विंटर ब्रेक
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शिक्षक देश के तारणहार हैं! सरकार ने इनको बहुमुखी प्रतिभा का धनी मान रखा है। राशन बंटवाने से लेकर, बैंक खाता का आधार नंबर से टांका भिड़वाने का काम इनको सौंपा हुआ है। स्कूल में सजा देने पर तो करीब-करीब प्रतिबंध सा है, लेकिन सड़क पर चालान काटने की इजाजत है। कोविड काल में गुरूजी ने रिक्शा में बैठकर जन गण को जागरूक किया। कंटेनमेंट जोन में घर-घर जाकर राशन पकड़ाया। संक्रमित भी हुए। सरकारों के पास शिक्षक रूपी ऐसी चाबी है, जिससे वह किसी भी योजना का ताला खोल सकती हैं। पढ़ने-पढ़ाने का काम तो चलता रहेगा। ऐसे शिक्षक पाकर सच में हम धन्य हैं।
स्कूल-काॅलेज की नौकरी 5-6 घंटे की तो है। फैट सैलरी है। मास्टर जी और मास्टराइन मौज काट रहे हैं। ऐसा सोच-सोचकर लोग दुबले हुए जा रहे हैं। काम लेने वालों और लोन देने वालों की शिक्षकों पर गिद्द दृष्टि है। आदेश की धौंस जमाकर कोई भी काम करा सकते हैं। अब पढ़ाई पर आते हैं। पप्पू पास न हो तो सबके चप्पू शिक्षक पर ही चलते हैं। आखिर फैट सैलरी जो है। रिजल्ट बंपर आए तो यह सरकार की योजनाएं और अथक प्रयास का नतीजा है। श्रेय की होड़ में शिक्षक का नंबर आखिर में आता है। मिड डे मील बंटा या नहीं, किताबें मिली या नहीं, खाते में छात्रवृत्ति पहुंची या नहीं... रिकाॅर्ड रखते-रखते शिक्षक सांख्यिकी कर्मचारी बन गए हैं। सरकारों के लिए शिक्षक डेटा तो शिक्षकों के लिए डेटा नौकरी चलाने का साधन बन चुका है।
नई शिक्षा नीति-2020 पर आजकल खूब डिजिटल चर्च हो रही है। कोई उसे छात्र उन्मुखी तो कोई शिक्षक उन्मुखी बता रहा है। प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक करीब 33 करोड़ विद्यार्थियों पर यह लागू होगी। इसका जिम्मा उन्हीं शिक्षकों के कंधे पर है, जो सरकार की हर योजना में कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। वैसे पुरानी शिक्षा नीति पर भी पूरा पालन कहां हुआ। क्लास में छात्रों की संख्या मानक से कहीं अधिक है। शिक्षकों को दूसरे कामों से विरत करने के बात हवा हो गई। पद खाली पड़े हैं। शिक्षकों पर कई गुना भार बढ़ चुका है। नीति बदलने से अधिक नजरिया बदलने की जरूरत है। नई शिक्षा नीति से कितना बदलाव होगा, यह तो समय ही बताएगा। नियति बदलने पर अभी विचार करना बेकार है।
विद्या के तंत्र में भी भ्रष्टाचार विद्यमान है। चयन प्रक्रिया सवालों के घेरे में रहती हैं। विज्ञापन आने, परीक्षा होने और ज्वाइनिंग में सालों गुजर जाते हैं। शिक्षक महोदय जब मैदान में उतरते हैं तो पता चलता है कि अभी कई और मोर्चों पर परीक्षा देनी है। जिनका पढ़ाई से कोई मतलब नहीं है। प्रशिक्षित शिक्षिकों की ट्रेनिंग में पता नहीं कौन सी खामी है, जिसे पूरी करने के लिए आये दिनों प्रशिक्षण आयोजित किए जाते हैं। पेपर वर्क, चाटुकारिता, चुगलखोरी आदि का एक अनिवार्य चैप्टर बना देना चाहिये। इनके बिना नौकरी की डगर बड़ी कठिन है। नई ज्वाइनिंग प्राप्त शिक्षक सबकी नजर में मुर्गा है। उसको हर कोई हलाल की नजर से देखता है।
शिक्षकों से ज्यादा कोरोना ने सिखा दिया। कोरोना विश्व गुरू बनकर सामने आया है। इसने सबको कुछ न कुछ सिखाया है। विज्ञान से तकनीक तक अहसास करा दिया कि अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है।
बहुत अच्छा लिखा।
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर।
हटाएंI'm enjoying reading such beautifully and nicely written blog keep posting.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर।
हटाएंTeachers ke mun ke baat bahut khoob
जवाब देंहटाएंThanks.
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