विंटर ब्रेक
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कोरोना की दूसरी लहर ने न जाने कितनी जिंदगियों को हमसे छीन लिया। वह उन्हें अपने साथ बहा ले गई, जीवन के उस पार जहां कोई जाना नहीं चाहता। चिंता इस बात की है कि यह सिलसिला अभी थमा नहीं है। लहरों के आने की भविष्यवाणी की जा रही है। ऐसे में कविता 'लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।' हमे राह दिखाती है। हमें कोरोना को हराने के प्रयास और एहतियात जारी रखने होंगे। इस विश्वास के साथ कि जीवन की कश्ती महामारी की लहरों से पार जरूर होगी। ये लहरें चाहे जितना कहर बरपा लें, लेकिन हर लहर की एक सीमा होती है।
माना की व्यवस्थाएं डांवाडोल हैं। संसाधन जीवन की लड़ाई में कम पड़ जा रहे हैं। लेकिन बुरा वक्त भी कभी तो खत्म होगा। यह सिर्फ उम्मीद नहीं है। वह रास्ता भी है, जिस पर चलकर हमें आने वाले सुहाने कल को देखना है। जीना है और उसे संवारना है। अब तक महामारियों के बारे में सिर्फ सुना था। कल्पना के सागर में इनसे जान पहचान होती रहती थी। महामारियों को जहन में स्थापित करने का श्रेय हाॅलीवुड की फिल्में को जाता है। तकनीक, कल्पना और यर्थात को जिस तरह हाॅलीवुड अपने सिनेमा में जगह देता है, वह निश्चित रूप से आदरणीय है। जिंदगी की पहलुओं को पकड़ने और उठाने में वे उस्ताद हैं। यह सब परदे पर देखकर अहसास होता है, जीवन ऐसा भी हो सकता है। ये भी मसले हैं। उनकी खुलेआम जीवनशैली हमारा ध्यान खींचती है या फिर भंग करती है। महामारी अब कहानी और कल्पना नहीं रही। इसे हम जी रहे हैं। न चाहते हुए भी लोग मर रहे हैं। आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं। संक्रमण सुन-सुनकर दिमाग पक चुका है। 1918 में स्पैनिश फलू के वक्त जो तबाही मची, उसका सही-सही लेखा-जोखा नहीं है। जितना दर्ज है, उससे कहीं अधिक नुकसान हुआ। संचार, इलाज, तकनीक और आवाजाही के अभाव में बहुत मौत हुई। इन सब मामलों में हमने बेतहाशा तरक्की कर ली है, लेकिन खौफ और संक्रमण फैलने में इनकी भूमिका रही। तरक्की और बेहतरी के पायदान पर पहुंचने के बावजूद महामारी से निपटने में विश्व पिछड़ा ही साबित हुआ। न इसे हम फैलने से रोक पाए और न ही इसका मुकम्मल इलाज खोज पाए। वैक्सीन ने उम्मीद की किरण दिखाई है। पर यह भी हमें नहीं भूलना चाहिये कि कितनी जिंदगी हम गंवा चुके हैं और लड़ाई जारी है।
जीवन परिवर्तनशील है। महमारी भी नहीं रहनी। एक दिन यह भी अपनी गति को प्राप्त होगी। यह एक दुखद इतिहास बनकर रह जाएगी। आने वाली पीढ़ियां इससे आंकड़ों के रूप में रूबरू होंगी। पता नहीं वह कितना सबक लेंगी। लेकिन महत्व इस बात का है कि महामारी में हमने क्या किया? जो हम कर सकते थे, वह किया? मदद के लिए हाथ बढ़ाए या नहीं? महामारी सिर्फ बीमार नहीं करती। वह चरित्र भी उजागर करती है। देश का, व्यवस्था का, समाज का और हमारा।
सही बात है विपिन भाई।हमे इससे सबक लेने की जरूरत है।।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर।
हटाएंबहुत सुंदर लेख
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
हटाएंस्नेहवीर जी सबक तो हम तब लेंगे जब हमारी याददाश्त मजबूत होगी हम इंसानों की याददाश्त बहुत कमजोर हो गई है चार दिन बाद भूल जाएंगे कि कल क्या हुआ था महामारी की मार सिर्फ एक कथा बन कर रह जायेगी आने वाली पीडिया भी आरोप प्रत्यारोप मैं उलझे हुए अन्यमनस्क से होंगे
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर।
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