नामलीला
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अमिताभ बच्चन, शाहरूख खान, आमिर खान, अक्षय कुमार, माधुरी दीक्षित, रवीना टंडन, दीपिका पादुकोण और सनी लियोनी। इनका नाम तो सुना होगा। ये सभी पहचान के मोहताज नहीं हैं। लाखों करोड़ों फाॅलोअर हैं इनके। जब इन सेलीब्रेटीज के नाम रखे गए होंगे तो शायद इतने चर्चित हो जाने का इल्म नहीं रहा होगा। काम से इन्होंने अपनी पहचान बनाई। कुछ नाम छोटे होते हुए भी जिंदगी में बड़ा महत्व रखते हैं। नाम अटपटे और चटपटे हो सकते हैं। अपनापन छोटे नाम को भी बड़ा बना देता है। कुछ नाम सब्जी में आलू की तरह काॅमन होते हैं, हर जगह मिल जाएंगे। घुलने-मिलने में उनका जवाब नहीं। हर नाम के पीछे कोई न कोई कहानी जरूर होती है। सफलता की, बदनामी की, पास की, फेल की और अनगिनत किस्सों की।
एक था कालू
कालू का 'एक था टाइगर' से कोई लेना-देना नहीं है। हां, जिंदगी वह जरूर टाइगर स्टाइल में जीता है। किसी से डरता नहीं। एकदम दबंग। चश्मे लगाकर कालू डबल दबंग हो जाता है। उसकी यारी पर यार चौड़े रहते हैं। पर्यटन धार्मिक हो या मौजमस्ती का, कालू के बिना अधूरा है। छत फाँदनी हो, पतंग लूटनी हो या डांस करना हो, कालू हर फन का माहिर है। कालू के किस्से रिश्तेदारियों तक फैले हैं। ऐसी कोई शादी नहीं जो बिना कालू के सम्पन्न हुई हो। सबसे अहम बात यह है कि कालू को कालू कहने पर कोई आपत्ति नहीं है। यहां तक की उसने हाथ पर भी कालू गुदा रखा है। कागज में दूसरे नाम है, लेकिन उसकी पहचान कालू जैसी नहीं है। दूसरा चर्चित और काॅमन नाम है छोटू। इस नाम की यूएसपी यह है कि कहीं पर भी खड़े होकर पुकार दो, कम से कम दो-तीन छोटू मिल जाएंगे। वह काम चाहे जितना बड़ा कर दें, रहेंगे छोटू ही। इस नाम से किसी का भी नामकरण किया जा सकता है। बस शर्त यह है कि वह दिखने में अपने नाम जैसा हो। छोटू के कुछ पर्यायवाची भी हैं, जैसे छोटे, छुट्टन, छुटका। छोटू होने के कुछ फायदे भी हैं। कभी भी किसी की मेहरबानी हो सकती है। गलती भी माफ हो सकती है।
नामकरण की प्रक्रिया
नाम रखना आसान काम नहीं है। इस काम को हमने राॅकेट साइंस बना दिया है। पहले नाम खोजना फिर उसका अर्थ ढूंढना। नाम को लेकर घरों में खूब मंथन और माथापच्ची होती है। नाम पर आम सहमति आसान बात नहीं है। सबको आकर्षक और अलग सा नाम चाहिये। कुछ मां-बाप तो संतान के आने से पहले उसका नाम तय कर लेते हैं, कुछ महीनों तक नहीं रख पाते। कुछ सालों से नाम को लेकर कुछ ज्यादा ही मेहनत हो रही है। पुराने दौर में दादा-दादी ने प्यार से सिर पर हाथ फेरकर जो नाम चिपका दिया, बस वही अमर हो गया। टिल्लू, कल्लू, बिल्लू जैसे नाम इसका प्रमाण हैं। दूसरे नाम का जन्म स्कूल जाने पर होता था। बहुत से ऐसे बालक हैं, जिनके नाम मास्टर जी ने धरे हैं और अब वे बुड्ढ़े हो चुके हैं। लड़कों के नाम के पीछे कुमार और लड़कियों के नाम के साथ कुमारी कई दशकों तक लगते रहे। आजकल नामों के साथ सरनेम का चलन है।
देशी नामावली
लीलू, बबलू, गोलू, गिल्लू, गुड़िया, गुड्डन, मीठी, बुल्ला, पप्पू, मिंटू, पप्पी, बिट्टो, बबली, गोलो, गुड्डू, गट्टू, छोटी, मोटी, मुन्नी, मुन्ना, टिल्लू, बिल्लू, बुद्वू, नोनू, कल्लन, लल्लन, कल्लू, बब्बल आदि देशी नाम की लम्बी फेहरिस्त है।
चलते-चलते
नाम काम से बनते हैं। इससे फर्क नहीं पड़ता कि वह देशी है या विदेशी, आध्यात्मिक है या कलात्मक। मेहनती, ईमानदार, मददगार, हंसमुख, व्यवहारिक आदि गुण वाले व्यक्ति हमें याद रहते हैं। उनका नाम क्या है, इससे फर्क नहीं पड़ता। हाँ, अच्छे लोगों के नाम याद रह जाते हैं।
- विपिन धनकड़
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टिप्पणियाँ
Amazing. It was fun the read today's blog.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
हटाएंNice blog..
जवाब देंहटाएंVisit too parpining.blogspot.com
धन्यवाद आपका।
हटाएंसही बात है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर।
हटाएंVery realistic blog.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
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