विंटर ब्रेक

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सर्दी अकेली नहीं आती। अपने साथ विंटर ब्रेक, कोहरा, गलन भी लाती है। पहाड़ों पर बर्फ और मैदान पर शीतलहर का राज चलता है। एक चीज और लाती है सर्दी अपने साथ। न्यू ईयर। नये साल के जोश में चूर हम ठंड को ओढ़ते और बिछाते हैं। होटल, रेस्टोरेंट और सड़क पर जश्न मनाते हुए सर्दी का स्वागत करते हैं। सड़क पर ही बहुत से लोगों को कड़कड़ाती सर्दी सीमित कपड़ों और खुले आसमान में गुजारनी होती है।  चाय, काॅफी पीते और तापते हुए बोलते हैं ऐसी नहीं पड़ी पहले कभी। सर्दी का यह तकियाकलाम अखबारों में रोज रिकाॅर्ड बनाती और तोड़ती हेडलाइन को देखकर दम भरता है। मुझे विंटर ब्रेक का इंतजार औरों की तरह नहीं रहता। मैं पहाड़ों की जगह अपनी रजाई में घूम लेता हूं। मनाली, नैनीताल और मसूरी में गाड़ियों की कतार मुझे अपनी ओर नहीं खींच पाती। क्योंकि पत्नी और बेटे की छुट्टी रहती है और बाहर हम कम ही जाते हैं इसलिए मेरे ड्यूटी कुछ सख्त हो जाती है। रूटीन बेपटरी होने की शुरुआत अलार्म नहीं बजने से होती है। देर से सोना और सुबह जब मन करे उठना यह एैब इंसान को बर्बाद कर सकता है। दुनिया से काट देता है।  सर्दी बच्चों को बेकाबू होने की छूट देती है। नहान

लाॅकडाउन में कमाया, बर्ड फ्लू में गंवाया


महामारी अपने साथ जान और माल का संकट लेकर आती हैं। इस वक्त चिंता की बात यह है कि कोरोना के संकट से देश उभर भी नहीं पाया है कि बर्ड फ्लू ने पांच राज्यों में पैर पसार लिए हैं। केरल में इसे आपदा घोषित कर दिया गया है। राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश और हिमाचल प्रदेश में लगातार पक्षियों के मरने की पुष्टि हो रही है। 12 राज्यों को सतर्क रहने को कहा गया है। पक्षियों के जान के दुश्मन बर्ड फ्लू ने पोल्ट्री उद्योग को तगड़ा झटका दिया है। ब्राॅयलर फार्मिंग करने वाले किसानों को लाखों रूपये का नुकसान हो चुका है। दाम धड़ाम होने से बाजार में खलबली मच गई है।  लाॅकडाउन में जिस काम ने किसानों को मुनाफा दिया, वह बर्ड फ्लू की चपेट में आकर बर्बादी की कगार पर पहुंच गया है। 



जब कोरोना आया

देश में 24 मार्च को लाॅकडाउन लगाया गया था। इस दौरान कोरोना संक्रमण की वजह को लेकर इतनी स्पष्टता नहीं थी। चिकन से कोरोना होने की अफवाह फैली तो मुर्गे और अंडे का बाजार ढह गया। हाल यह रहा कि 10 रूपये किलो में भी मुर्गे के खरीदार नहीं मिले। लेकिन कुछ समय बाद बाजार बदला। लाॅकडाउन में चिकन की कीमत 150 रूपये किलो तक पहुंची। इस बीच सात-आठ महीने में ब्राॅयलर फार्मिंग करने वाले किसानों ने अच्छा मुनाफा कमाया। ब्राॅयलर फार्मिंग करने वाले शैशव के मुताबिक ब्राॅयलर चिकन का बाजार आमतौर पर 80 से 100 रूपये किलो के बीच रहता है। इसमें 60 से 70 रूपये की लागत चूजा खरीदने और उसकी परवरिश में आ जाती है। जब भी दाम 100 के ऊपर जाता है किसानों का फायदा बढ़ता है। अचानक से ये घाटे का सौदा हो गया है। 



नए प्लेयर आए, पुराने भी लौटे

ब्राॅयलर मुर्गी की एक ब्रीड है। दुनिया में चिकन आपूर्ति का 70 से 80 प्रतिशह हिस्सा इसी ब्रीड से आता है। इसकी खास बात यह है कि इस ब्रीड की मुर्गी 35 से 40 दिनों में करीब दो किलो वजन तक हो जाती है। जल्दी वह बाड़े से बाजार में आ जाती है। लाॅकडाउन में ब्राॅयलर फार्मिंग के बाजार में अच्छे दाम मिलने की वजह से नए प्लेयर बाजार में आए। नये बाड़े भी खुले। कुछ पुराने प्लेयर जो बंद कर चुके थे, उन्होंने फिर से फार्म में चूजा डाल दिया। ऐसे में जब बाजार में ग्राहक कम थे, चिकन का बाजार गरम चल रहा था। व्यवसायी वर्ग का इस ओर ध्यान गया। किसान 5 हजार, 10 हजार या अधिक के हिसाब से चूजे का बाढ़ा तैयार कराते हैं। दाम अच्छे मिल जाएं तो मुनाफा लाखों में होता है। इसी तरह घाटा भी लाखों में होता है। फ्लू की वजह से पिछले तीन-चार दिनों में चिकन के बाजार पर असर दिखा है। 110 रूपये से लेकर 60 रूपये किलो तक चिकन के दाम आ चुके हैं।



वेस्ट यूपी प्रभावित

यूपी में अभी बर्ड फ्लू के फैलने की पुष्टि नहीं हुई है। पक्षियों और मुर्गा पालन के लिहाज से वेस्ट यूपी अहम है। सर्दी के दिनों में यहां प्रवासी पक्षी आते हैं। हस्तिनापुर सेंक्चुअरि में एक दर्जन से अधिक जगहों पर इन पक्षियों को देखा जाता है। इन दिनों सेंक्चुअरि क्षेत्र में पक्षियों पर नजर रखी जा रही है। कुछ सालों में मेरठ और आसपास के क्षेत्र में पोल्ट्री में किसानों की दिलचस्पी बढ़ी है। व्यापारियों ने भी खूभ हाथ आजमाया है। नए स्टार्टअप में ब्राॅयलर फाॅर्मिंग एक विकल्प के रूप में उभरी है। चिकन की आपूर्ति के लिए बड़ी मंडी में दिल्ली की गाजीपुर मंडी है। यहां उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसान ब्राॅयलर की सप्लाई करते हैं। वेस्ट यूपी में चिकन की खपत में बड़े शहरों में से मेरठ एक है। यहां रोजाना करीब 40 से 50 हजार मुर्गों की खपत हो जाती है। मुर्गों से भरी 20 से 25 गाड़ियां हर दिन खाली हो जाती हैं। बर्ड  फ्लू की वजह से यह धंधा चैपट होने लगा है। इस वक्त जिनके बाड़े चूजों से भरे हैं, उनको लाखों रूपये का नुकसान हो चुका है। बाजार भाव लागत के जितना भी नहीं रहा।

चलते-चलते

लाॅकडाउन में और उसके बाद चिकन के व्यापार ने उससे जुड़े लोगों को खूभ मुनाफा दिया। बर्ड फ्लू के आने से यह धंधा चौपट होने लगा है। जल्दी उभरने की उम्मीद भी कम दिख रही है। 


- विपिन धनकड़ 


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