वह उनसे फर्नीचर तैयार कराते थे। क्या माल लग रहा है, इसका उन्हें पता रहता था। अब व्यापार में काफी तब्दीली आ चुकी है। रॉ मैटीरियल लाने और काम कराने की टेंशन शोरूम संचालक लेना नहीं चाहते। उन्हें भी नहीं पता होता कैसा माल लगा है। छोटे-छोटे कारीगरों और व्यापारियों के पास इतना पैसा नहीं होता कि वह बड़े शोरूम खोल सकें। वह तो बस फर्नीचर चमका सकते हैं। इन दिनों शोरूम पर ऑनलाइन फर्नीचर की बुकिंग और डिलिवरी खूब हो रही है। ग्राहक के पास आने और ले जाने की भी फुर्सत नहीं है। वह इसमें विश्वास करता है, जितनी बड़ी दुकान, उतना अच्छा सामान। अगर आपका सोफा पुराना हो गया है और उसकी मरम्मत कराना चाहते हैं तो यह सही वक्त है। दीवाली के आसपास कारीगर आसानी से हाथ नहीं लगते।
- विपिन धनकड़
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टिप्पणियाँ
Very true n nice! It took us ages to take a sofa of our choice! It should be beautiful, elegant, smart,classy and upto our level, all at the same time 😁👌
जवाब देंहटाएंThanks Archita ji.
हटाएंबहुत बढ़िया बहुत ही सरल तरीके से आपने समझाया बहुत ही कम लोग होते हैं जो इस विषय पर लिखते हैं अगर आपने बहुत अच्छा लिखा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी।
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