काश! जिंदगी बहुविकल्पीय हो जाए
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कई बार ऐसा होता है कि जब कोई समस्या या चुनौती आती है तो उससे पार पाने का रास्ता नजर नहीं आता। चारों ओर अंधेरा दिखाई देने लगता है। विकल्प ढूंढने लगते हैं। सच में अगर हमारे पास विकल्प है तो फिर चिंता करने की कोई बात नहीं है। हताशा नहीं घेरेगी। विकल्पों की खास बात यह है कि ये हमें दिखाई तभी देते हैं, जब हम किसी परेशानी में होते हैं। विकल्प जिंदगी में तरक्की की नई खिड़की खोल सकते हैं। जिससे बाहर झांकने पर आपकी परेशानी दूर और जिंदगी खूबसूरत बन सकती है। इसलिए जिंदगी बहुविकल्पीय होने में कोई बुराई नहीं है।
मेरा पहली बार विकल्प शब्द से सामना बहुविकल्पीय परीक्षा में हुआ था। मल्टीपल च्वाइस क्वेशचन मैथेड जब से परीक्षाओं में आया है तो प्रतिस्पर्धा का स्वरूप ही बदल गया है। सब्जेक्टिव परीक्षा देने में परीक्षार्थी को इतना लिखना पड़ता था कि उसे लिखते-लिखते लव होने की जगह लकवा मारने की संभावना रहती थी। कमर दर्द करने लगती थी। हाथ दुखने लगते थे। कुछ लिखाड़ बी, सी और डी काॅपी तक भर देते थे। पता नहीं वे किस मिट्टी के बने थे। रिजल्ट आने से पहले तक ऐसे धुरंधरों के टाॅप करने की संभावना से देखा जाता था।
चारों ओर विकल्प हीनता का शोर
देश में इन दिनों चारों ओर विकल्पहीनता का शोर सुनाई पड़ रहा है। यह इस वजह से भी हो सकता है कि हमें विकल्प दिखाई ही न दे रहे हों या खुद को विकल्पों के लिए तैयार ही न किया हो। पढ़ाई चुनने से लेकर नौकरी करने और शादी तक में वैसे हमारे पास विकल्पों का टोटा रहता है। बेरोजगार युवा कहते हैं उनके सामने ज्यादा विकल्प नहीं है। सरकारी नौकरी के लिए सालों इंतजार करते हैं। प्राइवेट वालों का अपना दुख है। उनके सामने भी ज्यादा विकल्प नहीं हैं। अच्छी बात है कि नई शिक्षा नीति में विकल्पों को गंभीरता से लिया गया है। शिक्षा को विकल्प उन्मुख बनाने की कोशिश है। आने वाले समय में विकल्पों की बाढ़ आ सकती है। राजनीति का भी खस्ता हाल है। राजनीति को कोसने वाले कहते हुए नहीं थकते, किसे वोट दें, सामने कोई अच्छा विकल्प ही नहीं है। सत्ताधारी पार्टी को हराने के लिए विपक्ष अच्छे विकल्प होने दावा करते हैं। मगर यकीन दिलाना इतना आसान भी नहीं होता। विकल्प बनने के लिए खूब पसीना बहाना पड़ता है।
इनके विकल्प नहीं आसान
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो विकल्प हीनता का शिकार हैं। उनके सामने सिवाय एक-दूसरे को झेलने के कोई विकल्प नहीं है। एक रिश्ता है सास-बहू का। ये रिश्ता क्या कहलाता है यह तो सबको पता ही होगा। जिनकी बन गई समझो वो तर गईं और जिनकी ठन गई समझो वो दुखों में रम गईं। यहां विकल्प के बारे में सोचना न तो तर्कसंगत है और न ही संभव है। बस एक ही विकल्प है, एडजस्ट करो या झेलो। बाॅस और कर्मचारी का रिश्ता भी हमेशा विकल्प की संभावना देखता रहता है। वो बात अलग है कि दोनों की मनोकामना जल्दी से पूरी नहीं होती। बाॅस सोचता है पता नहीं ये कब टलेगा और कर्मचारी सोचता है पता नहीं ये कब हटेगा। उधर, कोरोना ने दुनिया में त्राहि-त्राहि मचा रखी है। इसको हराने का फिलहाल कोई मजबूत विकल्प नहीं है। वैक्सीन से उम्मीद है। उम्मीद करते हैं कि जल्द वैक्सीन विकल्प बन जाए।
चलते-चलते: अगर हमारे पास विकल्प होंगे तो परेशानी नहीं होगी। विकल्प रखना या खोजना भी एक कला, एक विज्ञान है। जरा इस विकल्प पर विचार करिये।
मेल आईडी - vipin.dhankad@gmail.com
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टिप्पणियाँ
वाह।हमेशा की तरह लाजवाब विषय पर लाजवाब विधा के साथ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर।
हटाएंबेहतरीन लेखन
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सर।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्रिय।
हटाएंBahut khoob likha hai.. Bahuvikalp k liye...need to develop our skills..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी।
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