खत्म न हो जाए संबंधों का टाॅकटाइम!
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जो यह समझते हैं कि जंग तो सिर्फ बाॅर्डर पर लड़ी जाती है वह खुद को सही कर लें। जल, जमीन और आसमान के अलावा भी जंग के मैदान हैं। आजकल युद्ध मोबाइल पर भी लड़े जा रहे हैं या मोबाइल की वजह से लड़े जा रहे हैं। सिविल वाॅर और कोल्ड वाॅर तो मोबाइल को लेकर छिड़ी है। हम सब इसका हिस्सा हैं। मोबाइल के आने से पहले घरों में लैंडलाइन घनघनाते थे। घंटी हमारी बजती थी पता पड़ोसी तक को चल जाता था। करीब 20 साल पहले स्मार्टफोन का जन्म हुआ और अब यह जवान हो चुका है। यह उत्पात मचा रहा है। स्वभाव से ही मनचला है। कंपनियों ने इसको मनचला इसलिए बनाया है कि उनकी बाजार में चल सके। किसी भी खासियत पर यह ज्यादा दिनों तक टिकता ही नहीं। हर साल नये-नये वर्जन दिल चुराने के लिए बाजार में छोड़ दिए जाते हैं। मां-बाप की नजर औलाद पर रहती है और औलाद की मोबाइल पर। फोन के होने से जो समस्याएं खड़ी हुई हैं, वे भी कम नहीं हैं। मोबाइल की खोज इसलिए हुई कि आप किसी से भी कहीं भी कभी भी बात कर सकें। नजदीक लाने का यह उपकरण अब दूरियां पैदा करने का कारण भी बन रहा है।
फोन है के उठता नहीं, हम क्या करें
वैसे तो लोग मोबाइल पर व्यस्त रहते हैं, लेकिन फोन न उठने की समस्या विकराल रूप ले चुकी है। किसी के लिए यह हथकंडा है तो किसी के लिए फंडा है। जिस फोन की वजह से लोग दूर से पास हुए थे, अब उसके कारण ही दूर जा रहे हैं। फोन रिसीव नहीं होने के कारण संबंधों का टाॅकटाइम खत्म होने की कगार पर हैं। फोन न उठाने वालों की खूभी यह है कि जब उनका काम आपसे पड़ेगा तो तुरंत काॅल करेंगे। इस उम्मीद के साथ कि जैसे आप उन्हें हेल्लो कहने के लिए खाली बैठे हैं। नहीं उठा तो टैक्स्ट करेंगे। बात होने पर लाॅस्ट मिस्ड काॅल का जिक्र जरूर करेंगे। वो भी थोड़े खेद के साथ। काॅल्स के रिकाॅर्ड को खंगाला जाये तो मिस्ड काॅल का परसेंटेज काम के दबाव और तनाव की तरह बढ़ता ही जा रहा है। यह अनुसंधान का विषय हो सकता है। इससे फोन करने और न उठाने वालों की मनोवृत्ति से परदा हट सकता है। अनभिज्ञ नंबर को न उठाना एक वजह हो सकती है, लेकिन नाम से आने वाली काॅल को लगातार नजरअंदाज करना एक तयशुदा रणनीति का हिस्सा है। रिसीवर के लिए यह समय बचाने का तरीका हो सकता है, लेकिन संबंध और बातचीत की परंपरा के लिए किसी झटके से कम नहीं है। सामाजिक दृष्टिकोण से भी इसे सही नहीं ठहराया जा सकता। व्यस्तता का हम लाख हवाला दें, लेकिन ईमानदारी से सोचे तो जवाब देकर कुछ संबंधों और अहसासों को संरक्षित करने में चूक हो रही है।
सुन रहे प्यार की पाॅडकास्ट
जब से जिंदगी में मोबाइल दाखिल हुआ है, इसने वक्त को हड़प लिया है। इस पर निर्भरता इतनी बढ़ चुकी है कि प्यार, धमकी और झगड़े सब में यह शामिल है। लव बर्ड इसके जरिये अपनी कूक दिन-रात एक दूसरे को सुनाते हैं। रूहानी और जिस्मानी प्यार मोबाइल से हर वक्त एक दूसरे के टच में रहते हैं। कंपनियों ने भावनाओं के इस बाजार से खूब माल कमाया है। पैसे कमाने में पीसीओ भी पीछे नहीं रहे। डिब्बों में बंद लव बर्ड की प्यार की पींगे उनकी कमाई का मुख्य जरिया रही हैं। मनचले लड़कियां का मोबाइल नंबर लेने के लिए मारे-मारे फिरते हैं। कुछ तो मोबाइल पर सैटिंग करने के उस्ताद रहे हैं। उन्होंने प्यार के पोडकास्ट आज भी संभालकर रखे हैं। वह कभी भी प्ले कर यादें हरी कर लेते हैं। प्यार ही नहीं लड़ाई के लिए भी मोबाइल उपयुक्त है। झगड़ने के लिए आमना-सामने उपस्थित होने की जरूरत नहीं रही। फोन पर धमकी देकर मन के शोले शांत किया जा सकते हैं। वारदात स्थल पर झगड़ने के लिए आगंतुकों को बुलाने का काम फोन से मुमकिन है। 'तू मुझे जानता नहीं' कहकर फोन कान पर लगाने की अदा किसी की भी धड़कन बढ़ा सकती है। कुछ ने तो गुंडे फोन पर ही पाल रखे हैं।
एक अधिकारी का फंडा
एक अधिकारी ने एक बार बताया कि उन्होंने ऐसी प्रतिभाओं की लिस्ट बना रखी है, जिनका फोन नहीं उठाना। ये लोग टेंशन देने वाले हैं। बार-बार करने पर काफी देर बाद या एक दिन बाद खुद उनको फोन कर लेता हूँ। इसका लाभ यह है कि तब तक समस्या खत्म हो चुकी होती है या कमजोर पड़ जाती है। वह उससे संक्रमित होने से बच जाते है। इस फार्मूले को बहुत लोग अपनाते हैं, वह तुरंत फोन नहीं उठाएंगे। खाली होने के बाद याद रहा तो काॅल बैक करेंगे। हां ये बात अलग है कि जब खुद की जरूरत होगी तो काॅल पर काॅल करेंगे।
एक फोन के खातिर
फोन के फायदे भी हैं। जिस तरह फोन न उठना एक समस्या है, वैसे ही बड़े आदमी का फोन आना एक अवसर है। सिफारिश के मामले में तो फोन ब्रह्मास्त्र से कम नहीं है। ऊपर से फोन आ गया तो समझो आपका काम हो गया। ऐसे फोन कराने के लिए लोगों के दौड-दौडकर जूते घिस जाते हैं। नेताजी या ओहदेदार का एक फोन उनकी किस्मत चमका सकता है। जिस नेता या अधिकारी के फोन में दम नहीं, समझो वह होकर भी बेकार है। नेताजी तो खाते ही इस बात की हैं कि फोन कर देंगे। यह दिलाशा किसी प्यासे के लिए एक गिलास जूस के बराबर है। नेताजी को फोन बहुत करने पड़ते हैं इसलिए उनको इसका बिल मिलता है। जिनको बिल नहीं मिलता वह किसी भी फोन कराने के इच्छुक से रिचार्ज करा लेते हैं!
करने वाले भी सोचें
फोन के न उठने के लिए सिर्फ रिसीवर को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। करने वालों को भी सोचना चाहिए कब करना है और क्यों करना है? हो सकता है जिससे आप मन की बात करना चाहते हों, वह इस लायक ही न हो। उसकी अपनी मजबूरी हो सकती है। कर्तव्यबोध में वह व्यस्त हो सकता है। आपके बार-बार फोन करने से परेशान हो सकता है।
चलते-चलते
यह सच है फोन पर हम अपना बहुत सारा वक्त बर्बाद करते हैं। अनचाही काॅल परेशान करती हैं। जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए फोन को टूल के रूप में इस्तेमाल करें। यह भी ध्यान रखें कि कुछ लोग आपको दिल से फोन करते हैं तो उनका ख्याल रखें। रिश्तों को निभाने का अपना मजा है। वैसे भी जिंदगी में पता नहीं कब किसे किसकी जरूरत पड़ जाए।
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टिप्पणियाँ
Bahut achha lekh sambandon k liye
जवाब देंहटाएंBohot prabhavshali aur aaj Kay parivesh main yatharth
जवाब देंहटाएंThanx sir.
हटाएंbahut hi sunder vipin ji
जवाब देंहटाएंBhai wah 👌
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