संदेश

अक्तूबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विंटर ब्रेक

चित्र
सर्दी अकेली नहीं आती। अपने साथ विंटर ब्रेक, कोहरा, गलन भी लाती है। पहाड़ों पर बर्फ और मैदान पर शीतलहर का राज चलता है। एक चीज और लाती है सर्दी अपने साथ। न्यू ईयर। नये साल के जोश में चूर हम ठंड को ओढ़ते और बिछाते हैं। होटल, रेस्टोरेंट और सड़क पर जश्न मनाते हुए सर्दी का स्वागत करते हैं। सड़क पर ही बहुत से लोगों को कड़कड़ाती सर्दी सीमित कपड़ों और खुले आसमान में गुजारनी होती है।  चाय, काॅफी पीते और तापते हुए बोलते हैं ऐसी नहीं पड़ी पहले कभी। सर्दी का यह तकियाकलाम अखबारों में रोज रिकाॅर्ड बनाती और तोड़ती हेडलाइन को देखकर दम भरता है। मुझे विंटर ब्रेक का इंतजार औरों की तरह नहीं रहता। मैं पहाड़ों की जगह अपनी रजाई में घूम लेता हूं। मनाली, नैनीताल और मसूरी में गाड़ियों की कतार मुझे अपनी ओर नहीं खींच पाती। क्योंकि पत्नी और बेटे की छुट्टी रहती है और बाहर हम कम ही जाते हैं इसलिए मेरे ड्यूटी कुछ सख्त हो जाती है। रूटीन बेपटरी होने की शुरुआत अलार्म नहीं बजने से होती है। देर से सोना और सुबह जब मन करे उठना यह एैब इंसान को बर्बाद कर सकता है। दुनिया से काट देता है।  सर्दी बच्चों को बेकाबू होने की छूट देती है। नहान

कश्मीर यात्रा आखिरी किस्त

चित्र
  पहलगाम की यात्रा ने इतना थका दिया था कि होटल आकर चित हो गए। अगले दिन गुलमर्ग जाने की योजना थी पर सुबह जल्दी उठ पाना मुश्किल लग रहा था। थकान के साथ शरीर भी दुख रहा था। ड्राईवर अल्ताफ से बोला, जाने का सुबह फाइनल करेंगे। पांच बजे अलार्म बज उठा। बंद करके मैं कुछ देर सो गया। छह बजे तय किया कि गुलमर्ग न जाकर आज श्रीनगर घूम लेते हैं। आराम से 10 बजे निकलेंगे। पर निकले 11 बजे। कुछ दूर पहुंचे ही थे कि सेना और सीआईएसएफ के जवान रास्ता रोके खड़े थे। गृहमंत्री अमित शाह की राजौरी में रैली होनी थी। उस रास्ते से उन्हें जाना था। यह जान प्लान चौपट होने का एहसास मुझे हो गया था। ड्राइवर अल्ताफ ने सेना के जवानों से घूमने का हवाला देकर ढील देने की गुजारिश की लेकिन वह नहीनहीं माने। मुड़ने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं था। दूसरे टूरिस्ट भी यही कर रहे थे।  दूसरे रूट पर चलने के लिए गाड़ी मोड़ दी। अकबर का किला देखा जाए, तय किया। आज का श्रीनगर हमें बाकी दिन जैसा नहीं लग रहा था। सुरक्षा सख्त थी। बाजार आंशिक रूप से खुले थे। हर चौराहे पर बख्तरबंद गाड़ियां थीं। कुछ जगह चेकिंग की जा रही थी। एक कार संदिग्ध मानकर बीच र

कश्मीर यात्रा (किस्त तीन)

चित्र
पहलगाम का मिनी स्विटज़रलैंड।  जब से अखबार की नौकरी छोड़ी है रात दस बजे सोना और सुबह पांच बजे उठने की आदत बन गई है। छुट्टी के दिन छोड़कर। आंख खुलने से पहले कानों में अजान की आवाज आई। उठा और पानी पीने के बाद फ्रेश हुआ। सात बजने का इंतजार किया, क्योंकि पास का रेस्टोरेंट तभी खुलता। तब तक हम तैयार हो गए। चाय बोलने के लिए मैं बाहर गया। आर्डर कर डल के किनारे पहुंचा तो देखा मॉर्निंग वॉकर्स की भीड़ थी। डल का किनारा पर्यटकों के घूमने के अलावा लोकल के टहलने के काम भी आता है। साढ़े सात बजे टैक्सी आने वाली थी। गेस्ट हाउस केयरटेकर फैयाज ने इंतजाम किया था। तीन हजार में। मैं जल्द ही कमरे पर लौट आया। तब तक हमारे कमरा नंबर 103 में चाय और पराठे पहुंच गए। नाश्ता नोश फरमा ही रहे थे दरवाजे पर ठकठक हुई। सर गुड मॉर्निंग। टैक्सी आ गई है। एक नौजवान सामने खड़ा था। दस मिनट में आते हैं सुनकर उसने कहा ओके सर। मैं नीचे ही हूं। आप आ जाएगा। आज हमें पहलगाम जाना था। थोड़ी देर में ठक-ठक करते हुए हम नीचे उतरे। आवाज इसलिए हो रही थी क्योंकि जीना लकड़ी का था। आने-जाने की आहट प्राकृतिक सी लगती थी। जैसे लकड़हारा कुल्हाड़ी चला रहा हो। टै

कश्मीर यात्रा (किस्त दो)

चित्र
डल झील के घाट नंबर नौ के सामने मरजान गेस्ट हाउस में ठहरने की व्यवस्था की थी। पता खोजने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी। डल के  सामने घाटों की भरमार है। यही कोई 20 से अधिक होंगे। एक तरफ झील तो दूसरी छोर पर बाजार है। जिसमें होटल, रेस्टोरेंट और दुकानें हैं। एटीएम की संख्या कम है। मुझे तो सिर्फ एक ही दिखा। टैक्सी वाले ने गेस्ट हाउस के ठीक सामने जाकर गाड़ी रोकी। सर आ गया। वह बोला।  कार से जैसे ही हम नीचे उतरे तो एक परिवार चेकआउट कर निकल ही रहा था। गेट के पास बहुत सारी मिनरल वाटर की खाली बोतल बिखरी थीं। पानी की बोतल की यहां बरसात हो रही है क्या? गेस्ट हाउस केयर टेकर फैयाज के साथ यह मेरा पहला संवाद था। इससे पहले फैयाज भाई से फोन पर कई बार बात हो चुकी थी। फैयाज का नंबर अमर उजाला मेरठ में नौकरी के दौरान सहयोगी रहे दिलीप सिंह राणा ने उपलब्ध कराया था। दिलीप इन दिनों जम्मू ऑफिस में काम करते हैं। लंबे समय से हम टच में नहीं थे। फेसबुक पर कश्मीर के वीडियो देखता रहता था उनके। दिमाग में अचानक से ख्याल आया। अभासी प्लेटफार्म से उनका फोन नंबर अरेंज किया। इस तरह श्रीनगर में ठहरने की व्यवस्था जुगाड़ी। कुछ देर

कश्मीर यात्रा (किस्त एक)

चित्र
यह तस्वीर डल झील की है. घूमने के लिए लोग कहां-कहां नहीं जाते। मैदान के लोगों के मन में पहला ख्याल पहाड़ का आता है। ऑप्शन में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख पर जाकर सुई ठहर जाती है। हिमाचल एक बार हो आए थे इसलिए हमें कश्मीर ज्यादा क्लिक कर रहा था। इस पर कुुछ दोस्तों से मशविरा किया। कश्मीर के बारे में सुन काफी कुछ रखा था इसलिए वहां जाने की उत्सुकता ज्यादा थी। जन्नत देखने के रोमांच के बीच आंतकवादी हरकतों की कहानी मन में थोड़ी शंका पैदा कर रही थी लेकिन शंका और आशंका को दरकिनार कर कश्मीर जाने का प्रोग्राम फाइनल किया। हमें घूमने की ज्यादा आदत नहीं है इसलिए एक-दो दिन पहले थोड़ा असहज सा लगता है। तीन अक्तूबर को फ्लाइट पकड़नी थी। पैकिंग हो गई थी। जाने से पहले सुबह अखबार खोला तो पहले ही पेज पर शोपियां में आतंकवादी और सीआईएसएफ के बीच मुठभेड़ की खबर पढ़ी। थोड़ा अटपटा लगा। कश्मीर में जब भी ऐसी कोई घटना होती है वह आमतौर पर पेज एक पर छपती है। पत्नी को इस बारे में जानबूझकर नहीं बताया। उनका मूड खराब करने का मेरा कोई इरादा नहीं था। मेरा फैसला एकदम सही था। यात्रा पूरी होने के बाद यह साबित हो गया