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विंटर ब्रेक

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सर्दी अकेली नहीं आती। अपने साथ विंटर ब्रेक, कोहरा, गलन भी लाती है। पहाड़ों पर बर्फ और मैदान पर शीतलहर का राज चलता है। एक चीज और लाती है सर्दी अपने साथ। न्यू ईयर। नये साल के जोश में चूर हम ठंड को ओढ़ते और बिछाते हैं। होटल, रेस्टोरेंट और सड़क पर जश्न मनाते हुए सर्दी का स्वागत करते हैं। सड़क पर ही बहुत से लोगों को कड़कड़ाती सर्दी सीमित कपड़ों और खुले आसमान में गुजारनी होती है।  चाय, काॅफी पीते और तापते हुए बोलते हैं ऐसी नहीं पड़ी पहले कभी। सर्दी का यह तकियाकलाम अखबारों में रोज रिकाॅर्ड बनाती और तोड़ती हेडलाइन को देखकर दम भरता है। मुझे विंटर ब्रेक का इंतजार औरों की तरह नहीं रहता। मैं पहाड़ों की जगह अपनी रजाई में घूम लेता हूं। मनाली, नैनीताल और मसूरी में गाड़ियों की कतार मुझे अपनी ओर नहीं खींच पाती। क्योंकि पत्नी और बेटे की छुट्टी रहती है और बाहर हम कम ही जाते हैं इसलिए मेरे ड्यूटी कुछ सख्त हो जाती है। रूटीन बेपटरी होने की शुरुआत अलार्म नहीं बजने से होती है। देर से सोना और सुबह जब मन करे उठना यह एैब इंसान को बर्बाद कर सकता है। दुनिया से काट देता है।  सर्दी बच्चों को बेकाबू होने की छूट देती है। नहान

नजारे हम क्या देखें

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जब से वीडियो कल्चर आया है मोबाइल देखने की प्रवृत्ति को चार चांद लग गए हैं। इसमें हर वक्त कुछ न कुछ देखते ही रहते हैं। घर में हों या बाहर इससे फर्क नहीं पड़ता। यह आदत घर-घर में लड़ाई की वजह बन चुकी है। मोबाइल देखने को लेकर अगर कुछ घरों में झगड़े नहीं हो रहे हैं तो इसका भी कारण मोबाइल ही है। सब अपने-अपने मोबाइलों में व्यस्त हैं। फुर्सत ही नहीं है एक-दूसरे को टोकने की कि तुम हर वक्त मोबाइल में क्यों घुसे रहते हो। जहां तक कवि भी नहीं पहुंचे थे, वहां मोबाइल पहुंच गया है। और तो और आजकल कवि भी मोबाइल देखकर पाठ कर रहे हैं और दर्शक दीर्घा में बैठे लोग उनको देखने की जगह वे भी मोबाइल देख रहे हैं। अब इसे जरूरत कह लीजिए या बीमारी पर नजर हटती ही नहीं।  पहले मोबाइल मोबाइल की वजह से लखनऊ वालों की विरासत खतरे में है। मोबाइल के चक्कर में लोग पहले आप कहना भूल रहे हैं। यह सरासर हमारी संस्कृति पर हमला है। पहले आप तो तब कहेंगे ना जब एक-दूसरे को देखेंगे। निहार मोबाइल को रहे हैं तो अदब कहां याद रहेगा। एक तो पान लखनवियों को गुमसुम बना देता है।  दूसरा हाथ में मोबाइल। कमबख्त उठते-बैठते, चलते-फिरते हर वक्त हाथ में र