मेड बिना चैन कहां रे...
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यह बात सच है। यकीन नहीं आता तो महिलाओं के दिल से पूछो। इनके बिना तो पुरूष भी पीड़ित हैं। महिला सशक्तिकरण में मेड का अभिन्न योगदान है। ये हमारे घर में पौचा और बर्तन घिसती हैं, तब जाकर वक्त मिलता है अपनी करियर और खुद को चमकाने का। इसके बदले हम इन्हें कुछ पैसे जरूर देते हैं, लेकिन इनकी उपयोगिता कहीं अधिक है। ये न हों तो नौकरी करनी मुश्किल हो जाए। घर में जब से मेड को मना किया है, मैडम का मन उदास और शरीर थकास से भरा रहता है। संबंध तनाव से गुजर रहे हैं। संवाद उत्तेजना से लबालब है। भला इन हालातों में मेड का गुणगान और चर्चा क्यों न करें। लाॅकडाउन के बाद मेड की आवाजाही शुरू हो चुकी है, लेकिन अभी भी बीते दिन लौटने बाकी हैं।
दे मेड फोर Each अदर
जिन्हें हम काम वाली बाई, नौकरानी और मेड कहते हैं, दरअसल ये महानगरों की लाइफ लाइन हैं। भागदौड़ भरी जिंदगी इनके बिना ठहर सी जाती है। घर में करने को इतने काम हैं कि दिन गुजर जाए पर काम खत्म नहीं होते। सुबह से शाम कब हुई पता ही नहीं चलता। तीन वक्त का खाना, झाडू, पौचा, कपड़े धुलना, प्रेस करना, चाय बनाना, बर्तन आदि बहुत सारे नाॅन प्रोडेक्टिव काम हैं, जिनको गिनने में आप थक जाएंगे। करने में हांफ जाएंगे। कपड़े और घर संभालना ही अपने आप में बड़ा चुनौतीपूर्ण है। मौजे नहीं मिल रहे, बनियान गायब है, रूमाल का पता नहीं, मास्क कहां रखे हैं, जैसे छोटे-छोटे काम की लंबी लिस्ट है। मेड के दम पर ही महिलाएं तरक्की का दंभ भर रही हैं। कुछेक अपवाद हो सकती हैं। मेड और महिलाओं को देखकर लगता है दे मेड फोर ईच अदर।
बना दिया सेल्फ मेड
मेड की सबसे ज्यादा डिमांड सोसायटीज में है। बहुमंजिला इमारतों के काम का बोझ इनके कंधों पर है। यहां इनका काम संस्थागत है। एकसाथ कई घरों में काम मिलने से इनको इधर-उधर नहीं भटकना पड़ता। मकान मालिकनों को आराम मिलजाता है। बिल्डर फ्लैट्स, घरों में भी इनकी जरूरत कम नहीं है। एकल परिवार और जब पति-पत्नी वर्किंग हों तो बस इनका ही सहारा है। कोरोना काल में सोसायटीज में मेड की इंट्री बंद कर दी गई थी। घर का काम पहाड़ लगने लगा। जिसे मियां और बीबी मिलकर उठा रहे थे। हालांकि अब सोसायटीज में मेड काम पर लौटने लगी हैं। मेड की नामौजूदगी ने महिलाओं को सेल्फ मेड बना दिया। पुरूषों को भी घर साफ, पौछा और हाथ साफ करने का मौका मिला।
मशीन खरीदी, पौछा लगाया
ग्रेटर नोएडा की एक सोसायटी में रहने वाली प्रेरणा बताती हैं कि लाॅकडाउन में मेड आनी बंद हो गई थीं। उसको अभी नहीं लगाया है। बच्चे का स्कूल और पति का ऑफिस घर से ही चलता है। ऐसे में काम का बोझ बढ़ गया है। पर एहतियात पहले है। हालांकि सोसायटी में मेड काम पर लौट आई हैं, लेकिन मैंने अभी नहीं लगाई है। नोएडा की पाॅश सोसायटी के रिहायशी रविंद्र का कहना है उनकी सोसायटी में करीब 70 प्रतिशत मेड काम पर लौट आई हैं। इनके बिना लोगों को बड़े पापड़ बेलने पड़े हैं। घरों में पौछा लगाने और डस्टिंग करने की मशीनों की खपत बढ़ गई। पेड मोड से लोग सेल्फ मेड पर आ गए।
मेड और आप रहें सेफ
- घर पर जब मेड आए तो मुंह पर मास्क जरूर लगवाएं।
- रोज एक नया मास्क अपनी ओर से भी दे सकते हैं।
- काम शुरू करने से पहले हाथ सैनिटाइज कराएं।
- जितना अपनी तबियत की लेकर फिक्रमंद है, उतना उसका भी ख्याल रखें।
- खुद बीमार पड़ने या मेड के बीमार होने पर जरूरी हो तो दोनों टेस्ट कराएं और आइसोलेट करें।
- मेड एक-दूसरे के घर जाती हैं इसलिए मास्क और सैनिटाइज में लापरवाही कतई न बरतें। यह दोनों के लिए सेफ है।
चलते-चलते
कोरोना ने बहुतों की नौकरी छीन ली। इनमें मेड भी शामिल हैं। अच्छी बात है कि वह काम पर लौट आई हैं। सावधानी और सूझबूझ से काम लेने की जरूरत है। क्योंकि मेड बिना चैन कहां रे...
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टिप्पणियाँ
बिल्कुल सही फरमाया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर।
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
हटाएंशानदार सर
जवाब देंहटाएंमेड पर लगभग हर गृहणी आश्रित है। Corona महामारी के दौरान मेड को लेकर लिखे गए आपके आर्टिकल में चिंता और सुझाव बताए गए हैं जो कि काबिलेतारिफ हैं।
जवाब देंहटाएंअभिमन्यु त्यागी
मेरठ
9258039999,9528930507
धन्यवाद अभिमन्यु जी।
हटाएंGood.sar
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