विंटर ब्रेक

चित्र
सर्दी अकेली नहीं आती। अपने साथ विंटर ब्रेक, कोहरा, गलन भी लाती है। पहाड़ों पर बर्फ और मैदान पर शीतलहर का राज चलता है। एक चीज और लाती है सर्दी अपने साथ। न्यू ईयर। नये साल के जोश में चूर हम ठंड को ओढ़ते और बिछाते हैं। होटल, रेस्टोरेंट और सड़क पर जश्न मनाते हुए सर्दी का स्वागत करते हैं। सड़क पर ही बहुत से लोगों को कड़कड़ाती सर्दी सीमित कपड़ों और खुले आसमान में गुजारनी होती है।  चाय, काॅफी पीते और तापते हुए बोलते हैं ऐसी नहीं पड़ी पहले कभी। सर्दी का यह तकियाकलाम अखबारों में रोज रिकाॅर्ड बनाती और तोड़ती हेडलाइन को देखकर दम भरता है। मुझे विंटर ब्रेक का इंतजार औरों की तरह नहीं रहता। मैं पहाड़ों की जगह अपनी रजाई में घूम लेता हूं। मनाली, नैनीताल और मसूरी में गाड़ियों की कतार मुझे अपनी ओर नहीं खींच पाती। क्योंकि पत्नी और बेटे की छुट्टी रहती है और बाहर हम कम ही जाते हैं इसलिए मेरे ड्यूटी कुछ सख्त हो जाती है। रूटीन बेपटरी होने की शुरुआत अलार्म नहीं बजने से होती है। देर से सोना और सुबह जब मन करे उठना यह एैब इंसान को बर्बाद कर सकता है। दुनिया से काट देता है।  सर्दी बच्चों को बेकाबू होने की छूट देती है। नहान

आन पर गिरा आंसू, बना चिंगारी


किसान आंदोलन के अलग-अलग रंग हम टीवी, समाचार पत्रों और सोशल मीडिया पर देख रहे हैं। यकीन मानिए  तयशुदा कार्यक्रम के तहत जो जैसा रंग दिखाना चाहता है, हम वैसा ही देख रहे हैं। फिर उस पर एक राय कायम  साथ सोशल मीडिया पर उडेल देते हैं। इधर से उधर होने के लिए। पिछले कुछ दिनों से यही सब चल रहा है। आंदोलन में किसान नेता राकेश टिकैत के आंखों में आंसू आने के बाद उजड़ सा चुका गाजीपुर बाॅर्डर के आंदोलन में जोश और जज्बात का नया रंग आ गया है। यह कितना गहरा और असरदार होगा, यह तो समय बताएगा। फिलहाल चटक है। आंदोलन के इस टर्निंग प्वाइंट को देखने के लिए में भी गाजीपुर बाॅर्डर पहुंचा। कुछ रंग देखने के लिए।   


फाइल फोटो।


भाईसाहब आईडी दिखाओ 

यूपी गेट से करीब दो किमी दूर वैशाली के सेक्टर-2 में मैं रहता हूं। बाॅर्डर पर जब आंदोलन ने जोर पकड़ा था तो एक बार देखने गया था। कुछ लिखने से पहले देखना चाहता था। बृहस्पतिवार शाम से देर रात तक हाईवोल्टे ज ड्रामा देखने के बाद एक बार और जाने की उत्सुकता हुई। सुबह 10 बजे पैदल गाजीपुर बाॅर्डर पहुंच गया। इस बहाने मॉर्निंग वॉक भी हो गई। मोबाइल घर पर छोड़ दिया था, क्योंकि बेटे की ऑनलाइन क्लास क्लास चल रही थी। गेट पर पहुंचते ही मेरे पीछे आ रहे ट्रैक्टर से एक नौजवान उतरा और पूछताछ करने लगा। मैंने पूछताछ नहीं कि उसके सवालों से ही पता चल रहा था कि वह आंदोलनरत वालंटियर है, जिसकी अजनबी या संदिग्धों पर नजर रखने की जिम्मेदारी है। हो सकता है मेरे मुंह पर टाइट मास्क देखकर उसे संदिग्ध होने का अहसास हुआ हो। क्योंकि ज्यादातर मास्क नहीं पहने थे। थोड़ी सी बातचीत के बाद उसकी शंका दूर हो गई।   


टि कैत के लिए पानी ले जातेकिसान । यह फोटो अमर उजाला अख़बार में छपी है। 


आंसुओं का असर, पानी की टंकी 

राकेश टिकैत के आंसुओं का असर बृहस्पतिवार रात से ही दिखने लगा था। दिल्ली के आसपास से किसान और समर्थक आ गए थे। सुबह मंच के आसपास सैकड़ों समर्थक एकत्रित थे। हर किसी की जुबान पर आंसुओं का जिक्र था। प्रतीत हो रहा था टिकैत के आंसू किसान की आन पर गिरकर चिंगारी बन गए हैं। कल तक जिन किसानों के चेहरे पर चिंता और मायूसी दिख रही थी, वह जोश से लबरेज नारेबाजी कर रहे थे। सड़क के दोनों ओर ट्रैक्टर रेला था। किसानों के आने का सिलसिला जारी थी। तभी राकेश टिकैत के गांव से कुछ किसान पानी लेकर पहुंचे। एक किसान ने सिर पर वाॅटर कैंपर रखा था। कैंपर मंच पर पहुंचते ही कई समर्थकों की आँखों में पानी आ गया। राकेश टिकैत जिंदाबाद के नारे लगने लगे। यह लम्हा कैमरे में कैद करने और बाइट के लिए मीडियाकर्मी मंच की ओर लपके। कुछ देर बाद रालोद नेता जयंत चौधरी पहुंचे। रालोद कार्यकर्ता सुबह ही अपनी आमद दर्ज करा चुके थे। अपने नेता के पहुंचने पर उन्होंने नारेबाजी में कोई कमी नहीं छोड़ी। कुछ देर वह राकेश टिकैत से मिले और मीडिया से बात की। इसके बाद भी नेताओं के आने का सिलसिला जारी रहा। दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री  मंत्री मनीष सिशोदिया पहुंचे। कांग्रेस नेत्री अलंका लांबा आईं। 


फाइल फोटो।


महक उठे लंगर, फिर लगे टेंट 

मुख्य मंच के रास्ते पर दोनों ओर लंगर महक रहे थे। एक लंगर में सरदारजी छोले के भगोने में चमचा घुमा रहे थे। मसालों की खुशबू खाने का आमंत्रण दे रही थी। दूसरी और टेंट पर आंदोलन में शामिल लोग चाय की चुस्की ले रहे थे। बीते दिन शाम को टेंट के उखड़ने और लंगर बंद होने की खबरें प्रसारित हुई थी। मौके पर एक दर्जन से अधिक टेंटों में बन रहे खाने की मात्रा सैकड़ों की भूख शांत होने की सूचना दी रही थी। बनाने वाले उत्साह से भरपूर थे। मंच की ओर आने-जाने वाले की संख्या लगभग बराबर थी। सुरक्षाबल आंदोलन स्थल पर मुस्तैद था। पहले की तरह मंच से दूर मेन एंट्री और एग्जिट पर सड़क की दूसरी ओर पुलिस और पीएसी के वाहन कतारबद्ध थे। 


चलते-चलते 

आंदोलन शुरू हुआ है तो कभी न कभी खत्म भी होगा। किसी भी तरह की अप्रिय घटना, हिंसा या उत्पात को जायज नहीं ठहराया जा सकता। आंदोलन एकता से खड़े होते हैं और एकता से ही सफल होते हैं। 


- विपिन धनकड़ 


#RakeshTikait#GazipurBorder#किसान _आंदोलन 

टिप्पणियाँ

  1. अपनी राजनैतिक जमीन जो थोड़ी बहुत 2 बार जमानत जब्त होने के बाद बच गई है उसी को बचाये रखने के लिए जो घड़ियाली आंसू बहाए जो कल तक बक्कल उतारने का दम भर रहा था वो तो चूहा निकला लेकिन ना समझ किसान लोगो ने ये जानते हुए भी की ये कानून उनकी मदत और उन्नति के धोतक है फिर भी अपना स्वार्थ को ताक पर रख कर डकैत का साथ दिया कही ये साथ उनके गले की हड्डी न बन जाये और डकैत महा डकैत बन करदेश और समाज के लिए कोढ़ न बन जाये

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

विंटर ब्रेक

भाषाओं के बढ़े भाव, संस्कृत निकलेगी श्लोकों से बाहर

हमे तो लूट लिया मास्क वालों ने