ये इज़हार अच्छा नहीं
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किसी भी चीज का अस्तित्व उसकी उपयोगिता से जुड़ा होता है। कुछ चीजों की उपयोगिता मस्ती के लिए तो ठीक है, लेकिन उन्हें सही नहीं कहा जा सकता। ऐसी ही एक वस्तु है पटाखा। हमारा खुशी का इजहार पटाखों से शुरू होकर इन्हीं पर ही खत्म होता है। हर जीत पर पटाखा फोड़ने की संस्कृति हम ने गढ़ दी है। जीत क्रिकेट के मैदान पर हुई हो या राजनीति की बिसात पर, पटाखे ही जलाए जाते हैं। दीपों के पर्व दीवाली पर दीया जलाने का उत्साह मन में उतना नहीं दिखता, जितना पटाखे फोड़ने का रहता है। खुशी का यह इजहार हमारी सांसों पर प्रहार कर रहा है। वक्त पटाखे जलाने का नहीं बल्कि इनको हमेशा के लिए छोड़ने का है।
पहले दीये जले, अब दिल
त्योहार खुशी और उमंग लेकर आते हैं। इनको मनाने के मनमाने तरीकों से हमने अपनी ही परेशानी बढ़ा दी है। दिवाली भगवान श्रीराम से जुड़ी है। रावण पर जीत हासिल कर जब श्रीराम अयोध्या लौटे तो खुशी में दीये जलाए गए। तब से हम यह त्योहार मनाते आ रहे हैं। इस खुशी में पटाखों को हमने शामिल किया है। तब तो पटाखे होते भी नहीं थे। सबसे ज्यादा पटाखे दिवाली पर छोड़े जाते हैं। दीये जलाने की इस विशालकाय परंपरा में पटाखे खलल की तरह हैं। आग पटाखों में लगती है और जलता दिल है।
हम मानते ही नहीं
हर दिवाली पर पटाखे न छोड़ने की बात खूब होती है। पटाखे बैन किए जाते हैं। पर ये बिकते भी हैं और जलते भी हैं। आखिर पटाखे न छोड़ने की आदत हमारी कब बदलेगी? यह बदलाव आसान नहीं लगता। आंकड़े भी हमे नहीं डराते। शायद हम इस बात का इंतजार कर रहे हैं की दिवाली की रात वायु प्रदूषण से मौत के आंकड़ें हमारे सामने आने लगें। हमारा कोई अपना इसका शिकार बने। सोचिए, घर में रसोई, धूपबत्ती और अगरबत्ती के थोड़े से धुएं से घुटन होने लगती है तो वायुमंडल में जो हम हानिकारक धुआं झोंक रहे हैं, उससे क्या होता होगा। आखिर में वह धुआं आपकी और हमारी सांस का हिस्सा बनता है। धुएं में मौजूद कार्बन, नाइटोजन, सल्फर और हैवी मैटल जहन के लिए कुछ नाम हैं, लेकिन अंगों के लिए ये किसी जहर से कम नहीं हैं।
सख्ती, सबूत, सहयोग
पटाखों का प्रयोग बंद करने के लिए हमें सख्ती, सबूत और सहयोग के दिशा में काम करने की जरूरत है। सख्ती का काम पुलिस और प्रशासन का है। राज्य सरकारों को सुनिश्चित करना चाहिये कि किसी भी किस्म के पटाखों का निर्माण न होने दिया जाए। इनके निर्माण में शामिल लोगों को चिन्हित कर बातचीत और सख्ती से काम लिया जाए। गुपचुप तरीके से कोई पटाखा बनाता है और बेचता है तो उस पर कार्रवाई हो। हालांकि एफआईआर दर्ज की जा रही हैं। जलाने वालों पर भी कार्रवाई हो। सबूत के तौर पर उनके फोटो खीचकर भेजने का विकल्प दिया जा सकता है। शिकायतों पर कार्रवाई हो। समर्थक और फैंस पटाखे छोड़ते हैं तो उन पर भी कार्रवाई हो। राजनीतिक पार्टियों को इसका विरोध करना चाहिये। कार्यकर्ता पटाखे छोड़ते हैं तो उन पर कार्रवाई करें। सहयोग के लिए जागरूक किया जाए। स्कूल और अन्य संस्थाओं का सहारा लिया जाए। गांव, मोहल्ले और सोसायटीज का सहयोग लिया जाए।
चलते-चलते
खुशी और त्योहार के मौके पर पटाखे जलाने की आदत छोड़नी होगी। इससे पहले की मुकदमा, जुर्माना हो या किसी की जान जाए। दो पल की खुशी की ये बेहूदगी जिंदगी में जहर घोल रही है।
- विपिन धनकड़
#Pollution#Delhi#AQI#Diwali
टिप्पणियाँ
बिल्कुल सही कहा सर।सिर्फ पटाखे ही नहीं पैसे भी जलते है।मेरी सलाह ये है अगर लोगो पैसे ही जलाने है तो वही जला के निपट जाए कम से कम प्रदुषण पर तो चोट कम होगी
जवाब देंहटाएंTrue sir.
हटाएंबिल्कुल सही कहा सर।सिर्फ पटाखे ही नहीं पैसे भी जलते है।मेरी सलाह ये है अगर लोगो पैसे ही जलाने है तो वही जला के निपट जाए कम से कम प्रदुषण पर तो चोट कम होगी
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