विंटर ब्रेक

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सर्दी अकेली नहीं आती। अपने साथ विंटर ब्रेक, कोहरा, गलन भी लाती है। पहाड़ों पर बर्फ और मैदान पर शीतलहर का राज चलता है। एक चीज और लाती है सर्दी अपने साथ। न्यू ईयर। नये साल के जोश में चूर हम ठंड को ओढ़ते और बिछाते हैं। होटल, रेस्टोरेंट और सड़क पर जश्न मनाते हुए सर्दी का स्वागत करते हैं। सड़क पर ही बहुत से लोगों को कड़कड़ाती सर्दी सीमित कपड़ों और खुले आसमान में गुजारनी होती है।  चाय, काॅफी पीते और तापते हुए बोलते हैं ऐसी नहीं पड़ी पहले कभी। सर्दी का यह तकियाकलाम अखबारों में रोज रिकाॅर्ड बनाती और तोड़ती हेडलाइन को देखकर दम भरता है। मुझे विंटर ब्रेक का इंतजार औरों की तरह नहीं रहता। मैं पहाड़ों की जगह अपनी रजाई में घूम लेता हूं। मनाली, नैनीताल और मसूरी में गाड़ियों की कतार मुझे अपनी ओर नहीं खींच पाती। क्योंकि पत्नी और बेटे की छुट्टी रहती है और बाहर हम कम ही जाते हैं इसलिए मेरे ड्यूटी कुछ सख्त हो जाती है। रूटीन बेपटरी होने की शुरुआत अलार्म नहीं बजने से होती है। देर से सोना और सुबह जब मन करे उठना यह एैब इंसान को बर्बाद कर सकता है। दुनिया से काट देता है।  सर्दी बच्चों को बेकाबू होने की छूट देती है। नहान

डरावने दौर में नहीं हटे पीछे, बचाई जानें


कोरोना से लड़ने के लिए देश में वैक्सीनेशन शुरू हो चुका है। उम्मीद कर सकते हैं कि महामारी के खात्मे की तरफ हमने कदम बढ़ा दिए हैं। एक वक्त था जब कोरोना से सब कुछ थम सा गया था। संक्रमण की दर और मौत के आंकड़े डर बढ़ाते ही जा रहे थे। लाॅकडाउन का वो मंजर देशवासियों के जहन से जाने वाला नहीं है। डाॅक्टर्स और मेडिकल स्टाॅफ ने इस दौर में जिंदगियां बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगा दी। कुछ ने गंवाई भी। इस बीच एक अस्पताल ऐसा भी रहा, जहां यह महामारी इलाज रोक नहीं पाई। मुश्किल वक्त और पहाड़ जैसी चुनौती में मेरठ-रूड़की रोड स्थित आर्यवर्त हाॅस्पिटल के कोरोना वाॅरियर ने न जाने कितनी सांसों और तकलीफों को बचाया है। दिल्ली तक के मरीजों को अस्पताल ने मुश्किल दौर में संभाला।


मरीज को देखते डॉक्टर मलय शर्मा।


इलाज में नहीं आई कमी

आर्यवर्त हाॅस्पिटल मेरठ से करीब 10 किमी दूर दौराला में स्थित है। मरीजों के लिए इस हाॅस्पिटल की उपस्थिति जंगल में मंगल जैसी है। अस्पताल के चारों ओर गन्ने और गेहूं की लहलहाती फसल मरीजों को प्रकृति के करीब होने का अहसास देती है। हाॅस्पिटल का आधुनिक और विशेषज्ञ इलाज पेट के रोगियों को पूरी तरह समर्पित है। यहां देश के जाने माने गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजिस्ट डाॅ. मलय शर्मा अपनी टीम के साथ दिन रात लगे रहते हैं। अस्पताल की खास बात यह है कि एक छत के नीचे पेट के रोगियों का आधुनिक इलाज संभव है। जिस इलाज के लिए मरीज दिल्ली जैसे बड़े शहरों का रूख करते हैं, वह यहां पर होता है। पेट और लीवर के गंभीर मरीज जो कोरोना काल में इलाज के लिए परेशान थे, उनका लाॅकडाउन में भी इलाज नहीं रूका। कोरोना ने जब दस्तक दी तो डाॅक्टरों में भी दहशत थी। क्लीनिक बंद रहे। मरीज अस्पतालों के चक्कर लगा रहे थे। 24 मार्च को लाॅकडाउन लगा था। अस्पताल में गंभीर मरीजों का इलाज होता रहा। सीनियर रेजिडेंट्स की टीम ट्रीटमेंट करती रही। सभी तैयारी के साथ डाॅ. मलय ने 15 अप्रैल से अस्पताल की ओपीडी खोल दी थी। बहुत से अस्पतालों में तब ओपीडी शुरू नहीं हुई थी। स्टाफ 15-15 घंटे पीपीई किट में गुजार रहे थे। इलाज के लिए आसपास के जिलों के अलावा दूसरे प्रदेशों से भी मरीज अस्पताल पहुंच रहे थे। वायरस के बीच सोशल डिस्टेंसिंग के साथ इलाज करना कतई आसान नहीं था। 

डॉक्टर मलय का फाइल फोटो।

गैस्ट्रो का बड़ा केंद्र है मेरठ

मेडिकल सुविधाओं के मामले में मेरठ को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का हब माना जाता है। यहां आसपास के जिलों के मरीज इलाज के लिए आते हैं। सरकारी में लाला लाजपत राय मेडिकल काॅलेज है। प्राइवेट में सुभारती मेडिकल काॅलेज है। गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजिस्ट में मेरठ का बड़ा नाम है। इलाज के अलावा रिसर्च में भी कम नहीं है। गैस्ट्रो का पूरा सैटअप है। डाॅ. मलय के आर्यवर्त अस्पताल की पहचान पूरे देश में है। उनके पास इंटर्नशिप के लिए देश के अलग-अलग काॅलेजों से डीएम की पढ़ाई करने वाले डाॅक्टर आते हैं। चार से पांच डीएम डाॅक्टर इंटर्नशिप पर हर वक्त मौजूद रहते हैं। वह रेजिडेंट डाॅक्टर के रूप में काम करते हैं। इससे मरीज और डाॅक्टर दोनों को फायदा है। डाॅक्टरों को उनके अनुभव योग्यता के लिहाज से उस तरह के मरीज मिल जाते हैं और मरीजों को 24 घंटे ट्रीट करने के लिए एमबीबीएस, एमडी और डीएम स्तर के डाॅक्टर उपलब्ध रहते हैं। यह जुगलबंदी इलाज और मेडिकल साइंस के लिए जरूरी है। यही वजह है कि देश के किसी भी राज्य में चले जाइये, गैस्ट्रो प्रैक्टिशनर में मेरठ में इंटर्न करने वाले डाॅक्टर मिल जाएंगे।


डॉक्टर मृदुला शर्मा का फाइल फोटो

चुनौती बड़ी थी, स्वीकार की

आर्यवर्त अस्पताल की डायरेक्टर डाॅ. मृदुला शर्मा का कहना है लाॅकडाउन के दौरान इलाज करना बड़ी चुनौती थी। इसको अस्पताल की टीम ने स्वीकार किया। मरीजों की हालत खराब होती जा रही थी। दिल्ली में संक्रमण बढ़ रहा था। वहां से भी मरीज आ रहे थे। आसपास के जिलों के अलावा हरियाणा और उत्तराखंड से भी मरीज आ रहे थे। सामान्य दिनों के मुकाबले ओपीडी कई गुना बढ़ गई थी। डॉक्टर. मलय और उनकी टीम सुबह से लेकर रात तक इलाज में जुटी रहती थी। सोशल डिस्टेंसिंग और सैनिटाइजेशन का पूरा ख्याल रखा गया। अस्पताल परिसर का ओपन एरिया काफी काम आया। क्योंकि अस्पताल शहर से बाहर है और भीड़भाड़ नहीं है, इसलिए संक्रमण का खतरा थोड़ा कम था। एकांत में जाने का यह फायदा मिला।


चलते-चलते 

जितनी बड़ी चुनौती होती है, उतना ही बड़ा अवसर। कोरोना काल में बहुत लोगों ने इसके आगे हार नहीं मानी। वायरस को हमने अभी हराया नहीं है, लेकिन हिम्मत और मेहनत से बहुत सी जानों को हारने से जरूर बचाया है। यह जुनून जारी रखने की जरूरत है।


- विपिन धनकड़ 


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